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जी हां, नदियो मे पैसे डालना पर्यावरण के लिए खतरे की घटी

महेद्र कुमार त्रिपाठी, गोरखपुर: भारत अनेकता मे एकता और विविध संस्कृतियो वाला देश है।

By Edited By: Published: Wed, 07 Feb 2018 01:08 PM (IST)Updated: Wed, 07 Feb 2018 05:03 PM (IST)
जी हां, नदियो मे पैसे डालना पर्यावरण के लिए खतरे की घटी
जी हां, नदियो मे पैसे डालना पर्यावरण के लिए खतरे की घटी
महेद्र कुमार त्रिपाठी, गोरखपुर: भारत अनेकता मे एकता और विविध संस्कृतियो वाला देश है। देश के विभिन्न हिस्सो मे विभिन्न धार्मिक पर्वो पर स्नान के समय नदियो मे सिक्का डाला जाता है। इसके अलावा तमाम रेलगाडि़या कई नदियो को पार करती हुई आगे बढ़ती है। गाडि़यो मे सवार यात्रियो द्वारा धार्मिक दृष्टिकोण से हर रोज नदियो मे सिक्के फेकने का चलन है। कही गंगा नदी तो कही यमुना, कही सरयू तो कही राप्ती और क्षिप्रा आदि नदियो मे सिक्के डाले जाते है। इन नदियो के ऊपर से रेलवे ने बड़े ब्रिज बनाए है। इन ब्रिजो से तमाम रेल गाडि़यां गुजरतीं है। गाडि़यो मे सवार आस्थावान लोग इन नदियो मे सिक्के डालकर श्रद्धा अर्पित करते है। अगर रोज के सिक्कों के हिसाब से गणना की जाये तो ये रकम कम से कम दहाई के चार अको को तो पार कर ही जाएगी। ----------------- सिक्के और धातु का वैज्ञानिक तथ्य -वर्तमान मे सिक्के 83 फीसद लोहा और 17 फीसद क्रोमियम के बने होते है। क्रोमियम एक भारी जहरीली धातु है। क्रोमियम दो अवस्था मे पाया जाता है। पहली अवस्था मे यह जहरीली नही मानी जाती है। दूसरी अवस्था सीआर है। इस अवस्था मे यह क्रोमियम 0.05 फीसद प्रति लीटर से ज्यादा हमारे लिए जहरीली है। जो सीधे कैसर जैसी असाध्य बीमारी को जन्म देती है। सोचिए, एक नदी जो अपने आप मे बहुमूल्य खजाना छुपाए हुए है और हमारे एक दो रुपये से कैसे उसका भला हो सकता है ? ------------------------ तांबे के सिक्के से शुरू हुआ चलन -मुगलकालीन समय मे दूषित पानी से बीमारिया हो जाया करती थी। बताते है कि तब प्रजा के लिए ऐलान करवाया गया कि हर व्यक्ति अपने आसपास के जलस्त्रोत या जलाशयो मे ताबे के सिक्के अवश्य डाले। वैज्ञानिक दृष्टि से ताबा जल को शुद्ध करने वाली सबसे अच्छी धातु है। आजकल के सिक्के नदी मे डालने से जल प्रदूषण बढ़ता है और बीमारियो को बढ़ावा मिलता है। -------------------- क्रोमियम सेहत के लिए खतरनाक: पर्यावरणविद् गोरखपुर विश्व विद्यालय के प्राणि विज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष व पर्यावरणविद् डा.सीपीएम त्रिपाठी का मानना है कि नदियो मे पहले तो तांबा जल को शोधित करने का माध्यम रहा है, जिसके कारण तांबे व एल्युम्यूनियम के सिक्के नदियो मे आस्था के नाम पर डाले जाते थे, लेकिन अब तो सिक्का बदल गया है, सिक्को मे क्रोमियम और लोहा की मात्रा इतना ज्यादा है जो सेहत के लिए काफी हानिकारक है। क्रोमियम लीवर को और फेफड़े को नुकसान पहुंचाता है। इसके अलावा नर्वस सिस्टम यानी तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है। जलीय जीवो के स्वास्थ्य पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जल के पारिस्थीतिकीय तंत्र के प्रत्येक चरण उत्पादक से लेकर उपभोक्ता पर असर पड़ता है। प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा नदियो के जलीय पौधे उत्पादक माने जाने वाले शैवाल, जलकुंभी आदि मे आता है तथा विभिन्न उपभोक्ता चरणो मे यानी कि मछलियो मे पहुंचता है। उन मछलियो को मनुष्य सेवन करता है। जिसके जरिए वह मनुष्यो मे प्रवेश करता है। जो सेहत के लिए घातक है। गौरतलब है कि एक चरण से दूसरे चरण मे जाने पर बायोमैग्निफिकेशन क्रिया द्वारा इसकी घातक क्षमता बढ़ जाएगी। प्रो. त्रिपाठी का मानना है कि सिक्का यदि नदियो मे जाएगा तो वह बाजार से गायब हो जाएगा। जिसका कुछ असर अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। पर्यावरण के लिए देश भर मे जन जागरण करने की आवश्यकता है, जिससे जीव जंतुओ की रक्षा की जा सके। ------------------------

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