'फरेबी परदेसी' को जल्द मिलेगी लोकल की टक्कर Gorakhpur News
लोकल आम जल्द ही बाजार में बाहरी आमों से टक्कर लेने के लिए आ रहा है। इस साल आम बहुतायत है। अच्छा और सस्ता मिलने की उम्मीद है।
गोरखपुर, जेएनएन। गोरखपुर व आस-पास के जिलों के आम को लोकल आम कहा जाता है। जबकि बाहर आने वाले आम को फरेबी की श्रेणी में रखते है। इसके पीछे लोगों का मानना है कि यह आम कार्बाइड की सहायता से पकाया जाता है। ऐसे में लोग इसका सेवन कम लोग करते हैं। इसके अधिक सेवन से तमाम तरह की बीमारियां फैलने की आशंका बनी रहती है।
15 दिनों में लीजिए लोकल आम का आनंद
आम की स्थानीय प्रजाति गौरजीत, बाम्बेग्रीन, दशहरी, लगड़ा, चौसा, सफेदा 15 दिन के भीतर ही बाजार में आ जाएगा। अपने बेजोड़ स्वाद के कारण यह सदैव परदेसी आमों पर भारी पड़ता है। इस बार भी ऐसा होने का अनुमान है।
कर्नाटक और आंध्र प्रदेश से आया आम
बाजार में कर्नाटक की तोतापरी, आंध्र प्रदेश की बैगनपुल्ली आम करीब पखवारा भर पूर्व उतर चुका है। जगह-जगह ठेलों पर यह आम देखा भी जा रहा है। बावजूद इसके इसकी खपत कम है। इसकी प्रमुख वजह इन आमों को कार्बाइड की सहायता से पकाया जाता है। ट्रांसपोर्टेशन में कई दिन लगने के कारण यहां बिना पके आम मंगाये जाते हैं और उसे यहां पकाया जाता है, जबकि स्थानीय आम के लिए ट्रांसपोर्टेशन का कोई बहुत लफड़ा नहीं है। ऊपर इसका स्वाद व सुगंध भी लोगों को भाता है। लोग साल भर प्रतीक्षा करते हैं। ऐसे में स्थानीय आम उतरने के बाद ही यहां आम का बाजार जोर पकड़ा है। जिले में करीब एक हजार हेक्टेयर में आम पेड़ लगे हैं और इससे औसतन करीब पांच लाख क्विंटल आम तैयार होता है।
जानिए आम की स्थानीय प्रजाति
गोरखपुर जिले में करीब 200 हेक्टेयर में गौरजीत के पेड़ लगे हुए हैं। अन्य आमों की अपेक्षा यह थोड़ा अधिक मीठा होता है। इसी तरह से बाम्बेग्रीन आम है। जिले में करीब 100 हेक्टेयर में इसके पेड़ हैं। इसका फल मध्यम आकार का, अंडाकार, पकने में चित्तीदार होता है। जहां तक दशहरी आम की बात है तो जिले में करीब 200 हेक्टेयर में इसके पेड़ हैं। इसका फल मध्यम आकार, लंबा, हरा-पीले रंग का होता है। इसका गूदा कड़ा व विशेष सुगंध युक्त होता है। वहीं लंगड़ा भी कम मीठा नहीं होता है। 50 हेक्टेयर में इसके पेड़ लगे हुए हैं। यह हल्का रेशेदार, मीठे स्वाद वाला फल है। सफेदा आम सबसे आखिर में बाजार में आता है। 100 हेक्टेयर में इसके पेड़ हैं। यह देर से पकने वाली पछैती किस्म का आम है। इसके अलावा जिले में चौसा, आम्रपाली समेत अन्य देसी प्रजातियों के भी आम हैं।
कार्बाइड से पके फलों से यह है नुकसान
बीआरडी मेडिकल कॉलेज के चिकित्सक डॉ अभिषेक जीना का कहना है कि कार्बाइड से पके आमों के सेवन से कैंसर होने की आशंका रहती है। इससे हार्मोनल गड़बड़ी होती है। यह लीवर को नुकसान पहुंचाता है। राजकीय उद्यान के संयुक्त निदेशक डा. आरके तोमर का कहना है कि आम स्थानीय प्रजातियां स्वाद सुगंध में बेहतर है। इनके आने के बाद ही आम के बाजार में रौनक आती है। स्थानीय होने के कारण इन्हें कार्बाइड व केमिकल आदि से पकाने की जरूरत नहीं रहती। ऐसे में इन आमों की मांग अधिक रहती है।