गीताप्रेस में ताड़पत्र पर लिखित महाभारत समेत 2600 से अधिक दुर्लभ ग्रंथ किए जा रहे संरक्षित
गीताप्रेस के पास गीता श्रीरामचरितमानस महाभारत वेद- वेदांग समेत सैकड़ों दुर्लभ पांडुलिपियां हैं। इनमें से कुछ का रासायनिक संरक्षण हो चुका है जबकि शेष संरक्षित की जा रही हैैं। इसके लिए 15 लाख रुपये खर्च कर 95 एसिड फ्री आलमारियां बनवाई जा रहीं हैैं।
गजाधर द्विवेदी, गोरखपुर। अनमोल पांडुलिपियों का मोल समझने वाली गीताप्रेस अब उनकी उम्र बढ़ाने में लग गई है। ताड़पत्र पर लिखी महाभारत, हाथ से बने कागज पर लिखी नीलकंठी टीका समेत 2600 से अधिक पांडुलिपियों को दीमक से बचाने के लिए उनका रासायनिक संरक्षण किया जा रहा है। इसके लिए 15 लाख रुपये खर्च कर 95 एसिड फ्री आलमारियां बनवाई जा रहीं हैैं। एसिड फ्री कपड़ा भी तैयार हो रहा है।
गीताप्रेस के पास गीता, श्रीरामचरितमानस, महाभारत, वेद- वेदांग समेत सैकड़ों दुर्लभ पांडुलिपियां हैं। इनमें से कुछ का रासायनिक संरक्षण हो चुका है, जबकि शेष संरक्षित की जा रही हैैं। संरक्षित करने के लिए पांडुलिपियों को फ्यूमिगेशन विधि से केमिकल के संपर्क में लाया जाता है। फिर एसिड फ्री कागज में लपेटकर उन्हें एसिड फ्री लाल कपड़े में बांधा जा रहा है। इसके बाद एसिड फ्री लकड़ी की आलमारी में रखा जा रहा है। इस विधि से उपचार के बाद आलमारी और पांडुलिपि, किसी का भी क्षरण नहीं होगा।
गीताप्रेस के पास सर्वाधिक महत्वपूर्ण ताड़ के पत्ते पर लिखी महाभारत, स्वर्णाक्षर और फूल-पत्तियों के रस से चित्रित गीता की पांडुलिपि है। महाभारत का पांडुलिपि चार अंगुल चौड़े और दो मीटर लंबे ताड़पत्र पर बांग्ला भाषा में है। इन दोनों पांडुलिपियों को उपचार के बाद साखू की प्लेट के बीच सुरक्षित रखा गया है।
भाई जी ने सहेजनी शुरू की थी पांडुलिपियां
1950 में प्रकाशित कल्याण के 'हिंदू संस्कृति अंकÓ में तत्कालीन संपादक हनुमान प्रसाद पोद्दार 'भाईजीÓ ने पाठकों से दुर्लभ पांडुलिपियां गीताप्रेस को देने की अपील की थी। बड़ी संख्या में लोगों ने गीताप्रेस को पांडुलिपियां भेजीं। इन्हें लाल कपड़े में बांधकर रखा गया लेकिन कुछ में दीमक लगने के बाद रासायनिक उपचार का निर्णय लिया गया। ग्रामोद्योग विभाग लखनऊ से एसिड फ्री कागज और बोर्ड मंगवाया गया। पुस्तकालय के इंचार्ज हरिराम त्रिपाठी को लखनऊ भेजकर प्रशिक्षण दिलवाया गया।
अन्य महत्वपूर्ण पांडुलिपियां
हस्तनिर्मित कागज पर लिखी महाभारत की नीलकंठी टीका।
बृहदारण्यक उपनिषद।
ऐतरेय उपनिषद।
कठोपनिषद।
श्रीरामचरितमानस।
श्रीमद्भागवत की श्रीधरी टीका।
श्रीमद्भागवत महापुराण।
शिव पुराण।
देवी पुराण।
प्राचीनता समेटे हैैं पांडुलिपियां
गीताप्रेस ने किसी भी पांडुलिपि की कार्बन डेटिंग नहीं कराई है लेकिन ताड़पत्र पर लिखी महाभारत को कागज का आविष्कार होने से पहले का माना जाता है। महाभारत की नीलकंठी टीका 300 वर्ष पुरानी बताई जा रही है। अन्य पांडुलिपियां करीब दो सौ पूर्व की हैं। गीताप्रेस के उत्पाद प्रबंधक लालमणि तिवारी का कहना है कि कुछ पांडुलिपियां संरक्षित हो गई हैैं। शेष पर काम चल रहा है। ये दुर्लभ पांडुलिपियां हमारी थाती हैं। इन्हें बचाने के हर संभव प्रयास हो रहे हैैं।