वह देखता तो एक आंसू में क्या न था
मां ने अपने दो नवजात को सड़क पर फेंक दिया। लोगों की नजर बच्चों पर पड़ी तो उन्हें जिला अस्पताल ले जाया गया, दोनो की जान बच गई।
गोरखपुर/महराजगंज, (विश्वदीपक त्रिपाठी)। वसीम बरेलवी की यह पंक्तियां शायद इन बेटियों के दर्द भरे लम्हों के लिए सटीक बैठती हैं। शायद उसे दर्द का यह पहलू पता न था। वह देखता तो एक आंसू में क्या न था।। कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं , जिसे देख व सुन मन दुखी हो उठता है। महराजगंज के जिला अस्पताल का नजारा भी पिछले आठ से 15 अक्टूबर की शाम तक कुछ इसी तरह का था। यहां के एसएनसीयू (स्पेशल न्यू बार्न केयर यूनिट) वार्ड में भर्ती दो बच्चियों की दास्तां सुन आपका मन भी द्रवित हो जाएगा। दोनों को जन्म देने वाली मां ने उन्हें ठुकरा कर मरने के लिए सुनसान स्थान पर छोड़ दिया। यह तो ऊपर वाले का शुक्र था कि समय रहते भले लोगों की नजर इन बच्चियों पर पड़ गई।
बाल गृह भेजी गईं दोनों बच्चियां
पुलिस व चाइल्ड लाइन होते हुए जिला अस्पताल का एसएनसीयू वार्ड इनका आशियाना बना । डाक्टर व नर्स इनके अभिभावक तो चिकित्सकीय उपकरण इनके खेल के सामान। शाम तक इन बच्चियों के किसी अभिभावक के सामने न आने पर इन्हें चाइल्ड लाइन के सदस्यों द्वारा सीडब्ल्यूसी (बाल कल्याण समिति) के समक्ष प्रस्तुत किया गया। यहां समिति के सदस्यों द्वारा गहन जांच पड़ताल के बाद बाल गृह शिशु जेल रोड गीता वाटिका गोरखपुर में रखने के लिए आदेशित किया गया है। जब शिशु सदन गोरखपुर जाने के लिए चाइल्ड लाइन के सदस्य जिला अस्पताल पहुंचे तो माहौल भावुक हो उठा।
दो माह तक करेंगे माता-पिता की प्रतीक्षा
बाल गृह गोरखपुर भेजी गईं दोनों बच्चियां फरेंदा व लक्ष्मीपुर क्षेत्र से मिली थीं। आठ अक्टूबर को फरेंदा जंगल में मिली बच्ची की उम्र लगभग दो माह है। 11 अक्टूबर को लक्ष्मीपुर में मिली बच्ची अभी नवजात है। अब 60 दिनों तक महराजगंज से गईं दोनों बच्चियां बाल शिशु गृह जेल रोड गोरखपुर में रहेंगी। यहां दो माह तक बच्चियों के जैविक माता-पिता का इंतजार यहां के कर्मचारी करेंगे। बाल कल्याण समिति महराजगंज के सदस्य राजेश वर्मा ने कहा कि सोमवार को चाइल्ड लाइन द्वारा दो बच्चियों को बाल कल्याण समिति के समक्ष प्रस्तुत किया गया। बच्चियों के संबंध में आवश्यक प्रक्रिया पूरी करने के बाद इन्हें बाल गृह शिशु सदन गोरखपुर में रखने के लिए निर्देशित किया गया है।