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निर्जला एकादशी: ऐसे रखें ब्रत, यह चीजें करें दान Gorakhpur News

निर्जला एकादशी दो जून को परंपरागत ढंग से आस्था व श्रद्धा के साथ मनाई जा रही है। इस दिन सूर्योदय 515 बजे व एकादशी तिथि सुबह 924 बजे तक है।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Tue, 02 Jun 2020 11:32 AM (IST)Updated: Tue, 02 Jun 2020 07:38 PM (IST)
निर्जला एकादशी: ऐसे रखें ब्रत, यह चीजें करें दान Gorakhpur News
निर्जला एकादशी: ऐसे रखें ब्रत, यह चीजें करें दान Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। भगवान विष्णु को समर्पित व्रत भीमसेनी एकादशी (निर्जला एकादशी) दो जून को परंपरागत ढंग से आस्था व श्रद्धा के साथ मनाई जाएगी। इस दिन सूर्योदय 5:15 बजे व एकादशी तिथि सुबह 9:24 बजे तक है। भीषण गर्मी में पडऩे वाली इस एकादशी को निर्जल व्रत रहकर जल भरा घड़ा व पंखे तथा मौसमी फलों के दान की परंपरा है। मान्यताओं के अनुसार ऐसा करने वाला संसार के समस्त सुखों को भोगते हुए मोक्ष प्राप्त करता है।

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यह चीजें करें दान

कोरोना संक्रमण का दौर चल रहा है। विशेषज्ञ फ्रीज का इस्तेमाल न करने की सलाह दे रहे हैं। ऐसे में यह एकादशी महत्वपूर्ण हो गई है। परंपरा के अनुसार इस दिन घर में मिट्टी का घड़ा लाया जाता है। जल भरकर उसकी पूजा की जाती है। जल भरा एक घड़ा या सुराही, बांस के बने पंखे व छाता दान किया जाता है। मौसमी फल तरबूज, खरबूजा, ककड़ी आदि के दान की भी परंपरा है। ताकि लोगों तक शीतलता पहुंच सके। शरबत के लिए चीनी व गुड़ का भी दान किया जाता है।

जब फ्रीज नहीं था, तो लोग पूरी गर्मी मिट्टी के घड़े से ही शीतल जल का सेवन करते थे। आज कोरोना संकट में जब फ्रीज के ठंडे जल के दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं, तो अपनी पुरानी परंपरा की ओर लौटने का समय आ गया है। हमें खुद मिट्टी के घड़े का जल पीना चाहिए और लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करना चाहिए। - आचार्य मुरली मनोहर पाठक, पूर्व विभागाध्यक्ष, संस्कृत विभाग, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय

इस व्रत में भगवान की आराधना के साथ ही मनुष्य की जरूरतों को जोड़ा गया है। ज्येष्ठ (जेठ) माह में गर्मी बहुत ज्यादा पड़ती है, इसीलिए घर में मिट्टी का घड़ा लाने और दूसरों को जल भरा घड़ा, हाथ वाला पंखा दान करने की परंपरा है। शरबत बनाने के लिए चीनी व गुड़ भी दान दिया जाता है। यह दूसरों को शीतलता प्रदान करने वाला व्रत है। - पं.देवेंद्र प्रताप मिश्र, कोषाध्यक्ष, अखिल भारतीय विद्वत महासभा

कोरोना ने हमें बहुत कुछ सिखाया है। अब अपनी जड़ों की ओर लौटने का समय आ गया है। इस निर्जला एकादशी पर कोरोना के नाश की प्रार्थना के साथ ही हमें संकल्प लेना होगा कि मिट्टी के घड़े के ही शीतल जल का सेवन करेंगे। इससे फ्रीज के दुष्परिणामों से तो बचेंगे ही, हमारी माटी कला पुन: जीवित होकर रोजगार का साधन बन सकेगी। - नर्वदेश्वर पति त्रिपाठी नूतन, सौरविद्

जेठ माह में दिन बड़ा व भीषण गर्मी होती है, इसलिए प्यास लगना स्वाभाविक है। राहत के लिए लोगों को शीतल जल से भरा घड़ा दान किया जाता है। साथ ही छाता, पंखा, गो, पान, शय्या, आसन, स्वर्ण आदि दान करें। ऐसी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति जल से भरा घड़ा दान करता है, उसे स्वर्ण दान का फल मिलता है। भगवान की कृपा सदैव बरसती रहती है। - पं. शरदचंद्र मिश्र, अध्यक्ष, रिलीजियस स्कालर्स वेलफेयर सोसाइटी

सभी एकादशियों का फल देती है  निर्जला

निर्जला एकादशी व्रत करने से समस्त तीर्थों का पुण्य, सभी 26 एकादशियों एवं सभी प्रकार के दान का फल प्राप्त होता है। यह व्रत धन-धान्य व संतान देने वाला, आरोग्यता तथा दीर्घायु प्रदान करने वाला है। श्रद्धा और भक्ति से किया गया यह व्रत सभी पापों को तत्काल क्षीण कर देता है। जो मनुष्य इस दिन स्नान, दान और हवन करता है, वह सब प्रकार से अक्षय हो जाता है। ऐसा भगवान श्रीकृष्ण का कथन है। जो फल सूर्य ग्रहण के समय कुरुक्षेत्र में दान करने से प्राप्त होता है, वही इस व्रत को करने तथा इसका महात्म्य श्रवण करने से भी मिलता है। व्रती की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

व्रत कथा

एक दिन महर्षि वेदव्यास से भीमसेन ने पूछा-पितामह! माता कुंती, द्रौपदी व मेरे चारों भाई सभी एकादशियों के दिन उपवास करते हैं। निर्जला एकादशी के दिन तो जल तक ग्रहण नहीं करते हैं। वे चाहते हैं कि में भी उनकी तरह विधि विधान पूर्वक उपवास रखकर अन्न, जल ग्रहण न करूं, परंतु मैं ऐसा नही कर पाता हूं। आप बताएं, मुझे क्या करना चाहिए? महर्षि वेदव्यास बोले, हे भीम! तुम जेठ माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करो। इस व्रत में स्नान और आचमन को छोड़ जल का व्यवहार मत करना। इससे सभी 26 एकादशियों का पुण्य प्राप्त होगा। तभी से यह व्रत भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।


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