अधिकारियों की लापरवाही से बदरंग हुआ गोरखपुर का जूहू चौपाटी Gorakhpur News
रामगढ़ताल में जलकुंभी पट जाने के कारण गोरखपुर का जूूूूहू चौपाटी कहा जाने वाला क्षेत्र बदरंग हो गया है।
गोरखपुर, जेएनएन। खूबसूरती के चलते लोगों को आकर्षित करने वाला रामगढ़ताल शुक्रवार की सुबह तक एक बार फिर जलकुंभी से पट गया। ताल के पानी से उठ रही दुर्गंध से उधर से गुजरना मुश्किल था। जल निगम की ओर से करीब चार दर्जन मजदूर लगाकर दिन भर जलकुंभी निकालवाई गई। शाम तक किनारों को साफ कर लिया गया लेकिन बीच से नहीं हटाया जा सका। दुर्गंध भी कम नहीं हुई। जलकुंभी से निजात पाने के लिए पिछले कई वर्षों में करोड़ों रुपये खर्च किए जा चुके हैं लेकिन इससे निजात नहीं मिल पाई है।
शुक्रवार की सुबह रामगढ़ताल की ओर से गुजरने वाले लोगों को कुछ अलग नजारा दिखा। नौकायन से लेकर पैडलेगंज तक ताल जलकुंभी से पट गया था। बीच में भी जगह-जगह जलकुंभी फैली नजर आ रही थी। किनारे का पानी पूरी तरह से हरा हो हे गया था और उसमें से दुर्गंध उठ रही थी।
तेज हवा के कारण फैली जलकुंभी
11 से 13 जनवरी तक गोरखपुर महोत्सव के आयोजन से पहले भी जलकुंभी पूरे ताल में फैल गई थी। उस समय इसकी देखरेख का जिम्मा संभालने वाली एजेंसी जलनिगम के अभियंता कार्य बहिष्कार पर थे। पर, महोत्सव को देखते हुए नौ जनवरी को सफाई शुरू हुई और 10 की शाम तक नौकायन की ओर ताल पूरी तरह से साफ कर दिया गया। उस समय जलकुंभी को सहारा इस्टेट से सटे किनारे पर लगा दिया गया था। किनारे करने के बाद उसे वहां से निकाला जाना था लेकिन निकाला नहीं गया। जलकुंभी और बढ़ती गई। बुधवार की रात में चली तेज हवा के कारण पूरा ताल इससे पट गया। मोहद्दीपुर स्मार्ट व्हील्स के भवन के किनारे भी बड़ी मात्रा में जलकुंभी है। हालांकि विभाग का कहना है कि जलकुंभी किनारे करने के बाद उसे निकाला गया था।
जलनिगम के अनुसार मछुआरों की गलती से फैलती है जलकुंभी
रामगढ़ताल के परियोजना प्रबंधक रतनसेन सिंह के अनुसार जलकुंभी फैलने के पीछे मछुआरों की गलती है। जब किनारे पर जलकुंभी जमा हो जाती है और मछली मारने में दिक्कत आती है तो उसे वे फैला देते हैं और धीरे-धीरे पूरे ताल में यह दिखने लगती है। मोहद्दीपुर की ओर मछुआरों ने ही बाधा लगाया है, जिससे मछली दूसरी ओर न जाने पाएं।
क्या रहा है बजट का प्रावधान
रामगढ़ताल को साफ करने के लिए केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने नेशनल लेक कंजर्वेशन प्लान (एनएलसीपी) के तहत 2010 में 124.32 करोड़ रुपये मंजूर किए गए थे। इसके तहत सिल्ट निकालने के लिए 12.81 करोड़ एवं जलकुंभी निकालने के लिए 2.42 करोड़ रुपये का अनुबंध किया गया था। इसके साथ ही नालों का गंदा पानी रोकने के लिए सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) भी बनाया गया। 2015 से हर साल गोरखपुर विकास प्राधिकरण (जीडीए), नगर निगम एवं आवास विकास परिषद की ओर से 6.602 करोड़ रुपये जलनिगम को दिए जाने का प्रावधान है।
इसमें जीडीए का हिस्सा 2.504 करोड़, नगर निगम का हिस्सा 2.484 करोड़ एवं आवास विकास का हिस्सा 1.614 करोड़ है। जीडीए ने अब तक इस मद में 5.008 करोड़ एवं नगर निगम ने 3.226 करोड़ रुपये दिए हैं। आवास विकास की ओर से धन नहीं दिया गया है। यानी 2019 तक कुल 8.234 करोड़ जल निगम को मिले हैं। जबकि अब तक कुल 26.408 करोड़ रुपये मिले होते।
मछली मारने में दिक्कत होने पर मछुआरे किनारे पर पड़ी जलकुंभी को फैला देते हैं। सुबह ताल में जलकुंभी देखते ही उसे हटाने का निर्देश दिया गया। करीब चार दर्जन मजदूरों को लगाकर शाम तक जलकुंभी साफ करा दी गई। किनारे करके जलकुंभी को निकलवा दिया जाता है। जलकुंभी का ग्रोथ काफी तेजी से होती है, इसे पूरी तरह समाप्त करना आसान नहीं। - रतनसेन सिंह, परियोजना प्रबंधक, रामगढ़ताल।