Khichdi Mela Gorakhpur: बुढ़वा मंगल पर बाबा गोरखनाथ को चढ़ी आस्था की खिचड़ी
बुढ़वा मंगल पर खिचड़ी चढ़ाने की भी मान्यता उतनी ही है जितनी मकर संक्रांति की। ऐसे में जो श्रद्धालु मकर संक्रांति को खिचड़ी नहीं चढ़ा पाते वह बुढ़वा मंगल के दिन गोरखनाथ मंदिर में आकर अपना यह अनुष्ठान सम्पन्न करते हैं।
गोरखपुर, जेएनएन। मकर संक्रांति के बाद दूसरे मंगलवार को पड़ने वाले बुढ़वा मंगल को श्रद्धालु गोरखनाथ मंदिर में सुबह से ही बाबा गोरखनाथ के श्रीचरणों में आस्था की खिचड़ी चढ़ी। कतारबद्ध होकर लोगों ने खिचड़ी चढ़ाई।
बुढ़वा मंगल पर खिचड़ी चलाने की भी मान्यता उतनी ही है, जितनी मकर संक्रांति की। ऐसे में जो श्रद्धालु मकर संक्रांति को खिचड़ी नहीं चढ़ा पाते, वह बुढ़वा मंगल के दिन अपना यह अनुष्ठान सम्पन्न करते हैं। इस अवसर पर होने वाली भीड़ को नियंत्रित करने और उनकी सुरक्षा के लिए जिला प्रशासन ने पुख्ता इंतजाम किया था। मंदिर के स्वयंसेवक में श्रद्धालुओं को मदद कर रहे थे।
मेले में दिख रहा गजब का उत्साह
मकर संक्रांति से गोरखनाथ मंदिर परिसर में शुरू होने वाला खिचड़ी मेला बुढ़वा मंगल के दिन अपने रौ में है। सुबह से ही मेले में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। बड़ी संख्या में मंदिर पहुुंचे महिलाएं और बच्चे मेले का जमकर लुत्फ उठा रहे हैं। कोई झूले का आनंद ले रहा है तो खानपान की दुकान पर सजे चटपटे सामानों की ओर मुखातिब है। घरेलू समान और सौंदर्य प्रसाधन की दुकानों पर जमकर भीड़ लगी हुई है।
बुढ़वा मंगल की यह है मान्यता
बुढ़वा मंगल का पर्व पौष माह के अंतिम मंगलवार को मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव के अवतार माने जाने वाले हनुमान जी का दर्शन-पूजन करना शुभ माना जाता है। मान्यता है इस दिन हनुमान जी की पूजा से सारे कष्ट समाप्त हो जाते हैं। बुढ़वा मंगल की मान्यता रामायण काल से जुड़ी है। मान्यता है कि इसी दिन रावण ने लंका स्थित अपने राजदरबार में हनुमान जी पूंछ में आग लगवाई थी, जिसके बाद उन्होंने रावण की लंका को जलाने के लिए अपनी पूंछ में बड़वानल यानी विशाल अग्नि पैदा कर दी थी। इसी कारण माह के आखिरी मंगलवार को बुढ़वा मंगल नाम मिला।