आप भी जानें, इनके वहां कैसे मनती है होली Gorakhpur News
जब मारवाड़ी बंगाली सिंधी और पंजाबी समाज के कुछ प्रमुख लोगों से होली के रीति-रिवाज और परंपरा पर चर्चा हुई तो पता चला कि उन सभी की होली की परंपराएं तो अलग-अलग हैं।
गोरखपुर, जेएनएन। होली पर्व का ख्याल जेहन में आते ही रंगों की फुहार, गुलालों की बहार का दृश्य आंखों के सामने कौंध उठता है। और, साथ ही गले से फूटने लगते हैं होली के पारंपरिक गीत। पर होली का दायरा सिर्फ इतना ही नहीं है। यह जानकारी तब होती है, जब हम विभिन्न समुदायों की होली मनाने की रवायत को उनके बीच जाकर जानने की कोशिश करते हैं। इसी उत्सुकता के बीच जब मारवाड़ी, बंगाली, सिंधी और पंजाबी समाज के कुछ प्रमुख लोगों से होली के रीति-रिवाज और परंपरा पर चर्चा हुई तो पता चला कि उन सभी की होली की परंपराएं तो अलग-अलग हैं। हां, एक चीज सबमें एक सी मिलती है, वह है-होली की मस्ती।
सिंधी समाज : पंचायत में मनती है हमारी होली
सिंधी समाज के ओमप्रकाश कर्मचंदानी का कहना है कि सिंधी समाज होली के पहले की शाम सम्मत जलाने के बाद हम इस वादे के साथ घर वापस लौटते हैं कि होली के दिन सभी पंचायत में जुटेंगे। सुबह होते ही खानपान की तैयारियों के बाद सभी सिंधी भाई अपनी-अपनी पंचायत में विशेष पकवान के साथ सपरिवार जुटते हैं। पंचायत में महिलाओं, बच्चों और पुरुषों का अलग-अलग दल बन जाता है। फिर होती है जमकर होली। थादल (ठंडई) भी छनती है।
मारवाड़ी समाल : हमारे यहां होती है 16 दिन की होली
मारवाड़ी समाज की अंचला पालड़ीवाल का कहना है कि मारवाड़ी समाज होलिका दहन का हमारे समाज में सर्वाधिक महत्व है। उस दिन सभी सुहागिन महिलाएं उपवास रखती हैं। होलिका दहन के दूसरे दिन से हर सुबह सभी कुंवारी और विवाह के बाद पहली होली वाली महिलाएं मिट्टी के गंगौर-ईसर की पूजा करती है, जिन्हे हमारे समाज में माता पार्वती और भगवान शंकर का रूप माना जाता है। 16वें दिन सभी सुहागिन महिलाएं इस पूजा का विधिवत हिस्सा बनती हैं।
पंजाबी समाज : होला-महल्ला में लड़ते हैं बनावटी जंग
पंजाबी समाज के कुलदीप सिंह अरोरा का कहना है कि दसवें गुरु गोविंद सिंह ने होली के साथ ही होला-महल्ला मनाने की प्रेरणा दी है। इसमें गुरु के निर्देशों के मुताबिक बनावटी जंग लड़ी जाती थी। इसके पीछे उनकी मंशा सिखों को समर्थ बनाने की थी। इस परंपरा का निर्वहन आज भी हमारा समाज करता है। होली के दूसरे दिन होला-महल्ला मनाने के लिए सभी गुरुद्वारे में जुटते हैं और अबीर-गुलाल के बीच शस्त्रों से बनावटी जंग लड़ते हैं।
बंगाली समाज : होली की है समृद्ध सांगीतिक परंपरा
बंगाली समाज में होली की एक सशक्त परंपरा है। होलिका दहन के अगले दिन सुबह पुरुष सफेद धोती-कुर्ता में होते हैं तो महिलाएं लाल बार्डर वाली सफेद साड़ी में। यह सफेदी रंग की जरूरत का अहसास होती है। बंगाली समाज के अचिंत्य लाहिड़ी का कहना है कि बंगाली समाज हमारे समाज में होली पर सिर्फ गुलाबी और पीले सूखे रंग के इस्तेमाल की अनुमति है। यह सब कुछ रवींद्र संगीत के बीच होता है, जिसमें होली की एक समृद्ध सांगीतिक परंपरा है।