रेलवे तोड़ेगा सूदखोरों का नेटवर्क
गोरखपुर : पूर्वोत्तर रेलवे प्रशासन विभागों और कार्यालयों में फैले सूदखोरों के नेटवर्क क
गोरखपुर : पूर्वोत्तर रेलवे प्रशासन विभागों और कार्यालयों में फैले सूदखोरों के नेटवर्क को तोड़ेगा। अब कोई भी रेल कर्मचारी विभागों में सूद का कारोबार नहीं कर पाएगा। अगर कोई कर्मचारी सूद का कारोबार करते हुए पकड़ा गया तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
सूत्रों के अनुसार विभागों में सूद के कारोबारियों की सक्रियता और अन्य अनियमितताओं की सूचना पर खुद महाप्रबंधक राजीव अग्रवाल गंभीर हुए हैं। उन्होंने समस्त विभागाध्यक्षों और वरिष्ठ रेल अधिकारियों को पत्र लिखकर निगरानी बढ़ाने और कर्मचारियों को जागरूक करने के लिए निर्देशित किया है। उनका कहना है कि अगर कोई कर्मचारी संदिग्ध कार्यकलापों में संलिप्त पाया जाता है तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई सुनिश्चित की जाए। यही नहीं कर्मचारियों को जागरूक भी किया जाए, ताकि अनियमित कार्यो पर पूरी तरह से अंकुश लगाया जा सके। महाप्रबंधक के दिशा-निर्देश पर विभागों और कार्यालयों में निगरानी बढ़ा दी गई है। कर्मचारियों की एक-एक गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है।
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रेलवे में पुराना है सूद के कारोबार का धंधा
तीन अप्रैल को रेलवे प्रेस में तैनात रेलकर्मी संजय कुमार यादव की जलकर मरने के बाद लगे आरोपों ने रेलवे प्रशासन के भी कान खड़े कर दिए। मृतक रेलकर्मी संजय के बेटे ने आरोप लगाया कि कुछ लोगों ने उसके पिता को सूद पर पैसा दिया था और ब्याज के लिए दबाव बना रहे थे। उसके आरोप के बाद रेलवे में एकबार फिर सूद के कारोबार का मामला प्रकाश में आया। दरअसल, पूर्वोत्तर रेलवे में सूदखोरी का मामला कोई नया नहीं है। रेलवे प्रेस ही नहीं कोआपरेटिव बैंक, लेखा विभाग, रेलवे अस्पताल, यांत्रिक कारखाना, सिग्नल वर्कशाप के अलावा मुख्यालय के अन्य कार्यालयों में भी कारोबारियों की सेंधमारी है। कुछ कारोबारी बाहरी हैं तो कुछ रेलकर्मी। कुछ बाहरी तो कर्मचारियों की मिलीभगत से इसे ही अपना मुख्य धंधा बना लिए हैं। यह कारोबारी रेलकर्मियों के माध्यम से ही कर्मचारियों को पैसा देते हैं और उनसे मनमाने ढंग से ब्याज वसूलते हैं। इस कारोबार में कर्मचारी संगठनों के पदाधिकारी और सदस्य भी शामिल हैं। वे कर्मचारियों के अलावा उसके परिजनों पर भी दबाव बनाते हैं। सूद के लिए कर्मचारियों के एटीएम कार्ड और पासबुक भी अपने कब्जे में रख लेते हैं। सूद के मामले में नब्बे के दशक में कुछ हत्याएं भी हुई। कई बार गोलियां भी चलीं, लेकिन अंकुश नहीं लग पाया।