यहां से नेपाल पर रखते थे नजर, अब गुजरे जमाने की हुई बात
अंग्रेजों के जमाने में नेपाल की सीमा पर नजर रखने के लिए महरजगंज जनपद में बनाए गए बुर्ज अब अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं।
गोरखपुर/महराजगंज, (जेएनएन)। साम्राज्य को सहेजने की नियत से अंग्रेजों के द्वारा जगह-जगह ऊंचे स्थानों पर बनवाए गए बुर्ज अब गुजरे जमाने की चीज बन गए हैं। ब्रिटिश गवर्नर वारेन हेस्टिंग के समय सुर्खी व चूने से निर्मित इन बुर्जों की हिफाजत व उचित देखभाल न होने से इनके अस्तित्व पर खतरा पैदा हो गया है। कभी इस बुर्ज से नेपाल तक नजर रखी जाती थी। सरकार द्वारा इसके रखरखाव के लिए किए जा रहे प्रयास वर्षों से ठंडे बस्ते में चले जाने से करीब ढाई सौ साल पूर्व बने ये बुर्ज परत दर परत उखडऩे शुरू हो गए हैं। यदि समय रहते इनपर ध्यान नहीं दिया गया तो किताबों के पन्नों में सिमटकर यह इतिहास बनकर रह जाएगा। अंग्रेजी हुकूमत के समय निर्मित बुर्ज उपेक्षा के शिकार हैं। नई पीढ़ी के लिए कौतूहल बने प्राचीन ईटों से काफी ऊंचाई पर स्थित इन बुर्ज पर सरकार या शासन प्रशासन मेहरबान नहीं है।
1773-1785 के बीच हुआ था निर्माण
महराजगंज जिले में बने इस बुर्ज पर वर्तमान में कोई जानकारी अंकित नहीं है लेकिन गांवों के बड़े बुजुर्ग व जानकार बताते हैं कि भारत में शासन कर रहे अंग्रेजी हुकूमत के नुमाइंदों ने इसे तामीर कराया था। इतिहास के पन्नों में ब्रिटिश गवर्नर वारेन हेस्टिंग के भारतीय कार्यकाल 1773-1785 के समय बुर्ज निर्माण की बात आई है। ऊंचाई पर बने इन बुर्जों की मदद से अंग्रेजी हुकूमत के समय अधिकारी बाढ़ ,सूखा अथवा किसी दैवीय आपदा के समय इसपर चढ़कर जायजा लेते थे। निचलौल तहसील क्षेत्र के दो स्थानों क्रमश: ग्राम पंचायत पडऱी उर्फ मीरगंज एवं ग्राम पंचायत सिंहपुर में बुर्ज का अब भी अस्तित्व है लेकिन उपेक्षा के चलते ग्रामीणों ने इसपर अतिक्रमण कर कपड़ा सुखाने से लेकर गोबर के उपले पाथने का कार्य करते हैं।
क्षेत्रीय लोग इसे गुर्जी के नाम से पुकारते हैं। पड़ोसी गांव के निवासी व अवकाश प्राप्त शिक्षक नर्वदा नारायण मिश्र तथा पूर्व प्रधान रामनिरंजन दास ने बताया कि केंद्र सरकार के निर्देश पर कुछ कर्मचारी ग्राम पड़री स्थित बुर्ज पर आकर उसकी साफ सफाई कर कभी कभी खाना पूर्ति कर जाते हैं लेकिन वर्षों से इसकी उपेक्षा चलते बुर्ज के ऊपर व इर्द गिर्द पेड़ पौधे उग आए हैं। इसी क्रम में ग्राम सिंह के पश्चिम सिवान एवं जंगल के सटे पूरब स्थित बुर्ज उपेक्षा से ध्वस्त के कगार पर है। 70 के दशक में तत्कालीन ग्राम प्रधान भागवत तिवारी व ग्रामवासियों ने ईंट से चुनाईं कराकर इसका जीर्णोद्धार कराया था।