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कभी खुद रहीं शिकार, सैकड़ों को सिखाया घरेलू हिंसा का प्रतिकार

भटहट ब्लाक के ताजपिपरा गाँव की जानकी देवी अपनी उम्र के 45वें पड़ाव तक उसी दशा में थीं जहाँ घर के पुरुष सदस्यों की गाली उनके लात-घूंसे खाना नियति मान ली जाती है। यह सिलसिला शुरू हुआ था उनकी 13 साल की उम्र में ।

By Satish ShuklaEdited By: Published: Fri, 23 Oct 2020 10:16 AM (IST)Updated: Fri, 23 Oct 2020 05:32 PM (IST)
कभी खुद रहीं शिकार, सैकड़ों को सिखाया घरेलू हिंसा का प्रतिकार
ताजपिपरा गाँव की जानकी देवी की फोटो।

गोरखपुर, जेएनएन। कभी खुद घरेलू हिंसा का शिकार रहीं जानकी देवी आज चार सौ से अधिक महिलाओं को इसका प्रतिकार करना सिखा चुकी हैं.  उन्होंने वो दौर भी देखा है जब उत्पीडन के खिलाफ आवाज़ उठाने पर तीन महीने तक उन्हें अपने ही घर में घुसने तक नहीं दिया गया था, और आज वह दूसरी महिलाओं के साथ ऐसा करने वालों को करार सबक सिखाती हैं। न सिर्फ महिलाओं के प्रति अत्याचार, बल्कि उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और आत्मनिर्भरता के लिए 22 साल से काम कर रहीं जानकी वर्ष 2006 में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित होकर गाँव-जवार का मान बढ़ा चुकी हैं।

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भटहट ब्लाक के ताजपिपरा गाँव की जानकी देवी अपनी उम्र के 45वें पड़ाव तक उसी दशा में थीं, जहाँ घर के पुरुष सदस्यों की गाली, उनके लात-घूंसे खाना नियति मान ली जाती है। यह सिलसिला शुरू हुआ था उनकी 13 साल की उम्र में जब वह व्याह कर आईं थीं।. 1998 में महिला समाख्या के सम्पर्क में आने के बाद उस समय तक पूरी तरह निरक्षर रहीं जानकी के मन में शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ी, लेकिन घर वालों से कहने का मतलब था मार खाना।

ऐसे निकलती थीं पढ़ने के लिए

पढने का एक जतन निकाला। घर से निकलती थीं खेत जाने को और बहाने से महिला समाख्या के साक्षरता केंद्र पहुँच जाती थीं। शिक्षा के महत्व के साथ यह भी बहन हुआ की घरेलु हिंसा के खिलाफ जब तक चुप्पी रहेगी, तब तक जीवन गुलामी की जंजीरों में ही जकड़ा रहेगा। अचानक उनके साक्षर होने के प्रयास की जानकारी घरवालों को हो गई, फिर क्या था उन्हें पीटने की कोशिश। पहली बार उन्होंने अपने प्रति हिंसा की आवाज़ उठाई तो पति ने घर से निकाल दिया। उस दौर को याद कर वह भावुक हो जाती हैं कि उन्हें घर से निकालने के पति के फैसले में बेटे की भी रजामंदी थी। बेघर होना उन्हें गंवारा था लेकिन अब उत्पीड़न सहना मुमकिन नही था। घर की पुरुष सत्ता के खिलाफ उनकी जंग कामयाब हुई और तीन माह बाद उनकी घर वापसी।

अब बन गई महिलाओं की टीम

घरेलू हिंसा के खिलाफ अपनी पहली जंग जीतने के बाद जानकी देवी ने अन्य महिलाओं को भी इससे बचाने को ही अपने बाकी जीवन का मकसद बना लिया। मुहिम शुरू हुई तो बाधाएं भी आईं लेकिन उनका हौसला कम नहीं हुआ। जहाँ भी महिला के प्रति हिंसा की जानकारी होती, जानकी उसकी लड़ाई लड़ने पहुँच जातीं। जिन्हें उनके प्रयासों से हक़ मिलता गया, वो महिलाएं उनकी टीम में शामिल होती गईं  ताजपिपरा, परशुरामपुर, खैराबाद, बनकटिया, नवीपुर समेत करीब बीस गांवो में चार सौ से अधिक महिलाओं को उत्पीड़न के खिलाफ आवाज़ उठाना सिखा चुकी हैं। यही नहीं, इस दौरान उन्होंने उन्हें शिक्षा के प्रति अपने रुझान को कम नहीं होने दिया और वर्तमान में वह बड़े गर्व के साथ बताती हैं की घर वालों को बना-खिला के लालटेन में पढ़कर उन्होंने कक्षा पांच के स्तर का ज्ञान हासिल कर लिया है। सरस्वती स्वयं सहायता समूह चला रहीं जानकी देवी घरेलू हिंसा, छेड़खानी, बाल विवाह के खिलाफ पाठ पढ़ाने के साथ ही कच्ची शराब के धंधे पर भी कहर बरपाती हैं। उनकी महिला टीम की एकजुटता देख इस काले धंधे के कारोबारियों की गुंडई नहीं चल पाती है।

प्रतिरोध की शक्ति से नोबेल शांति पुरस्कार के लिए हुईं नामित

2006 में नोबेल शांति पुरस्कार के 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में देश से 100 महिलाओं को विशेष तौर पर पुरस्कार के लिए नामित किया गया था। जानकी देवी देश के सबसे बड़े राज्य से नामित 9 महिलाओं में से एक रहीं।

सीएम योगी के मिशन शक्ति की हुईं मुरीद

जानकी देवी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा नवरात्र के पहले दिन शुरू किए गए मिशन शक्ति की मुरीद हो गईं हैं। महिलाओं की सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य, सम्मान और आत्म निर्भरता के लिए योगी सरकार के इस अभियान के बारे में उनका कहना है की अफसरों ने मुख्यमंत्री की मंशा के अनुरूप काम किया तो महिला सुरक्षित और शिक्षित होकर वास्तव में समाज में बराबरी का हक पा सकेगी। जानकी देवी का कहना है कि घर, खेती, भैंस सबकी देखभाल करने के बाद भी मार खाती थी, गाली सुनती थी। निरक्षर रहने तक यही जिंदगी थी। अक्षर ज्ञान होने के साथ ही ठान लिया था कि उत्पीड़न नहीं सहना है। जिन घरवालों ने निकल दिया था,  कामयाब होने पर अब वही सहयोग देने लगे हैं।


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