प्रवासियों को रुलाकर मंजिल तक पहुंचा रहीं ट्रेनें Gorakhpur News
लखनऊ से गोरखपुर करीब 270 किमी पहुंचने में पांच से छह घंटे की बजाय 15 से 20 घंटे लग रहे हैं। गंतव्य तक पहुंचने में तीन से चार गुना अधिक समय ऊपर से सूर्य की गर्मी परेशान कर रही है।
गोरखपुर, जेएनएन। श्रमिक ट्रेनें कभी मार्ग बदल रहीं तो कभी पटरियों पर सरक रही हैं। लखनऊ से गोरखपुर करीब 270 किमी पहुंचने में पांच से छह घंटे की बजाय 15 से 20 घंटे लग रहे हैं। गंतव्य तक पहुंचने में तीन से चार गुना अधिक समय, ऊपर से सूर्य की गर्मी प्रवासियों की जठराग्नि के ताप को और बढ़ा दे रही है। भूखे-प्यासे लोग बदहाल अवस्था में अपनी माटी पर पहुंच रहे हैं।
जिन ट्रेनों को रविवार को आना चाहिए, वह सोमवार को पहुंची
सोमवार को ही लखनऊ-गोरखपुर रेलमार्ग पर अधिकतर श्रमिक स्पेशल ट्रेनें दस से 20 घंटे की देरी से पहुंचीं। जिन ट्रेनों को रविवार को गोरखपुर पहुंचना चाहिए था, वह सोमवार को पहुंचीं। शाम छह बजे तक सोमवार को तमिलनाडु से दो व चेंगलपेट से आने वाली एक ट्रेन पहुंची ही नहीं थी। अहमदाबाद से गोरखपुर आने वाली श्रमिक ट्रेन रविवार की रात लगभग 12 लखनऊ पहुंची थी। दूसरे दिन सोमवार को शाम चार बजे के आसपास यह ट्रेन गोरखपुर पहुंची।
बेंगलुरु से आने वाली ट्रेन की भी यही हालत
बेंगलुरु से बस्ती के लिए रवाना हुई ट्रेन भी रविवार की रात 12 बजे के आसपास लखनऊ में खड़ी हो गई। दूसरे दिन दो बजे यह ट्रेन बस्ती पहुंची। यही स्थिति दिल्ली से आने वाली ट्रेन की रही। सामान्य दिनों में जहां दिल्ली से 12 से 15 घंटे में ट्रेनें गोरखपुर पहुंच जाती हैं, वहीं श्रमिक ट्रेनें 24 घंटे ले रही हैं। श्रमिक ट्रेनों की रफ्तार पटरी से उतर गई है। रेलवे के जानकारों का कहना है कि तीन से चार दिन तक यह स्थिति बनी रहेगी। गाडिय़ां लेट से ही गंतव्य तक पहुंचेंगी।
क्या ईद मनाएं, भूखे-प्यासे ही रह गए
गोला बाजार निवासी अलाउद्दीन का कहना है कि सोचा था ईद घर पर ही मनाऊंगा। ट्रेन भी समय से लखनऊ पहुंच गई थी। पूरी रात लखनऊ में ही गुजर गई। शाम चार बजे गोरखपुर पहुंचे हैं। गोला जाना है। भूखे-प्यासे ही त्योहार मन गया।
संतोष यही है कि घर पहुंच गया
कौड़ीराम के श्याम सिंह का कहना है कि दिल्ली में कंपनियां बंद चल रही हैं। ट्रेन चलने का इंतजार कर रहा था। श्रमिक स्पेशल में जगह मिल गई तो परिवार के साथ बैठ गया। गोरखपुर पहुंचने में 24 घंटे लग गए हैं। रास्ते में बच्चे रो रहे थे। रास्ते में काफी परेशानी हुई। संतोष यही है कि घर पहुंच गया।
लाइन खाली न प्लेटफार्म, ट्रेनें कर रहीं इंतजार
अगर हम कहें कि, यूपी और बिहार की रेल लाइनों पर श्रमिक ट्रेनों की बाढ़ सी आ गई है, तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी। बहुत हद तक सही भी है। न रेल लाइनें खाली हैं और न प्लेटफार्म। इसके चलते एक जोन से दूसरे जोन में प्रवेश करने वाली क्रासिंग (इंटरचेंज प्वाइंटों) पर ट्रेनों को प्रवेश नहीं मिल पा रहा। ऐसे में ट्रेनें मार्ग बदल दे रही हैं या सिग्नल मिलने का इंतजार कर रही हैं। इससे ट्रेनें लगातार विलंबित हो रही हैं।
रेलवे अपनी भाषा में इसे ट्रैक पर कंजेशन कह रहा है। यानी, रेल लाइनों पर सामान्य दिनों की अपेक्षा क्षमता से अधिक श्रमिक ट्रेनें चल रही हैं। गोरखपुर रेल खंड को ही लें। गोरखपुर में रोजाना औसत 12 से 15 ट्रेनें पहुंच रही हैं। बस्ती, गोंडा और लखनऊ तथा देवरिया, छपरा तथा वाराणसी स्टेशनों पर भी बड़ी संख्या में ट्रेनें पहुंच रही हैं। इन स्टेशनों पर एक ट्रेन जहां पांच से 20 मिनट रुकती थी वहीं प्रवासियों को उतारने में श्रमिक स्पेशल को ढाई से तीन घंटे लग जा रहे। इसके चलते जो ट्रेन जहां हैं, वहीं खड़ी हो जा रहीं। इसका असर लखनऊ, कानपुर, छपरा, प्रयागराज, इटारसी और भुसावल स्थित इंटरचेंजिंग प्वाइंटों पर पड़ रहा है। जानकारों का कहना है कि श्रमिक ट्रेनों की संख्या कम कर या नाम और समय सारिणी से चलाकर ही इस समस्या से निजात पाई जा सकती है। जो संभव नहीं दिख रहा है। लगातार ट्रेनें बढ़ती ही जा रही हैं।