कश्मीर से धारा 35-A हटा तो 370 का कोई मतलब नहीं रहेगा
गोरखपुर विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. टीएन मिश्र का कहना है कि जम्मू-कश्मीर से धारा 35-ए ही सबसे बड़ी समस्या है।
By Edited By: Published: Tue, 11 Jun 2019 05:30 AM (IST)Updated: Tue, 11 Jun 2019 05:10 PM (IST)
गोरखपुर, जेएनएन। जम्मू-कश्मीर प्रांत को विशेष दर्जा देने वाले सांविधानिक प्रावधान अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ए को लागू रखने अथवा समाप्त करने की बहस का अंजाम जो भी हो, हमें संविधान की मूल भावना और जम्मू-कश्मीर की बेहतरी की जरूरतों को दरकिनार नहीं करना चाहिए। बगैर जम्मू-कश्मीर की विधानसभा को भरोसे में लिए इसे समाप्त कर पाना न तो नैतिक दृष्टि से उचित होगा व ही विधित: सही।
बगैर चर्चा-बहस और स्वस्थ माहौल बनाएं, इस संवेदनशील प्रावधान में किसी तरह का बदलाव किया जाना संभव नहीं है। यह कहना है दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के विधि विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ.टीएन मिश्र का, जो दैनिक जागरण कार्यालय में आयोजित पाक्षिक विमर्श में अपने विचार रख रहे थे। 'अनुच्छेद 370 कैसे समाप्त हो' विषय पर चर्चा करते हुए डॉ. मिश्र ने इन चर्चित सांविधानिक प्रावधानों के इतिहास की जानकारी भी दी। बताया कि, 17 अक्टूबर, 1949 को अनुच्छेद 370, संविधान में शामिल हुआ। इस भाग का शीर्षक 'अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष प्रावधान' है।
इसे अस्थाई बताकर शामिल किया गया था, पर अब तक क्यों लागू है, इस पर विचार करने की जरूरत है। यह अनुच्छेद भारतीय संविधान से जम्मू-कश्मीर को कुछ हद तक छूट देता है। 35 ए है असल समस्या डॉ.मिश्र ने कहा कि 370 से बड़ी समस्या है अनुच्छेद 35 ए (कैपिटल)। 14 मई 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा एक आदेश पारित किया गया था। इसके जरिये भारत के संविधान में एक नया अनुच्छेद जोड़ दिया गया, यही आज लाखों लोगों के लिए अभिशाप बन चुका है।
यह अनुच्छेद परोक्ष रूप से विधानसभा को यह अधिकार भी दे देता है कि वह लाखों लोगों को 'स्थायी नागरिक' की परिभाषा से बाहर रख सके और उन्हें हमेशा के लिए शरणार्थी बनाए रखे।' डॉ. मिश्र ने कहा कि वहां लाखों की आबादी है जो पीढि़यों से वहीं रह रहे हैं, लोकसभा के चुनाव में मतदान कर सकते हैं, लेकिन विधानसभा या स्थानीय निकाय चुनावों में नहीं। वह रहते वहीं हैं लेकिन वहां राज्य सरकार की नौकरी नहीं पा सकते। कोई सुविधा नहीं पा सकते। नि:संदेह ऐसा होना भारतीय संविधान की हर नागरिक को समानता का अधिकार देने की भावना के विपरीत है।
डॉ. मिश्र ने बताया कि अनुच्छेद 35ए (कैपिटल ए) का जिक्र संविधान की किसी भी किताब में नहीं मिलता। दरअसल इसे संविधान के मुख्य भाग में नहीं बल्कि परिशिष्ट (अपेंडिक्स) में शामिल किया गया है। फिलहाल, इसकी सांविधानिकता पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है। दोनों अनुच्छेदों से जुड़े विभिन्न आयामों में डॉ.मिश्र ने विस्तार से जानकारी दी और कहा कि यह बहुत जरूरी है कि जम्मू-कश्मीर और केंद्र इससे जुड़े विवाद के समाधान को सर्वसम्मति से आगे आएं। यह कार्य सहकारी संघवाद को बढ़ावा देकर और मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति के बूते ही संभव हो सकता है। उन्होंने कहा कि कश्मीरवासियों को इस तथ्य से आश्वस्त होना चाहिये कि जम्मू-कश्मीर देश की आर्थिक प्रगति का हिस्सा है और भारत का अभिन्न अंग है।
