वाट्सएप ग्रुप पर कवि सम्मेलन व मुशायरे का अनूठा आयोजन Gorakhpur News
सारी सृजनात्मकता चंद दीवारों के बीच सिमट कर रह गई है। बिना किसी सामूहिक आयोजन के उन्हें दीवारों से बाहर निकालने की दैनिक जागरण ने एक अनूठी पहल की है।
गोरखपुर, जेएनएन। लॉकडाउन की वजह से सामूहिक सांस्कृतिक और साहित्यिक गतिविधियां इन दिनों पूरी तरह ठप हैं। हालांकि सृजन का सिलसिला नहीं थमा है, पर माध्यम न होने की वजह से वह लोगों तक नहीं पहुंच रहा। सारी सृजनात्मकता चंद दीवारों के बीच सिमट कर रह गई है। बिना किसी सामूहिक आयोजन के उन्हें दीवारों से बाहर निकालने की दैनिक जागरण ने एक अनूठी पहल की है। वाट्सएप के माध्यम से कवि सम्मेलन और मुशायरे के आयोजन की। इसे लेकर बने वाट्सएप ग्रुप पर शुक्रवार को कवि सम्मेलन और मुशायरे की महफिल साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विश्वनाथ तिवारी सहित शहर के नामचीन कवियों और शायरों ने अपनी नायाब रचनाओं से सजाई। एक से बढ़कर एक रचनाओं से सजी महफिल शहर ही नहीं बल्कि समूचे पूर्वांचल के साहित्यिक इतिहास में नया अध्याय जोड़ गई।
पहली बार नहीं देखा था इसे बुद्ध ने
प्रो. विश्वनाथ तिवारी ने कोरोना के संक्रमण से बचाव को जूझ रहे लोगों को अपनी कविता के माध्यम से मनुष्यता का दुख बताया। रचना के माध्यम से उन्होंने बताया कि मनुष्य के दुख की कथा अनंत है।
पहली बार नहीं देखा था इसे बुद्ध ने
इसकी कथा अनंत है
कोई नहीं कह सका इसे पूरी तरह
कोई नहीं लिख सका इसे संपूर्ण
क्या तुम देखने चले हो दुख?
इसी क्रम में अपनी एक अन्य रचना से उन्होंने मनुष्य को उसकी मंजिल भी दिखाई।
सूरज डूब रहा है
और अंधेरा घिरने वाला है
मेरे आगे जो रास्ता है
कांटे बिखरे हैं उसपर
क्या करूं मैं प्यार तो कब का सरक गया, अंटी में बंधा था अठन्नी की तरह
प्रो. अनंत मिश्र ने इस सिलसिले को प्यार का मतलब बताकर आगे बढ़ाया। उसे पाने की कसक का अहसास कराया।
प्यार तो कब का सरक गया
अंटी में बंधा था अठन्नी की तरह
पूरा रुपया तो कभी न था
अब उसकी कसक है
खो जाने अहसास है
प्रो. मिश्र ने अपनी एक अद्यतन कविता में कोरोना की वजह से मजदूरों के दर्द को उभारा और आयोजन को प्रासंगिक बना दिया।
जिंदगी यह एक नदी सी है, कहीं सूखी, कहीं चढ़ी सी है
प्रो. केसी लाल ने प्रो. मिश्र की बात को आगे बढ़ाते हुए जिंदगी के मायने अपनी गजल के माध्यम से बताए। उन्होंने जिंदगी की तुलना नदी से की।
जिंदगी यह एक नदी सी है
कहीं सूखी, कहीं चढ़ी सी है
ख्वाब हों या कि तमन्नाएं
ये हकीकत गुदगुदी की है
किस तरह से सुकूने-दिल
मुसीबतों की लड़ी सी है
हमारा होगा मंगल और यह इतवार जाएगा
मशहूर शायर कलीम कैसर अपने मौजू शेर से वर्तमान की विपरीत परिस्थितियों में उम्मीद की लौ जगाई। शेर के माध्यम से उन्होंने कोरोना पर करुणा के भारी पडऩे का फलसफा बताया।
हमारा होगा मंगल और यह इतवार जाएगा
हमें विश्वास है ये तप निभा ले जाएंगे हम सब
हैं करुणा वाले हम, हमसे कोरोना हार जाएगा
इसी क्रम में उन्होंने मनुष्य को उसकी गलतियों को अहसास भी अपनी रचना से कराया।
अजब हुआ कि पङ्क्षरदे उड़ान भूल गए
जमीं पर रहने लगे और आसमान भूल गए।
आप उससे भी मिलिए उसी की तरह, बात जो भी करे आदमी की तरह
टीएन श्रीवास्तव वफा गोरखपुरी ने अपनी गजल से आदमियत का पैमाना पेश किया। आदमी को आदमी की तरह पेश आने की नसीहत दी।
आप उससे भी मिलिए उसी की तरह
बात जो भी करे आदमी की तरह
उसको अपना बनाना हो गर जान लें
बंदगी कीजिए बंदगी की तरह
बंद होगा न दरवाजा मेरा कभी
मुझसे मिलिए मगर आदमी की तरह।
भंवर में हूं किनारा चाहता हूं, मैं तिनके का सहारा चाहता हूं
कोरोना के संक्रमण से परेशान देशवासियों का दर्द मशहूर शायर सैयद आसिम रऊफ की गजल में झलका। उन्होंने इसे लेकर खुद की चाहत का इजहार किया।
भंवर में हूं किनारा चाहता हूं
मैं तिनके का सहारा चाहता हूं
कोरोना से महफूज रहे मेरा भारत
वतन में यही नजारा चाहता हूं।
कौन-सा अब पहाड़ है टूटा, मुंह किए बैठे हो जो इत्ता- सा
अंत में मशहूर शायर महेश अश्क ने अपनी गजल से जिंदगी में हार न मानने की सीख दी। उन्होंने सच के एक सिरे से संतोष न करने की सलाह दी, साथ ही दृसरे सिरे को तलाशने का रास्ता दिखाया।
कौन-सा अब पहाड़ है टूटा
मुंह किए बैठे हो जो इत्ता- सा
जिंदगी सख्त मुम्तहिन ठहरी
कुछ कहीं पढ़-पढ़ा ले, तब जा-ना
सच का एक छोर थाम बैठे हो तुम
जब कि एक दूसरा सिरा भी था