मैं भी चौकीदार...सोचा नहीं था हम भी कभी मुद्दा बनेंगे
एक तरफ चौकीदारों की महत्वपूर्ण भूमिका की चर्चा हो रही है तो दूसरी तरफ चौकीदार के मायने को लेकर एक दल पर चोट करने की कोशिश की जा रही है।
गोरखपुर, महेंद्र कुमार त्रिपाठी। सूचना तंत्र की महत्वपूर्ण कड़ी माने जाने वाले चौकीदारों में इस बार लोकतंत्र के उत्सव को लेकर खासा उत्साह है। वजह देश में चौकीदारों की चर्चा है। एक तरफ चौकीदारों की महत्वपूर्ण भूमिका की चर्चा हो रही है तो दूसरी तरफ चौकीदार के मायने को लेकर एक दल पर चोट करने की कोशिश की जा रही है। चौकीदार चुनाव में कभी मुद्दा नहीं बना लेकिन इस बार के चुनाव में चौकीदार मुद्दा बन गए हैं।
गोरखपुर-बस्ती मंडल की बात करें तो गांव में चौकीदारों की संख्या कम नहीं है। इस बार के चुनाव में गांव के चौकीदार भी अपने आप को महत्वपूर्ण मान रहे हैं। क्योंकि उनके नाम की चर्चा हो रही है। सोशल मीडिया से लेकर आमजन में चौकीदार होने की होड़ लग गई है। सभी अपने को चौकीदार कहलाना पसंद कर रहे हैं। उससे खासतौर पर ग्रामीण चौकीदार खासा उत्साहित हैं।
हमें कम न समझें
चौकीदार रामसंवारे कहते हैं कि लोकतंत्र के उत्सव में इस बार मेरी भागीदारी बढ़ी है। हम भी नागरिक हैं। कम से कम हमारी चर्चा तो हो रही है। रामलाल कहते हैं कि चुनाव में भले ही चौकीदार को निशाना बनाया जा रहा है लेकिन चौकीदार न रहे तो गांव में लोगों की सूचना को संबंधित विभाग तक पहुंचने में काफी देर हो जाएगी। चौकीदार को कम नहीं समझना चाहिए। उधर श्री प्रकाश का मानना है कि चौकीदार को कम आंकने वालों को चुनाव में पता लग जाएगा। हम भी इस देश के जिम्मेदार नागरिक हैं। विजय पासवान कहते हैं कि इस बार कुछ हो या न हो कम से कम हमारी भी राष्ट्रीय स्तर पर पहचान तो हो गई है। इससे हम सभी उत्साहित हैं।
ये हैं चौकीदार
गोरखपुर
गांव- 1380
चौकीदारों की संख्या-1112
देवरिया
गांव- 2161
चौकीदारों की संख्या-1963
कुशीनगर
गांव- 1056
चौकीदारों की संख्या-1446
महराजगंज
गांव- 1193
चौकीदारों की संख्या-1180
बस्ती
गांव- 3347
चौकीदारों की संख्या-1800
संतकबीर नगर
गांव- 2161
चौकीदारों की संख्या-1963
सिद्धार्थनगर
गांव- 2486
चौकीदार-1512