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युगों पुरानी है खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा, जानें- नेपाल के राज परिवार से क्‍यों आती है 'खिचड़ी'

गुरु गोरखनाथ के दरबार में खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा वर्षो नहीं बल्कि युगों पुरानी है। भगवान सूर्य के प्रति आस्था से जुड़े इस पर इस पर्व पर खिचड़ी चढ़ाने का इतिहास त्रेतायुग का है।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Mon, 14 Jan 2019 02:55 PM (IST)Updated: Thu, 17 Jan 2019 04:22 PM (IST)
युगों पुरानी है खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा,  जानें- नेपाल के राज परिवार से क्‍यों आती है 'खिचड़ी'
युगों पुरानी है खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा, जानें- नेपाल के राज परिवार से क्‍यों आती है 'खिचड़ी'

गोरखपुर, जेएनएन। बाबा गोरखनाथ के दरबार में खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा वर्षो नहीं बल्कि युगों पुरानी है। भगवान सूर्य के प्रति आस्था से जुड़े इस पर इस पर्व पर खिचड़ी चढ़ाने का इतिहास त्रेतायुग का है, जिसका आज भी पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ निर्वाह किया जा रहा है।

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मान्यता है कि त्रेता युग में गुरु गोरक्षनाथ भिक्षा मांगते हुए हिमांचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के मशहूर ज्वाला देवी मंदिर गए। सिद्ध योगी को देख देवी साक्षात प्रकट हो गईं और गुरु को भोजन का आमंत्रण दिया। जब गुरु पहुंचे तो वहां मौजूद तरह-तरह के व्यंजन देख ग्रहण करने से इन्कार कर दिया और भिक्षा में मिले चावल-दाल ही ग्रहण करने की बात कही। देवी ने गुरु की इच्छा का सम्मान किया और कहा कि आप के द्वारा लाए गए चावल-दाल से ही भोजन कराऊंगी।

उधर उन्होंने उसे बनाने के लिए पात्र में पानी आग पर चढ़ा दिया। वहां से गुरु भिक्षा मांगते हुए गोरखपुर चले आए। यहां उन्होंने राप्ती व रोहिणी नदी के संगम पर एक स्थान का चयन कर अपना अक्षय पात्र रख दिया और साधना में लीन हो गए। उसी दौरान जब खिचड़ी यानी मकर संक्रांति का पर्व आया तो लोगों ने एक योगी का भिक्षा पात्र देखा तो उसमें चावल-दाल डालने लगे। जब काफी मात्र में अन्न डालने के बाद भी पात्र नहीं भरा तो लोगों ने इसे योगी का चमत्कार माना और उनके सामने श्रद्धा से सिर झुकाने लगे। तभी से गुरु के इस तपस्थली पर मकर संक्रांति पर चावल-दाल चढ़ाने की जो परंपरा शुरु हुई, वह आज तक उसी आस्था व श्रद्धा के साथ चल रही है।

नेपाल में भी पूज्‍य हैं बाबा गोरखनाथ

बाबा गोरखनाथ के दरबार में मकर संक्रांति पर नेपाल राज परिवार की ओर से भी खिचड़ी चढ़ाई जाती है। इसके पीछे का इतिहास नेपाल के एकीकरण से जुड़ा है। गुरु गोरक्षनाथ संस्कृत विद्यापीठ के आचार्य डॉ. रोहित मिश्र बताते हैं नेपाल के राजा के राजमहल के पास ही गुरु गोरक्षनाथ की गुफा थी। उस समय के राजा ने अपने बेटे राजकुमार पृथ्वी नारायण शाह से कहा कि यदि कभी गुफा में गए तो वहां के योगी जो भी मांगे, उसे मना मत करना। जिज्ञासावश शाह खेलते हुए वहां पहुंच गए और गुरु ने उनसे दही मांग दी। राजकुमार अपने माता-पिता संग दही लेकर जब गुरु के पास पहुंचे तो उन्होंने दही का आचमन कर युवराज के अंजुलि में उल्टी कर दी और उसे पीने को कहा। युवराज की अंजुलि से दही उनके पैरों पर गिर गई। लेकिन बालक को निर्दोष मानकर नेपाल के एकीकरण का वरदान गुरु ने दे दिया। बाद में इसी राजकुमार ने नेपाल का एकीकरण किया। तभी से नेपाल नरेश व वहां के लोगों के लिए बाबा गोरखनाथ आराध्य देव हैं। राजपरिवार से खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा भी तभी से शुरू हुई जो आज तक चली आ रही है।
गोरक्षपीठाधीश्‍वर ने दी खिचड़ी की शुभकामना
सीएम व गोरक्षपीठाधीश्‍वर योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश के लोगों को मकर संक्रांति व खिचड़ी पर्व की बधाई दी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि देश के हर क्षेत्र में संक्रांति को विशिष्ट पर्व के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व हमारे देश की की समृद्ध विरासत एवं सांस्कृति एकता का प्रतीक है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बधाई संदेश में कहा कि इस वर्ष मकर संक्रांति इसलिए भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि इस बार इस पर्व से ही विश्व का विशालतम आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक समागम प्रयागराज कुंभ 2019 प्रारम्भ हो रहा है।


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