अदृश्य किरणें करेंगी जंगलों की सुरक्षा, डीआरडीओ विकसित कर रहा खास सुरक्षा प्रणाली
संसाधनों की कमी की वजह से जंगलों की सुरक्षा की गंभीर चुनौतियों से हर समय जूझने वाले वन विभाग की राह अब आसान होने वाली है। डीआरडीओ इसके लिए लेजर सुरक्षा प्रणाली तैयार कर रहा है।
गोरखपुर, नवनीत प्रकाश त्रिपाठी। संसाधनों की कमी की वजह से जंगलों और वन्य जीवों की सुरक्षा की गंभीर चुनौतियों से हर समय जूझने वाले वन विभाग की राह अब आसान होने वाली है। डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट आर्गनाइजेशन) इसके लिए लेजर सुरक्षा प्रणाली तैयार कर रहा है। इसके बाद वन क्षेत्र में अनाधिकृत प्रवेश कर पाना नामुमकिन तो होगा ही, वन्य जीवों की भी आसानी से सुरक्षा हो सकेगी।
बहुमूल्य वनोत्पादों की चोरी आम बात है। जंगलों को सर्वाधिक नुकसान अवैध कटान से होता है। कमजोर सुरक्षा प्रणाली का लाभ उठाकर तस्कर वन्य जीवों को भी निशाना बनाते रहते हैं। कई बार वन्य जीव भटक कर जंगल क्षेत्र से निकलकर खुले में आ जाते हैं। सुरक्षा के नाम पर लोग उन वन्य जीवों को मार डालते हैं। इन मुश्किलों से निजात पाने के लिए प्रदेश सरकार के निर्देश पर वन विभाग ने देश के लिए सुरक्षा प्रणाली तैयार करने वाली अग्रणी संस्था डीआरडीओ से संपर्क कर सुरक्षा प्रणाली तैयार करने का अनुरोध किया था।
अदृश्य किरणों का होगा सुरक्षा घेरा
सुरक्षा घेरा (लेजर बाड़) अदृश्य किरणों के रूप में होगा। इन किरणों को नंगी आंख से देखा नहीं जा सकेगा। इसे तैयार करने में इस बात का खासतौर से ध्यान रख जा रहा है कि इसकी जद में आने पर किसी तरह का शारीरिक नुकसान न पहुंचे। क्योंकि वन्य जीव भी सुरक्षा घेरे को तोड़ सकते हैं। ऐसी स्थिति में उनको सुरक्षित रखना भी विभाग की प्राथमिकता में शामिल है।
कंट्रोल रूम से रखी जाएगी नजर
इसके लिए कंट्रोल रूम स्थापित किया जाएगा। अनाधिकृत प्रवेश का प्रयास करते ही अदृश्य किरणें कंट्रोल रूम को संदेश भेज देंगी और वन सुरक्षाकर्मी मौके पर पहुंचकर उस व्यक्ति को दबोच लेंगे। लेजर सुरक्षा प्रणाली की वजह से वन्य जीवों के जंगल से बाहर निकलने की जानकारी भी कंट्रोल रूम को समय रहते हो जाएगी।
शीघ्र लागू होगी यह व्यवस्था
प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन विभागाध्यक्ष पवन कुमार ने बताया डीआरडीओ के सहयोग से लेजर सुरक्षा प्रणाली तैयार की जा रही है। प्रदेश के सभी वनों को इस प्रणाली से सुरक्षित करने की योजना पर काम चल रहा है। डीआरडीओ से बहुत जल्दी यह प्रणाली मिलने की उम्मीद है।