सरकारी व्यवस्था से जुड़ी तमाम भ्रांतियों को पीछे छोड़कर, पिता ने दिखाई हिम्मत तो सुपोषित हुई बिटिया
सरकारी व्यवस्था से जुड़ी तमाम भ्रांतियों को पीछे छोड़कर हिम्मत दिखाने वाले बड़हलगंज ब्लाक के तिहा मुहम्मदपुर गांव निवासी गौरीशंकर दुबे की बिटिया अतिकुपोषित से सुपोषित हो चुकी है। गौरीशंकर कहते हैं कि सरकार ने बहुत अच्छी व्यवस्था की है।
गोरखपुर, उमेश पाठक। सरकारी व्यवस्था से जुड़ी तमाम भ्रांतियों को पीछे छोड़कर हिम्मत दिखाने वाले बड़हलगंज ब्लाक के तिहा मुहम्मदपुर गांव निवासी गौरीशंकर दुबे की बिटिया अतिकुपोषित से सुपोषित हो चुकी है। संकोच एवं डर के कारण बीआरडी मेडिकल कालेज जाने से कतराने वाले गौरीशंकर की बिटिया जब मेडिकल कालेज स्थित पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) में आकर ठीक हो गई तो वह और लोगों को भी यहां आने की सलाह देने लगे। गौरीशंकर कहते हैं कि सरकार ने बहुत अच्छी व्यवस्था की है और जिसके बच्चे को कुपोषण हो, वह बेझिझक यहां आ सकता है।
गांव में मजदूरी करते है पिता
गौरीशंकर कोरोना काल से पहले मुंबई में मजदूरी करते थे। लाकडाउन के कारण उन्हें घर आना पड़ा। अब वह गांव पर ही मजदूरी करते हैं। कुछ समय पहले उनकी छोटी बेटी तीन वर्षीय प्रियांजल का उचित विकास नहीं हो रहा था। इधर-उधर दवा कराने पर भी कोई फायदा नहीं मिला। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने उन्हें एनआरसी जाने की सलाह दी लेकिन मेडिकल कालेज के नाम पर वह आने को तैयार नहीं हुए। इसके बाद बड़हलगंज स्थित निजी चिकित्सालय में गए, वहां से भी डाक्टर ने बीआरडी जाने को कहा।
लोगों ने दी एनआरसी सेंटर जाने की सलाह
इसके बाद भी वह संकोच कर गए लेकिन जब बेटी की तबीयत ठीक नहीं हुई तो डेरवा स्थित स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे। वहां से भी डाक्टर ने एनआरसी जाने की सलाह दी। सभी से एक ही सलाह मिलने के बाद गौरीशंकर ने भी हिम्मत दिखाई। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) डेरवा की टीम ने भी उनका हौसला बढ़ाया। गौरीशंकर बताते हैं कि वह एनआरसी में 19 दिनों तक रहे और उनकी बेटी अब ठीक है।
खर्च निकालने के लिए की मजदूरी
गौरीशंकर ने बताया कि एनआरसी की व्यवस्था काफी अच्छी है। वहां बच्ची को दूध, खाना, उसके साथ उसकी मां को खाना निश्शुल्क मिलता था। अपना खर्च निकालने के लिए उन्होंने शहर में काम तलाशा। कुछ दिन उन्हें मजदूरी भी मिली। इससे मिले पैसे से अपने खाने की खर्च व बिटिया के लिए केला व अंडा खरीदा। जब एनआरसी आए थे तो बच्ची की उम्र छह किलो 900 ग्राम थी और जब यहां से घर गए तो बच्ची का वजन पौने नौ किलो हो चुका था।
मनरेगा जाब कार्ड से वंचित हैं गौरीशंकर
गौरीशंकर मजदूरी करके ही परिवार का पालन-पोषण करते हैं। तीन बेटियों के पिता गौरीशंकर के परिवार का अब तक मनरेगा जाब कार्ड नहीं बना है। हालांकि जिलाधिकारी विजय किरन आनंद ने कुपोषित बच्चों के परिवार में मनरेगा जाब कार्ड बनवाने व सभी योजनाओं से आच्छादित करने का निर्देश दिया है।
सभी कुपोषित बच्चों को सुपोषित बनाने का लक्ष्य
जिलाधिकारी विजय किरन आनंद ने बताया कि जिले के सभी कुपोषित बच्चों को सुपोषित बनाने का लक्ष्य है। इसके लिए जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। जिस तरह से गौरीशंकर आगे आए, वैसे ही अन्य अभिभावकों को भी आगे आकर अपने बच्चों को सुपोषित बनाना चाहिए। एनआरसी में सभी सुविधाएं निश्शुल्क मिलती हैं।