वाद-विवाद और संवाद के नामवर...निधन पर हर कोई दुखी
नामवर का गोरखपुर से पुराना नाता रहा है। शायद यही कारण है कि उनके निधन की सूचना से पूरा शहर दुखी रहा। गोरखपुर विश्वविद्यालय में संगठनों ने श्रद्धांजलि सभा कर नामवर को याद किया।
गोरखपुर, जेएनएन। नामवर सिंह का गोरखपुर से पुराना नाता रहा है। शायद यही कारण है कि उनके निधन की सूचना से पूरा शहर दुखी रहा। गोरखपुर विश्वविद्यालय में कई संगठनों ने श्रद्धांजलि सभा कर नामवर सिंह को याद किया।
साहित्यकार प्रो. रामदेव शुक्ल ने कहा कि नामवर सिंह का गोरखपुर से सदैव से ही लगाव था। 90 के दशक से ही वे गोरखपुर विश्वविद्यालय में भारतीय भाषाओं के अनुवाद के सिलसिले में आयोजित तीन दिवसीय सेमिनार में मौजूद रहे। उसके पूर्व प्रो. भगवती प्रसाद सिंह के अध्यक्ष रहते जायसी पर आयोजित सेमिनार में भी उन्होंने तीन दिनों तक गोरखपुर में ही प्रवास किया था। वे गोरखपुर के अधिकांश साहित्यकारों को जानते और पहचानते थे। वर्ष 2002 में भी उन्हें वर्तमान साहित्य के आलोचना अंक का लोकार्पण करने गोरखपुर आना था, लेकिन उस पत्रिका में प्रकाशित एक आपत्तिजनक लेख की वजह से उस कार्यक्रम में शिरकत नहीं कर सके।
नामवर सिंह को खूब पढऩे की आदत थी, जिसके चलते विश्व साहित्य का सर्वश्रेष्ठ उनकी निगाहों से बच नहीं सका था। वे हिंदी के अलावा उर्दू, बांग्ला, संस्कृत और अंग्रेजी के भी जानकार थे। वर्ष 1953 में उनका गीत संग्रह आया, लेकिन उसके बाद फिर कविता नहीं लिखी। साहित्य में निबंध और आलोचना के क्षेत्र में उनका सराहनीय योगदान रहा।
वे नई प्रतिभाओं को हमेशा प्रोत्साहित करते रहते थे। वाद-विवाद संवाद, दूसरी परंपरा की खोज, कहानी नई कहानी, छायावाद उनकी चर्चित कृतियां है। जिस पुस्तक 'कविता के नए प्रतिमान' से वे चर्चित हुए, बाद में 1983 तक आते-आते उन्होंने अमेरिकी साहित्य से प्रभावित उन प्रतिमानों को खुद नकार दिया था। उनकी साहित्य ईमानदारी का यह अप्रतिम उदाहरण माना जाना चाहिए। उन्होंने जनयुग व आलोचना का संपादन किया। यद्यपि माक्र्सवादी दृष्टिकोण से प्रभावित होने के नाते उनके बहुत से विचारों को साहित्य जगत से सर्वस्वीकृति नहीं मिल सकी। इसके बावजूद साहित्य और समाज के संबंधों पर उनके उत्कृष्ट योगदान को साहित्य जगत कभी भुला नहीं सकेगा। ऐसे व्यक्ति का जाना केवल हिंदी साहित्य ही नहीं देश के लिए अपूर्णीय क्षति है।
नामवर सिंह के निधन से साहित्य में हुआ विराट शून्य
प्रख्यात आलोचक नामवर सिंह के निधन पर विभिन्न साहित्यिक संगठनों एवं भाषा संस्थानों ने दुख जताया है। जन संस्कृति मंच, प्रेमचंद साहित्य संस्थान, अलख कला समूह सहित कई साहित्यिक व सांस्कृतिक संगठनों ने प्रेमचंद पार्क में श्रद्धांजलि सभा आयोजित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। इस मौके पर साहित्यकारों, लेखकों व संस्कृतिकर्मियों ने कहा कि उनके निधन से हिंदी साहित्य में एक विराट शून्य पैदा हुआ है।
श्रद्धांजलि सभा में वरिष्ठ कथाकार मदन मोहन ने कहा कि नामवर की उपस्थिति ही बहुत भारी होती थी। गोरखपुर व अन्य स्थानों पर एक दर्जन से अधिक साहित्यिक कार्यक्रमों में उनसे जुड़ी यादें साझा करते हुए कहा कि वे हिन्दी साहित्य की बड़ी थाती हैं। समाजवादी नेता राजेश सिंह ने जेएनयू में अपनी पढ़ाई के दौरान नामवर सिंह से मुलाकातों का जिक्र किया तो युवा लेखक आनंद पांडेय ने कहा कि नामवर ने देशभर में हिंदी शिक्षकों की एक पीढ़ी तैयार की। वरिष्ठ रंगकर्मी एवं कथाकार राजाराम चौधरी ने कहा कि नामवर सिंह को संस्कृत काव्य शास्त्र और पाश्चात्य काव्य शास्त्र दोनों का गहरा अध्ययन था। फतेहबहादुर सिंह, कथाकार आसिफ सईद, सामाजिक कार्यकर्ता मांधाता सिंह, जगदीश लाल, अशोक चौधरी, जनचेतना से जुड़ी रूबी, संदीप राय ने नामवर सिंह से जुड़ी स्मृतियां बयां की और उन्हें अजीम शख्सियत बताया।
संचालन कर रहे जन संस्कृति मंच के महासचिव मनोज कुमार सिंह ने कहा कि नामवर सिंह का गोरखपुर से गहरा लगाव था। दस वर्ष पहले प्रेमचंद पार्क में नामवर ने आलोचक कपिलदेव की पुस्तक का लोकार्पण किया था। उन्होंने प्रेमचंद पार्क में कई व्याख्यान दिए। श्रद्धांजलि सभा में विकास द्विवेदी, आमी बचाओ मंच के अध्यक्ष विश्वविजय सिंह, राजेश साहनी, ओंकार सिंह, सुजीत श्रीवास्तव, बैजनाथ मिश्र, बेचन पटेल, मनोज मिश्र, मुकुल पांडेय, चक्रपाणि ओझा, विभूति नारायण ओझा, अरुण पाठक आदि उपस्थित थे।
हिंदी एवं उर्दू विभाग में श्रद्धांजलि सभा
डॉ. नामवर के निधन पर गोरखपुर विवि के हिंदी एवं उर्दू विभाग में भी श्रद्धांजलि सभाओं का आयोजन हुआ। यहां शिक्षकों, छात्रों एवं शोधार्थियों ने नामवर के लेखन एवं व्यक्तित्व पर चर्चा की।