लीबिया में अपहर्ताओं के चंगुल से मुक्त मुन्ना चौहान अपने घर पहुंचा, बताई अपहरण की कहानी Gorakhpur news
मुन्ना नई दिल्ली से प्लेन से गुरुवार की सुबह 9.30 बजे गोरखपुर उतरे। वहां से गांव के चंदन सिंह के साथ बाइक से कुशीनगर जनपद के नेबुआ नौरंगिया थाना अंतर्गत गढ़िया बसंतपुर स्थित घर पर दोपहर में पहुंचे।
गोरखपुर, जेएनएन। एक माह से मुन्ना चौहान के घर में छायी उदासी गुरुवार को छंट गई। अपहृत मुन्ना चौहान दोपहर में सकुशल अपने अपने घर पहुंचे। उन्हें अपने बीच पाकर स्वजन हीं नहीं, पूरे गांव के लोग खुशी से झूम उठे। घर पहुंचते ही उसने मां चंद्रावती का पैर छूकर आशीर्वाद लिया तो मां ने टीका लगाने के बाद लड्डू खिलाकर मुंह मीठा कराया। पत्नी संजू देवी ने आरती उतारी व बच्चों ने पैर छूकर आशीर्वाद लिया।
मुन्ना नई दिल्ली से प्लेन से गुरुवार की सुबह 9.30 बजे गोरखपुर उतरे। वहां से गांव के चंदन सिंह के साथ बाइक से कुशीनगर जनपद के नेबुआ नौरंगिया थाना अंतर्गत गढ़िया बसंतपुर स्थित घर पर दोपहर में पहुंचे। उनके आने की पहले से जानकारी होने के कारण मां, पत्नी और परिवार के अन्य लोग स्वागत में आरती की थाली लिए खड़े थे। घर पहुंचते ही मुन्ना मां को देख फफक कर रो पड़े, लेकिन थोड़ी ही देर में अपने को काबू कर लिया। बेटे मुन्ना चौहान के स्वागत में मां चन्द्रावती देवी व स्वजन हाथ में थाली लिए बेसब्री से इंतजार कर रहे थे, वहीं बड़ी संख्या में ग्रामीण भी उसे देखने के लिए बेताब रखे। घर के बरामदे से लेकर दरवाजे को भी गुब्बारों से सजा रखा गया था। अपहरण की सूचना के बाद से ही स्वजन व गांव वाले कुशल वापसी के लगातार पूजन-अर्चन करते रहे। मां व पत्नी ने तो अलग-अलग देवी-देवताओं की मनौती मान घर पहुंचने की राह देख रहे थे।
30 दिनों तक अपहरणकर्ताओं के चंगुल में रहे सात भारतीय
अपहृत मुन्ना चौहान ने बताया कि वह सितंबर 2019 में वह दिल्ली स्थित एक कंपनी एनडी इंटरप्राइजेज ट्रेवल एजेंसी के माध्यम से लीबिया गया था, जहां आर्गन बेल्डिंग का काम करता था। उनके सहित सात कामगारों का वीजा 13 सितंबर 2020 को ही समाप्त हो गया। 17 सितंबर को लीबिया से दिल्ली के लिए फ्लाइट थी। सुबह 7.30 बजे निकल रहे थे कि साबा के पास ही हथियारों से लैस तीन अपहर्ताओं ने सभी सातों लोगों का अपहरण कर लिया और ब्रेकछापी सिटी से दूर एक गांव में एक कमरे में बंद कर दिया। पहले तो उन्हें सैनिक समझा गया, लेकिन रात आठ बजे जब अपहर्ता पैसे के साथ कंपनी मालिक का मोबाइल नंबर मांगने लगे तब पता चला कि हम सभी अपहरणकर्ताओं के चंगुल में है। इसके बाद अपहरणकर्ताओं ने तीन दिन बाद कंपनी मालिक से पैसा मिल जाने की बात बताकर दूसरे गिरोह के हवाले कर दिया। उस गिरोह के लोगों ने कंपनी मालिक से संपर्क करने के लिये पासपोर्ट व पता मांगा। इधर-उधर गांवों में रखने के बाद 10 अक्टूबर को सोहा अल मोदिया कंपनी में छोड़ दिए। वह 30 दिन अपने चंगुल में रखे थे। अपहरणकर्ताओं के चंगुल से छूटने का सबसे बड़ा श्रेय भारत सरकार के साथ ट्यूनीशिया में भारतीय राजदूत पुनीत राय कुंदन, लीबिया में गोरखपुर निवासी तपसुन को जाता है, जिनकी कंपनी पर लगातार दबाव के चलते हम लोग घर जिंदा लौटे हैं।