Lockdown: पेट की खातिर बेटियों ने उठा लिया ठेले पर हिमालय Gorakhpur News
Lockdown में जब रोटी का संकट आया तो मासूम बेटियों ने परिवार का पेट भरने की जिम्मेदारी उठा ली और ठेला खींचकर मासूम बेटियां परिवार का पेट भर रही हैं।
गोरखपुर, {अतुल मिश्र}। तुम्हारी मेज चांदी की, तुम्हारे जाम सोने के, यहां जुम्मन के घर में आज भी फूटी तराबी है। अदम गोंडवी का यह सेर उन हुक्मरानों को आइना दिखाने के लिए काफी है जो कहते है कि कल्याणकारी योजनाएं जमीन पर सफलता पूर्वक पहुंच रही है। मेंहदावल विकास खंड के दुर्गजोत निवासी अनवर कबाड़ उठाने का काम करता है। उसकी बीमारी व बड़े परिवार का पेट नहीं भरने के कारण उसकी तीन नाबालिग बेटियों ने कबाड़ बीनने का काम शुरू कर दिया। यह कहानी है तो यूपी के संतकबीर नगर जिले की लेकिन ऐसा सीन हर जिले, हर तहसील में दिख जाएगा। पेट की आग बुझाना इनके लिए वैसे भी आसान नहीं था लेकिन कोरोना ने इस दशा में पहुंचा दिया है कि इन्हें रोटी में अब भगवान दिखाई पड़ते हैं। रोटी मानो सोना चांदी हो गया हो।
जिन हाथों में किताबें होनी चाहिए वह हाथ खींच रहे ठेला
रुखसार (17), मुस्कान (14), उसमा (12) प्रतिदिन ठेला लेकिन सुदूर गांवों में कबाड़ उठाने निकलती है। शाम होते- होते जब वह लौटती है तो ठेले पर हिमालय सा बोझ लदा होता है। नन्ही कलाइयां कब इतनी मजबूत हो गई कि अब फर्राटे से ठेला चला लेती है। कबाड़ बेंचने के बाद जो आय होती है उससे अनवर का पूरा परिवार चलता है। अनवर की दो छोटी बेटी व दो छोटे पुत्र भी है। 9 परिवार का कुनबा अनवर की मजदूरी व उसकी बेटियों के कबाड़ के कमाई पर पूरी तरह से निर्भर है। इस चिलचिलाती धूप में बेटियों के इस तपस्या को देखकर हर कोई हतप्रभ है। बस इससे जिम्मेदार हतप्रभ नहीं है क्योंकि उनको यह समस्या आम दिखाई देती है।
दो वर्ष से बेटियां उठा रही कबाड़
अनवर रोज की तरह कबाड़ बीनने निकल जाता था। दो वर्ष पहले अचानक से उसकी तबियत खराब हुई तो तीन बड़ी बेटियां ने कबाड़ उठाने के लिए ठेला थाम लिया। अब अनवर व उसकी बेटियां दोनों अलग-अलग दिशा में प्रतिदिन कबाड़ के धंधे के लिए सुबह निकल जाते है। इससे परिवार का पेट पालने में आसानी होती है।
नहीं मिला जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ
घर पर मौजूद अनवर की 40 वर्षीय पत्नी रग्गुन ने बताया कि टूटे- फूटे घर पर पन्नी तानकर गुजारा हो रहा है। बहुत बार ब्लाक व प्रधान के घर का चौखट चुम चुकी हूँ लेकिन आश्वासन ही मिलता रहा। पेंशन, उज्ववला योजना आदि का लाभ भी नहीं मिला जिसके कारण चूल्हा ही फूंकना पड़ता है। योजनाओं के नाम पर सफेद कार्ड बना है जिससे 25 किलो राशन मिल जाता है। बरसात में पूरी रात छत टपकती है जैसे- तैसे रात कटती है।
मौके पर पहुंचकर परिवार की स्थिति का अवलोकन करने के बाद आवास सहित अन्य जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिलाया जाएगा। परिवार को इससे पहले ब्लाक पर बुलाकर नकदी देकर मदद किया जा चुका है। - ज्ञानेंद्र सिंह, बीडीओ, मेंहदावल
अगर नाबालिग बेटियां ठेला चलाकर रोजी-रोटी का जुगाड़ कर रही है तो यह बेहद गंभीर मामला है। जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिलाने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों को तत्काल निर्देशित किया जाएगा। - राकेश सिंह बघेल, विधायक, मेंहदावल