Move to Jagran APP

कुल्हड़ और हांडी का लौटा जमाना, युवाओं को भा रही माटी की सोंधी खुशबू- तस्वीरों में देखें इसका क्रेज

पिछले कुछ दिनों से कुल्हड़ और हांडी की डिमांड काफी बढ़ गई है। इसका क्रेज इस कदर बढ़ा है कि नई पीढ़ी के बहुत से युवाओं ने तो मिट्टी के बर्तन के इस्तेमाल को स्टेटस सिंबल का रूप देना शुरू कर दिया है।

By Pragati ChandEdited By: Published: Sat, 25 Jun 2022 01:20 PM (IST)Updated: Sat, 25 Jun 2022 01:20 PM (IST)
कुल्हड़ और हांडी का लौटा जमाना, युवाओं को भा रही माटी की सोंधी खुशबू- तस्वीरों में देखें इसका क्रेज
कुल्हड़ और हांडी का लौटा जमाना। फोटो- अभिनव राजन चतुर्वेदी।

गोरखपुर। व्यक्ति आधुनिकता की दौड़ में कितना भी आगे क्यों न चला जाए, माटी की सोंधी खुशबू उसे अपनी जमीं से दूर नहीं होने देती। बल्कि उसे अपनी ओर खींच ही लाती है। किसी बहाने से, किसी भी जमाने से। प्लास्टिक और स्टील के युग में बीते कुछ समय से हांडी और कुल्हड़ की बढ़ी डिमांड इसकी तस्दीक है। कुल्हड़ की सोंधी चाय और हांडी में बने निरामिष भोज कर क्रेज तेजी से बढ़ा है। सुखद संदेश यह है कि यह डिमांड पुरानी पीढ़ी नहीं बल्कि नई पीढ़ी की ओर से ज्यादा आ रही है। नई पीढ़ी के बहुत से युवाओं ने तो खानपान को मिट्टी के बर्तन के इस्तेमाल को स्टेटस सिंबल का रूप देना भी शुरू कर दिया है। कुल्हड़ और हांडी के बढ़े क्रेज पर डा. राकेश राय की रिपोर्ट-

loksabha election banner

प्लास्टिक आधारित हो गया था बाजार:  ज्यादा दिन नहीं हुए, जब खानपान का बाजार पूरी तरह प्लास्टिक आधारित निर्भर हो गया था। दुकान से मिलने वाली खाने-पीने की हर चीज प्लास्टिक से बने किसी प्लेट, कप, गिलास या थाली में मिलती थी। बाजार में कप या कुल्हड़ की चाय मिलेगी, इसकी तो लोगों ने उम्मीद ही छोड़ दी थी। हांडी में बना सोंधी खुशबू वाला भोजन तो जैसे दुर्लभ हो गया था। लेकिन कहते हैं ना, 'सब दिन होत नहीं एक समाना, लौटता है गुजारा जमाना'। मिट्टी और हांडी के दिन भी लौटे। दोनों की वापसी जोरदार ढंग से हुई है। क्योंकि इसे युवाओं ने हाथों-हाथ लिया है। इसका सीधा मतलब है कि नई पीढ़ी ने इसके महत्व को समझा है तभी अपनाया है और जब नई पीढ़ी को यह भाया है तो इसमें संदेह नहीं कि मिट्टी के इन बर्तनों की पारी इस बार काफी लंबी होगी।

मांग बढ़ी तो व्यवसायियों ने भी अपनाया: कुल्हड़ और हांडी की मांग बढ़ी है तो व्यवसायियों ने भी इसे शिद्दत से अपनाया है, आखिर उन्हें ग्राहक की डिमांड जो पूरी करनी है। इसकी बानगी यूं तो शहर में अलग-अलग कई स्थानों पर देखी जा सकती है लेकिन रामगढ़ ताल क्षेत्र में सजी दुकानें युवाओं को कुल्हड़ में चाय पिलाने और हांडी में मदन या चिकन खिलाने का जिम्मा विशेष रूप से संभाले हुई हैं। उनका सीधा फंडा है, ग्राहक की डिमांड पूरी करना।

