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बोले विशेषज्ञ- यूएनओ के मानक पर जल तनाव की स्थिति से गुजर रहा भारत Gorakhpur News

पर्यावरणविद् प्रो.गोविंद पांडेय ने कहा कि पूरे विश्व के साथ-साथ हमारे देश में पानी की समस्या विकराल रूप धारण कर रही है।

By Edited By: Published: Tue, 23 Jul 2019 07:02 AM (IST)Updated: Tue, 23 Jul 2019 01:45 PM (IST)
बोले विशेषज्ञ- यूएनओ के मानक पर जल तनाव की स्थिति से गुजर रहा भारत Gorakhpur News
बोले विशेषज्ञ- यूएनओ के मानक पर जल तनाव की स्थिति से गुजर रहा भारत Gorakhpur News
गोरखपुर, जेएनएन। पूरे विश्व के साथ-साथ हमारे देश में पानी की समस्या विकराल रूप धारण कर रही है। एक तरफ जल को लेकर मांग के मुकाबले पूर्ति का संतुलन बिगड़ रहा है तो दूसरी तरफ प्रदूषण की समस्या मुंह बाए खड़ी है। ऐसे में जल संरक्षण के संकल्प को लेकर केवल चर्चा से काम नहीं चलेगा, इसके लिए सभी को मिलकर आगे आना होगा।
यह कहना है कि मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पर्यावरण इंजीनियरिंग विभाग के अध्यक्ष और पर्यावरणविद् प्रो.गोविंद पांडेय का। प्रो.पांडेय सोमवार को दैनिक जागरण के जागरण विमर्श कार्यक्रम में 'जल संरक्षण को प्रभावी कैसे बनाए 'विषय पर अपने बहुमूल्य विचार रख रहे थे। समस्या की गंभीरता पर चर्चा को आगे बढ़ाते हुए प्रो.पांडेय ने बताया कि देश में दुनिया का चार फीसद जल है, लेकिन जनसंख्या की भागीदारी 16 फीसद है। दुनिया के 20 फीसद पशु भी देश में मौजूद हैं। इतना ही नहीं जनसंख्या में लगातार बढ़ोत्तरी का सिलसिला जारी है जबकि जलस्रोत अनवरत कम हो रहा है।
पानी के सबसे बड़े स्रोत वर्षा की चर्चा करते हुए प्रो.पांडेय ने कहा कि देश में प्रतिवर्ष 4000 बिलियन क्यूबिक मीटर बारिश होती है, जिसमें से केवल 60 बिलियन क्यूबिक मीटर का ही इस्तेमाल हम कर पाते हैं। इसे जितना अधिक बचा लेंगे, यह हमारी उपलब्धि होगी। देश में घट रही प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता पर चिंता जताते हुए प्रो.पांडेय ने कहा कि यूएनओ के मानक के मुताबिक हर व्यक्ति के लिए जल की उपलब्धता कम से कम 1700 घन मीटर होनी चाहिए। इससे कम जल की उपलब्धता जल तनाव की स्थिति मानी जाती है और यदि यह उपलब्धता 1000 घन मीटर से कम हो जाएगी, तो वह भारी जल तनाव की स्थिति होती है।
उन्होंने बताया कि 2001 में भारत में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता 1702 घन मीटर आंकी गई थी। ऐसे में यह तय है कि इस समय हम जल को लेकर तनाव की स्थिति से गुजर रहे हैं। 70 खर्च 10 फीसद भरपाई प्रो.गोविंद पांडेय ने देश में जल के दोहन और भरपाई में बढ़ रहे असंतुलन की चर्चा करते हुए कहा कि आंकड़ों की बात करें तो इस समय हम उपलब्ध समस्त भूजल का 70 फीसद खर्च कर रहे हैं, जबकि 10 फीसद ही उसकी भरपाई हो पा रही है। खर्च और भरपाई का अंतर संतुलित भूजल स्थिति के लिए 50 फीसद से अधिक नहीं होना चाहिए। नतीजा भूजल का स्तर तेजी से नीचे गिर रहा है।
ऐसे में जल की उपलब्धता बनाए रखने के लिए भूजल दोहन पर अंकुश लगाना बेहद जरूरी है। घटाना होगा पानी के इस्तेमाल का औसत प्रो.पांडेय ने कहा कि मानक के अनुसार एक शहरी व्यक्ति प्रति दिन 135 लीटर पानी खर्च करता तो एक ग्रामीण व्यक्ति 70 लीटर। इनमें से 10 लीटर वह खानपान के लिए खर्च करता है जबकि बाकी का अन्य कार्य के लिए। आकलन के अनुसार अन्य कार्य में खर्च होने वाले पानी का 15 फीसद बर्बाद होता है। अगर इस बर्बादी में पांच फीसद की कमी लाने में भी सफलता मिल जाए तो जल संरक्षण अभियान की दिशा में बड़ी पहल होगी। किसानों को दी जाए नियमित वाटर मैनेजमेंट की ट्रेनिंग खेती के लिए कई बार पानी कम पड़ जाता है, तो कई बार उपलब्ध पानी की बर्बादी भी देखने को मिलती है।
इसके लिए जरूरी है कि किसानों को वाटर मैनेजमेंट की नियमित ट्रेनिंग दी जाए, जिससे वह कम से कम पानी में बेहतर फसल ले सकें। अद्भुत है जागरण का 'आधा गिलास पानी' अभियान दैनिक जागरण के 'आधा गिलास पानी' अभियान की प्रो.गोविंद पांडेय ने भूरि-भूरि सराहना की। उन्होंने कहा कि यह अद्भुत अभियान पेयजल के संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण पहल है। इसकी खूबी और उपयोगिता की वजह से ही इसे सरकार और शासन सभी ने आत्मसात किया है। निश्चित रूप से यह अभियान जल संरक्षण की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।

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