बगैर चर्चा-बहस और स्वस्थ माहौल बनाएं, इस संवेदनशील प्रावधान में किसी तरह का बदलाव किया जाना संभव नहीं है। यह कहना है दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के विधि विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ.टीएन मिश्र का, जो दैनिक जागरण कार्यालय में आयोजित पाक्षिक विमर्श में अपने विचार रख रहे थे। 'अनुच्छेद 370 कैसे समाप्त हो' विषय पर चर्चा करते हुए डॉ. मिश्र ने इन चर्चित सांविधानिक प्रावधानों के इतिहास की जानकारी भी दी। बताया कि, 17 अक्टूबर, 1949 को अनुच्छेद 370, संविधान में शामिल हुआ। इस भाग का शीर्षक 'अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष प्रावधान' है।
इसे अस्थाई बताकर शामिल किया गया था, पर अब तक क्यों लागू है, इस पर विचार करने की जरूरत है। यह अनुच्छेद भारतीय संविधान से जम्मू-कश्मीर को कुछ हद तक छूट देता है। 35 ए है असल समस्या डॉ.मिश्र ने कहा कि 370 से बड़ी समस्या है अनुच्छेद 35 ए (कैपिटल)। 14 मई 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा एक आदेश पारित किया गया था। इसके जरिये भारत के संविधान में एक नया अनुच्छेद जोड़ दिया गया, यही आज लाखों लोगों के लिए अभिशाप बन चुका है।
यह अनुच्छेद परोक्ष रूप से विधानसभा को यह अधिकार भी दे देता है कि वह लाखों लोगों को 'स्थायी नागरिक' की परिभाषा से बाहर रख सके और उन्हें हमेशा के लिए शरणार्थी बनाए रखे।' डॉ. मिश्र ने कहा कि वहां लाखों की आबादी है जो पीढि़यों से वहीं रह रहे हैं, लोकसभा के चुनाव में मतदान कर सकते हैं, लेकिन विधानसभा या स्थानीय निकाय चुनावों में नहीं। वह रहते वहीं हैं लेकिन वहां राज्य सरकार की नौकरी नहीं पा सकते। कोई सुविधा नहीं पा सकते। नि:संदेह ऐसा होना भारतीय संविधान की हर नागरिक को समानता का अधिकार देने की भावना के विपरीत है।
डॉ. मिश्र ने बताया कि अनुच्छेद 35ए (कैपिटल ए) का जिक्र संविधान की किसी भी किताब में नहीं मिलता। दरअसल इसे संविधान के मुख्य भाग में नहीं बल्कि परिशिष्ट (अपेंडिक्स) में शामिल किया गया है। फिलहाल, इसकी सांविधानिकता पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है। दोनों अनुच्छेदों से जुड़े विभिन्न आयामों में डॉ.मिश्र ने विस्तार से जानकारी दी और कहा कि यह बहुत जरूरी है कि जम्मू-कश्मीर और केंद्र इससे जुड़े विवाद के समाधान को सर्वसम्मति से आगे आएं। यह कार्य सहकारी संघवाद को बढ़ावा देकर और मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति के बूते ही संभव हो सकता है। उन्होंने कहा कि कश्मीरवासियों को इस तथ्य से आश्वस्त होना चाहिये कि जम्मू-कश्मीर देश की आर्थिक प्रगति का हिस्सा है और भारत का अभिन्न अंग है।
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