कुल्हड़ वाली चाय की बढ़ी डिमांड: रामगढ़ताल के सामने चाय बेचने वाले विकास बताते हैं कि वह चाय के लिए कुल्हड़ और कागज की छोटी गिलास दोनों की व्यवस्था रखते हैं लेकिन कागज की गिलास शाम को वापस चली जाती है, जबकि कुल्हड़ समाप्त हो जाता है। इसी तरह मटन-चिकन की दुकान चलाने वाले शिवनाथ बताते हैं कि उनके यहां आने वाले ज्यादातर ग्राहक हांडी में बने मटन और चिकन की डिमांड करते हैं, इसलिए अब उनका पूरा फोकस इसी पर रहता है। कुछ लोग हांडी में पनीर की सब्जी की डिमांड भी करते हैं। खाने के लिए भी मिट्टी का कोसा भी मांगते हैं।

क्या कहते हैं हांडी चिकन-मटन विक्रेता

  • हांडी चिकन-मटन विक्रेता बंटी तिवारी ने बताया कि मिट्टी में बने चिकन और मटन की मांग बीते कुछ समय से तेजी से बढ़ी है। हर ग्राहक मेरी दुकान पर इसी उम्मीद से आता है कि हांडी में नानवेज खाने को मिलेगा। अब तो मेरे ढाबे की पहचान ही हांडी मटन को लेकर हो गई है।
  • हांडी चिकन-मटन विक्रेता प्रणय प्रताप सिंह ने बताया कि हांडी में बने चिकन व मटन को बेचने की शुरुआत की तो लोगों ने हाथों-हाथ लिया। अब तो शहर के ग्राहकों की जुबां पर चढ़ गया है हांडी में बना सोंधी खुशबू वाला मटन व चिकेन। क्या युवा और क्या बूढ़ा, सभी वहीं मांगते हैं।

क्या कहते हैं कुम्हार

  • कुम्हार अवधेश प्रजापति ने बताया कि तीन साल पहले तक तो लगने लगा था कि हम लोगों का व्यवसाय की समाप्त हो जाएगा। विकल्प की तलाश भी शुरू कर दी थी लेकिन कोरोना काल में मिट्टी के कुल्हड़ और बर्तन की डिमांड बढ़ी। अब तो पुराने दिन लौट आए हैं।
  • कुम्हार इंद्रावती देवी ने बताया कि बीच में तो ऐसा लगने लगा था कि हांडी जैसे मिट्टी के बर्तन लुप्त हो जाएंगे। खुशी की बात है कि फिर से उनकी डिमांड बढ़ गई है और हमारा रोजगार भी पनप गया है। अब तो हम लोग डिमांड पर भी हांडी बनाने लगे हैं।

पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बड़ा कदम: पर्यावरणविद् प्रो. गोविंद पांडेय ने मिट्टी के कुल्हड़, कोसा और हांडी का बढ़े प्रचलन को पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बड़ा कदम बताया है। उनका कहना है कि खानपान के लिए प्लास्टिक के पात्रों के बढ़े प्रचलन से पर्यावरणविद् काफी चिंतित थे। इसलिए कि प्लास्टिक के पात्र निर्माण से लेकर इस्तेमाल तक में पर्यावरण संतुलन के लिए बड़ी चुनौती बने हुए हैंं। उनका निस्तारण तो बहुत बड़ी समस्या है। अब जब मिट्टी के पात्रों का प्रचलन बढ़ा है तो पात्र निस्तारण की समस्या भी समाप्त होती दिखने लगी है। क्योंकि मिट्टी के पात्रों को तो फिर मिट्टी में ही मिल जाना है। नई पीढ़ी से मेरी अपील है कि वह मिट्टी के पात्रों के इस्तेमाल को अभियान के तौर लें। नई पीढ़ी का इसके प्रति रुझान स्वागत योग्य कदम है। इससे कुम्हारों का परंपरागत रोजगार भी कायम रहेगा।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.