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कोरोना काल में अपनों से दूरी बनी तो बढ़़ गया पशुओं से प्रेम Gorakhpur News

गोरखपुर में इस समय करीब चार से पांच हजार की संख्‍या में श्‍वान हैं। पिछले वर्षों से देखा जा रहा है कि शहर के कद के साथ श्‍वान पालने वालों की संख्‍या भी बढ़ रही है। कोरोना काल में श्‍वान की बिक्री बढ़ी है।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Tue, 03 Nov 2020 07:45 AM (IST)Updated: Tue, 03 Nov 2020 05:56 PM (IST)
कोरोना काल में अपनों से दूरी बनी तो बढ़़ गया पशुओं से प्रेम Gorakhpur News
कोरोना काल में श्‍वान की बिक्री बढ़ी है। - प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

गोरखपुर, जेएनएन। कोरोना काल में लोगों का अकेलापन दूर करने में श्‍वान की भूमिका अहम रही है। घर छोटे बच्‍चे हों, अथवा बड़े बुजुर्ग, हर किसी को श्‍वान ने व्‍यस्‍त रखा है। शहर के कई घरों में तो श्‍वान पहले मौजूद रहने के बावजूद कोई उसका साथी ले आया तो किसी ने अपने लिए विशेष ब्रीड की खरीदारी की। इसका नतीजा है कि करीब डेढ़ गुना पेट्स की मांग बढ़ गई है। जाहिर है जब शहर में श्‍वान की संख्‍या बढ़ेगी तो इससे जुड़ी दुकानों की रौनक भी बढ़ेगी।

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डेढ़ गुना बढ़ की श्‍वान की मांग

शहर में इस समय करीब चार से पांच हजार की संख्‍या में श्‍वान हैं। पिछले वर्षों से देखा जा रहा है कि शहर के कद के साथ श्‍वान पालने वालों की संख्‍या भी बढ़ रही है। शहर के पंजीकृत ब्रीडर व बीड लवर प्रकाश लालवानी का कहना है कि इस बार करीब सवा से डेढ़ गुना पेट्स की ब्रिकी बढ़ी है। उनके पास इटैलियन ब्रीड कैनी कोर्सो मौजूद है। वह कहते हैं कि वह जब इसे लेकर आए थे तो यह यूपी का पहला ब्रीड था।

ऐसे बढ़ी मांग

लाकडाउन के कारण लोग खाली रहना सीख गए। समय का उपयोग और उसका आनंद लेने के लिए अधिकांश लोगों में श्‍वान पालने का शौक जाग गया। परिवहन बंद होने के कारण ब्रीड के लिए लोगों को अच्‍छी खासी कीमत चुकानी पड़ी। रेलसेवा सुचारू रूप से संचालित न होने के कारण लोगों को पेट्स मंगाने के लिए निजी वाहनों का उपयोग करना पड़ा। ऐसे में श्‍वान की कीमत बढ़ गई। जो ब्रीड लोगों को सात हजार रुपये में मिल जाता था, उसके लिए लोग 15 से 20 हजार रुपये खर्च कर रहे हैं।

यहां बढ़ गई दुकानों की रौनक

शहर में स्‍टेशन रोड, वीनस मार्केट, बेतियाहाता, गोलघर आदि मिलाकर दर्जन भर से अधिक दुकानें ऐसी हैं, जहां श्‍वान के लिए दवाइयां व फूड मिलते हैं। यहां सामान्‍य दिनों में सन्‍नाटा पसरा रहता है। इसकी वजह है कि अधिकांश लोग श्‍वान के लिए दवाइयां व फूड लखनऊ व दिल्‍ली से मंगा लेते हैं। लेकिन कोरोना काल में स्‍थानीय दुकानों को महत्‍व मिला है। शहर के सभी दुकानों पर चहल-पहल दिखती है। अब शहर के कई माल में भी डाग फूड नजर आने लगा है।

शहर में प्रजातियां हैं मौजूद

गोल्डन रिट्रीवर, लैब्राडोर, पोमेरेनियन, जर्मन शेफर्ड, डाबरमैन, हस्की आदि। 

कोरोना काल में शहर की आबोहवा शुद्ध रही है। यह लोगों के सेहत के लिए भी हितकर है। इससे सभी जीव, जंतुओं को भी लाभ मिला होगा। बावजूद इसके पाली क्‍लीनिक में श्‍वान उतनी संख्‍या में पहुंच रहे हैं, जितना पहले आते थे। कई नये लोग भी पहुंच रहे हैं। स्‍पष्‍ट है कि शहर में श्‍वान की संख्‍या बढ़ी है। - डाक्‍टर राजेश त्रिपाठी, अधीक्षक पाली क्‍लीनिक

शहर में करीब डेढ़ गुना श्‍वान की मांग बढ़ी है। इस समय करीब चार से पांच हजार की संख्‍या में शहरी क्षेत्र में पालतू श्‍वान हैं। कोरोना काल में लोगों में पशु प्रेम बढ़ा है। श्‍वान पालने के कई लाभ हैं। यह लोगों व्‍यस्‍त रखता है और घर को सुरक्षित भी। - डाक्‍टर संजय श्रीवास्‍तव, पशु चिकित्‍साधिकारी। 


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