बौद्ध धर्म के पूर्व से है कुशीनगर के महत्व का इतिहास : प्रो. रजनीश Kushinagar News
इस इतिहास में कुशीनगर केवल एक नगर ही नहीं बल्कि एक विशाल भू-भाग वाला क्षेत्र है।
By Edited By: Published: Sun, 01 Sep 2019 09:33 AM (IST)Updated: Sun, 01 Sep 2019 04:20 PM (IST)
कुशीनगर, जेएनएन। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि कुशीनगर के महत्व के इतिहास को केवल बौद्ध धर्म से नहीं बल्कि बौद्ध धर्म के पूर्व से देखा जाना चाहिए। वर्तमान में कुशीनगर का जो इतिहास पढ़ाया व बताया जाता है वह म्यांमार, थाईलैंड, कोरिया, वियतनाम, चीन व जापान के बौद्ध धर्मावलंबियों को आकर्षित करने के लिए बनाया गया इतिहास है। प्रो. शुक्ल शनिवार को कुशीनगर के बुद्ध पीजी कालेज में जागरण से बातचीत कर रहे थे।
कहा कि कुशीनगर का राम से कोई संबंध नहीं है, न ही यह कुश द्वारा स्थापित है। बुद्धिज्म के इतिहास से कुशीनगर के लोक का इतिहास परिलक्षित नहीं हो रहा। कहा कि सत्य के अभी बहुत चेहरे बाकी हैं। इसे बाहर लाने की जरूरत है। यह तभी हो पाएगा जब यहां के बुद्धिजीवी तैयार होंगे। शाक्य व मल्ल क्षत्रियों की शाखा के दो हिस्से हैं। बुद्ध को इक्ष्वाकु वंश से जुड़ती है। साकेत व पाटिलीपुत्र का क्षेत्र राम की परंपरा के वंशजों द्वारा शासित रहा है।
कुशीनगर भी इसी में शामिल रहा है। कहा कि तर्क व प्रमाण इस बात को सिद्ध करते हैं कि बुद्ध के 700 वर्ष पूर्व से कुशीनगर के अस्तित्व को स्वीकार करना पड़ेगा। उन्होंने पडरौना को राम के विवाह के बाद मिथिला से अयोध्या लौटने का रास्ता बताया। कहा कि पुरातत्व अध्ययन में यहां ईसा से 400 वर्ष पूर्व धान की खेती का प्रमाण पाया जाना भी साबित करता है कि यहां मानव अस्तित्व था, क्योंकि आदि मानव तो खेती कर नहीं सकता।
कहा कि कुशीनगर का राम से कोई संबंध नहीं है, न ही यह कुश द्वारा स्थापित है। बुद्धिज्म के इतिहास से कुशीनगर के लोक का इतिहास परिलक्षित नहीं हो रहा। कहा कि सत्य के अभी बहुत चेहरे बाकी हैं। इसे बाहर लाने की जरूरत है। यह तभी हो पाएगा जब यहां के बुद्धिजीवी तैयार होंगे। शाक्य व मल्ल क्षत्रियों की शाखा के दो हिस्से हैं। बुद्ध को इक्ष्वाकु वंश से जुड़ती है। साकेत व पाटिलीपुत्र का क्षेत्र राम की परंपरा के वंशजों द्वारा शासित रहा है।
कुशीनगर भी इसी में शामिल रहा है। कहा कि तर्क व प्रमाण इस बात को सिद्ध करते हैं कि बुद्ध के 700 वर्ष पूर्व से कुशीनगर के अस्तित्व को स्वीकार करना पड़ेगा। उन्होंने पडरौना को राम के विवाह के बाद मिथिला से अयोध्या लौटने का रास्ता बताया। कहा कि पुरातत्व अध्ययन में यहां ईसा से 400 वर्ष पूर्व धान की खेती का प्रमाण पाया जाना भी साबित करता है कि यहां मानव अस्तित्व था, क्योंकि आदि मानव तो खेती कर नहीं सकता।
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