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Kanpur Encounter: मुठभेड़ में घायल दारोगा से स‍ुनिए, उस रात क्‍या हुआ था..

Kanpur Encounter कानपुर में अपराधी विशाल दुबे के साथ हुई मुठभेड़ में गोरखपुर निवासी दारोगा सुधाकर पांडेय भी शामिल थे। सुधाकर ने बताया है कि उस रात क्‍या हुआ था।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Thu, 09 Jul 2020 09:01 AM (IST)Updated: Thu, 09 Jul 2020 10:18 PM (IST)
Kanpur Encounter: मुठभेड़ में घायल दारोगा से स‍ुनिए, उस रात क्‍या हुआ था..
Kanpur Encounter: मुठभेड़ में घायल दारोगा से स‍ुनिए, उस रात क्‍या हुआ था..

गोरखपुर, जेएनएन। कानपुर में अपराधी विशाल दुबे के साथ हुई मुठभेड़ में गोला क्षेत्र के बेलपार पाठक गांव निवासी दारोगा सुधाकर पांडेय भी शामिल थे। बदमाशों की गोली लगने से वह घायल हो गए थे, उपचार के बाद अस्पताल से छुट्टी मिलने पर वह लखनऊ स्थित अपने आवास पर पहुंचे। उनके स्वस्थ होने से गांव में खुशी का माहौल है। दूरभाष पर हुई बातचीत में उन्होंने उस रात की दिल दहला देने वाली दास्तान सुनाई। मुठभेड़ में बलिदान देने वाले साथियों की चर्चा करते समय उनकी आवाज भर्रा जा रही थी।

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सोचने समझने का मौका नहीं मिला, सीधे मौत से हुआ सामना

यह पूछते ही कि उस रात क्या हुआ था, वह बोल पड़े 'सोचने-समझने का जरा भी मौका नहीं मिला। सीधे मौत से सामना हुआ। हर तरफ से गोली चल रही थी। अंधेरे में कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। साथी पुलिसकर्मी एक-एक कर गोली लगने से जमीन पर गिरते जा रहे थे। घात लगाए बदमाश, जवाब देने का मौका ही नहीं दे रहे थे।

40 की संख्या में पुलिसकर्मी दबिश के लिए निकले थे

वह बताते हैं कि रात में चौबेपुर थाने से 40 की संख्या में पुलिसकर्मी दबिश के लिए निकले थे। उनकी गाड़ी में उनके अलावा पांच से छह सिपाही थे। 'सीओ की गाड़ी सबसे आगे थी। गांव में पहुंचे तो रास्ते में जेसीबी हमारा रास्ता रोके खड़ी थी। जेसीबी के पास करीब पांच सौ मीटर पहले गाड़ी छोड़कर पुलिस वाले पैदल ही विकास दुबे के घर की तरफ बढऩे लगे। अभी जेसीबी से आगे बढ़े ही थे कि गोलियों की बौछार शुरू हो गई।' इस जिक्र के साथ दारोगा सुधाकर जोड़ते हैं, 'संभलने का मौका ही नहीं मिला। कुछ पुलिस वालों ने जवाबी फायङ्क्षरग की लेकिन कोई सुरक्षित जगह नहीं मिल रही थी, जिसकी आड़ लेकर बदमाशों का जवाब दिया जा सके। कुछ ही मिनट में बदमाशों ने पुलिस टीम पर सैंकड़ों राउंड गोली बरसा दी।'

आंख के पास आकर लगी गोली

मुठभेड़ की भयावहता याद करते, बातचीत के दौरान वह तनिक ठहरते हैं। फिर बोल पड़ते हैं, 'बदमाशों पर जवाबी फायरिंग करने की कोशिश के दौरान एक गोली मेरी आंख के पास आकर लग गई। जान बचाने के लिए मैं और एक सिपाही पास के शौचालय में घुसे। बदमाशों ने शौचालय पर भी गोलियां चलानी शुरू कर दी। गोली लगने से शौचालय की ईंट टूटकर हमारे ऊपर गिर रही थी। लग रहा था कि जान नहीं बचेगी। इसी बीच गोलियों की बौछार कम होने पर शौचालय से निकलकर किसी तरह से हम अपने वाहन के पास पहुंचे। इसी बीच बिठुरा थानाध्यक्ष कौशलेंद्र प्रताप सिंह और तीन-चार सिपाही भी आ गए। वही लोग हमें रीजेंसी हॉस्पिटल कानपुर ले गए। घटनाक्रम याद आते ही मन सिहर जा रहा है। अभी तक मेरे अलावा कोई अन्य पुलिसकर्मी स्वस्थ्य नहीं हुआ है। ईश्वर की अनुकंपा ही थी कि जान बच गई।


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