किताबें नहीं पढ़ना चाहते लोग : प्रो. अनंत मिश्र
गोरखपुर : साहित्य पढ़ने से आत्मा का परिष्कार होता है, संवेदना का विकास होता है। आदमी में मनु
गोरखपुर : साहित्य पढ़ने से आत्मा का परिष्कार होता है, संवेदना का विकास होता है। आदमी में मनुष्यता का विकास होता है। साहित्य पढ़ना सत्य का सामना करना है साहित्यकार सत्य की कमाई लिखता है। आज का युवा ज्ञानतंत्र को झोले में लटकाए हुए चला जा रहा है। साहित्यकार समाज की समस्याओं का साझा करता है। संवेदना से युक्त साहित्य पढ़ने की किसी के पास फुरसत नहीं है। आज किसी को किताबों को पढ़ने की फुरसत नहीं है। सब लोग सूचनात्मक ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं।
उक्त बातें महाराणा प्रताप स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जंगल धूसड़ में ¨हदी विभाग द्वारा आयोजित विशिष्ट व्याख्यान में बतौर मुख्य वक्ता प्रो. अनंत मिश्र, पूर्व विभागाध्यक्ष 'हिन्दी विभाग' गोरखपुर विश्वविद्यालय ने कहीं। 'हिन्दी साहित्य में पाठकों की समस्या' विषय पर अपने विचार व्यक्त प्रो. अनंत ने कहा कि आज समाज में श्रोताओं की संख्या कम हो रही है। हर कोई बोलना ही चाहता है। वेद का एक नाम श्रुति है। व्यास जी ने अपने समय में सुनने की समस्या पर चिंता जताई थीं। सुनने के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है। साहित्यकार चलती हुई भाषा के विरुद्ध होता है या यूं कहें कि बाजार के विरुद्ध होता है। वह समाज के सत्य को लिखता है और सत्य से सरोकार केलिए साहित्य को जब समाज पढ़ता है तो उसके संवेदना का परिष्कार होता है। समाज पर बाजार का कब्जा है। इसलिए समाज में झूठ की भाषा चलती है। कार्यक्रम का संचालन एवं आभार ज्ञापन मेजबान ¨हदी विभाग की प्रभारी डा.आरती सिंह ने किया।