Move to Jagran APP

यहां पड़े गांधी के कदम और नौकरी छोड़ स्वतंत्रता सेनानी बन गए मुंशी प्रेमचंद व फिराक गोरखपुरी Gorakhpur News

महात्‍मा गांधी आठ फरवरी 1921 को गोरखपुर पहुंचे थे। गांधी से प्रेरणा लेकर मुंशी प्रेम चंद और फ‍िराक गोरखपुरी स्‍वतंत्रतता आंदोलन में कूदे थे।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Wed, 02 Oct 2019 09:45 AM (IST)Updated: Thu, 03 Oct 2019 08:47 AM (IST)
यहां पड़े गांधी के कदम और नौकरी छोड़ स्वतंत्रता सेनानी बन गए मुंशी प्रेमचंद व फिराक गोरखपुरी Gorakhpur News
यहां पड़े गांधी के कदम और नौकरी छोड़ स्वतंत्रता सेनानी बन गए मुंशी प्रेमचंद व फिराक गोरखपुरी Gorakhpur News

गोरखपुर, डॉ. राकेश राय। समय तो अल सुबह का था, लेकिन रौनक शाम सी थी। भारत माता की जय, महात्मा गांधी की जय जैसे नारों से अपना गोरखपुर रेलवे स्टेशन गुंजायमान हो रहा था। इन सबके बीच लोगों की निगाहें उस ट्रेन पर टिकी थीं, जिसमें जंगे-आजादी को नई दिशा देने वाली शख्सियत को आना था। ट्रेन दिखी तो लोगों का जोश चरम पर पहुंच गया। ट्रेन रुकी तो इंतजार की घडिय़ां समाप्त हुईं और उसमें से घुटनों तक धोती पहने दुबला-पतला शख्स निकला। वह और कोई नहीं महात्मा गांधी थे, जो जंगे-आजादी में गोरखपुर की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए गोरखपुर पहुंचे थे। दिन था आठ फरवरी 1921 का।

loksabha election banner

गांधी को सुनने आए थे एक लाख लोग

स्टेशन के बाहर निकलने के बाद उन्होंने लोगों का मान रखा और एक ऊंचे स्थान पर खड़े होकर जनता का अभिवादन स्वीकार किया। सामने एक चादर बिछी थी, जिसपर पैसों की बरसात हो रही थी। उसी दिन उन्हें बाले मियां के मैदान में जनता को संबोधित करना था। दौर खिलाफत आंदोलन का था, सो आजादी के लिए सांप्रदायिक सौहार्द्र कायम करना भी गांधी जी के आगमन का उद्देश्य था। उस समय के दस्तावेज बताते हैं अपने लोकप्रिय नेता को सुनने के लिए मैदान में एक लाख से अधिक लोगों का जनसमूह था। यह उन दिनों की बात है कि जब महानगर की आबादी महज 58 हजार थी। यातायात के सीमित संसाधनों के दौर में जनसमूह का आंकड़ा इतिहास कायम करने वाला था। गांधी जी के करीब एक घंटे के ओजपूर्ण भाषण ने लोगों में जंगे-आजादी के लिए आश्चर्यजनक रूप से ऊर्जा भर दी। गोरखपुर में आजादी के परवानों की लंबी फौज तैयार हो गई। बहुत से लोग तो सरकारी नौकरी छोड़ आंदोलन का हिस्सा बन गए। शहर से लेकर गांव तक चरखा चलाने वालों की बाढ़ सी आ गई।

ऐसे बनी गांधी के आगमन की भूमिका

अक्टूबर 1920 को मौलवी मकसूद अहमद फैजाबादी और गौरीशंकर मिश्रा की अध्यक्षता में हुई सार्वजनिक सभा में गांधी को गोरखपुर बुलाने का निर्णय हुआ। उन्हें बुलावा भेजा गया। उधर बाबा राघवदास की अगुवाई में एक प्रतिनिधिमंडल ने कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में उनसे मिलकर आने की अपील की।

बिहार से आए थे गांधी

मौलाना शौकत अली के साथ महात्मा गांधी बिहार से यहां आए। उस समय गोरखपुर की पूर्वी सीमा भटनी तक लगती थी। गोरखपुर से कांग्रेसियों का एक प्रतिनिधिमंडल अपनी नेताओं की अगवानी के लिए भटनी गया था। देवरिया में उनके दर्शन के लिए हजारों लोग मौजूद थे।

नौकरी छोड़ स्वतंत्रता सेनानी बने प्रेमचंद व फिराक

आठ फरवरी 1921 को बाले मियां के मैदान से महात्मा गांधी का भाषण सुनने वालों में मुंशी प्रेमचंद और फिराक गोरखपुर जैसी शख्सियतें भी मौजूद थीं। गांधी का भाषण सुन दोनों ही इतने मुरीद हुए कि अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दी और स्वतंत्रता सेनानी बन गए।

गांधी से मिल गया होटल को नाम

बक्शीपुर के पास एक होटल है गांधी मुस्लिम होटल। इस होटल के नाम के पीछे भी गांधी जी के गोरखपुर आगमन से जुड़ा किस्सा है। उन दिनों यह होटल न होकर टी-स्टाल था, जहां आजादी के परवानों का जमघट लगा करता था। इसे पहले गांधी टी-स्टाल और बाद में गांधी मुस्लिम होटल नाम तब मिल गया जब बाले मियां मैदान तक जाने के दौरान गांधी वहां कुछ देर ठहरे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.