खदेड़ने अथवा गृह युद्ध से नहीं निकलेगा असम मसले का हल
गोरखपुर : असम में अवैध रूप से रह रहे लोगों को घुसपैठिया कहें, अवैध निवासी कहें या फि
गोरखपुर : असम में अवैध रूप से रह रहे लोगों को घुसपैठिया कहें, अवैध निवासी कहें या फिर शरणार्थी मानें, इस बात में दो राय नहीं कि 40 लाख में से ज्यादातर लोग पीढि़यों से ¨हदुस्तान में ही रह रहे हैं। यह देश ही इनकी पहचान है। अब इन्हें देश से बाहर कर देने का फरमान, लाखों की आबादी को खानाबदोश बनने पर मजबूर कर देगी, जो दुनिया के लिए एक नई मुसीबत बन सकती है। पीढि़यों से रह रहे इन लोगों को 'वर्क परमिट' देकर इस विवाद का आसान, शांतिप्रिय और मानवतावादी मार्ग निकाला जा सकता है।
यह विचार दिया दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर गौरहरि बेहरा ने, जो सोमवार को दैनिक जागरण कार्यालय में पाक्षिक विमर्श श्रृंखला के तहत 'बाग्लादेशी घुसपैठियों के साथ क्या किया जाए' विषय पर अपनी बात रख रहे थे। एकल व्याख्यान में प्रो. बेहरा ने विस्तार से भारत-बांग्लादेश के सांस्कृतिक और राजनीतिक संबंधों का संदर्भ देते हुए अवैध प्रवासियों की समस्या को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर का दूसरा ड्राफ्ट जारी होने के बाद इतना तो यह है कि दिसंबर में जब अंतिम ड्राफ्ट जारी होगा तब भी लाखों की आबादी पर अवैध होने का ठप्पा लगा होगा। उन्होंने कहा कि अवैध पाए जा रहे लोगों में ज्यादातर मुस्लिम हैं और यह लोग कई पीढि़यों से यहीं रह रहे हैं। बाग्लादेश के मुस्लिमों को असम के मुस्लिमों से अलग कर पाना आसान नहीं है, क्योंकि इन दोनों के इनकी जीवनशैली और बोलचाल को लेकर मामूली अंतर है। सत्ताधारी भाजपा इस पर भी ध्यान देना नहीं चाहती कि किसी परिस्थिति में यदि भारत इन अवैध शरणार्थियों को बाग्लादेश निर्वासित करेगा तो बाग्लादेश के इसे स्वीकार करने की कितनी संभावना है। यही नहीं संकट का एक बड़ा पहलू नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन का वह प्रस्ताव है, जिसके मुताबिक भविष्य में किसी भी पड़ोसी देश के मुस्लिम को भारतीय नागरिकता नहीं देने का प्रावधान है। पहले चरण में एनसीआर की सूची में शामिल होने से रह गए लोगों को यह प्रावधान और संकटग्रस्त कर रहा है। बेहतर यही होगा कि इन लोगों को मताधिकार न देते हुए वर्क परमिट जारी कर दिया जाए। मंत्रियों के एक समूह ने 2001 में पेश प्रस्ताव में कहा था कि इन्हें वर्क परमिट दिया जाएगा, जो उनका एकमात्र वैध दस्तावेज होगा। हालाकि, वे वोट नहीं कर पाएंगे और इस तरह किसी भी पार्टी का वोटबैंक नहीं बन पाएंगे। यह रास्ता सबसे सटीक हल लगता है।
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मसले को विवाद का रूप न दें राजनीतिक दल
प्रो. बेहरा ने कहा कि दुनिया में अवैध प्रवासियों की समस्या नई नहीं है, कमोबेश हर देश इससे जूझ रहा है। पर, हमारे देश में राजनीतिक दल जिस भाषा में इसका हल निकालने की बात कर रहे हैं, वह किसी भी शांति, स्थाई और सर्वमान्य हल निकलने की उम्मीद नहीं जगाती। यह स्थिति सोचनीय है। बेहतर होता कि सब मिल बैठकर शांति का रास्ता निकालने की कोशिश करें। न कोई किसी को खदेड़ने का एलान करे और न ही किसी को गृह युद्ध की धमकी देनी चाहिए। आवश्यकता है कि इस मसले के समाधान में बांग्लादेश सरकार से भी मदद ली जाए।
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अंतिम लिस्ट जारी करने में बहुत सावधानी जरूरी : एनआरसी ड्राफ्ट की बात करते हुए उन्होंने कहा कि जुलाई में जारी एनआरसी का ड्राफ्ट अंतिम नहीं है, फिर भी इसके अनुसार 40 लाख लोग ऐसे हैं जो भारत के नागरिक नहीं हैं। इन 40 लाख में देश के पाचवे राष्ट्रपति रहे फखरुद्दीन अली अहमद भी शामिल हैं, कई स्थानीय विधायक भी शामिल हैं। यानी यह तो तय है कि ड्राफ्ट बनाने में चूक हुई है। ऐसे में दिसंबर में अंतिम सूची जारी करने से पहले बड़ी सावधानी की आवश्यकता है, क्यों कि तब तक देश में लोकसभा चुनाव की दहलीज पर पहुंच चुका होगा। अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब भी यह दशा है तो उस समय क्या-क्या हो सकता है।