बलिदान की गौरव गाथा समेटे है गोरखपुर का घंटाघर, स्वतंत्रता सेनानियों को यहां दी जाती थी फांसी
History of Gorakhpur Ghantaghar गोरखपुर का घंटाघर तमाम क्रांतिकारियों के बलिदान की गौरव-गाथा समेटे हुए हैं। यही वह स्थान है जहां स्वाधीनता के लिए बिगुल फूंकने वाले दर्जनों सेनानियों को अंग्रेजों ने फांसी के फंदे पर लटका दिया था।
गोरखपुर, जागरण संवाददाता। गोरखपुर शहर के व्यस्ततम बाजारों में से एक हिंदी बाजार के तिराहे पर खड़ी मीनार केवल उस बाजार की ही नहीं बल्कि समूचे पूर्वांचल की पहचान है। ऐसा इसलिए कि यह अपने-आप में तमाम क्रांतिकारियों के बलिदान की गौरव-गाथा समेटे हुए हैं। यही वह स्थान है, जहां स्वाधीनता के लिए बिगुल फूंकने वाले दर्जनों सेनानियों को अंग्रेजों ने फांसी के फंदे पर लटका दिया था।
1930 से पहले घंटाघर की जगह उस स्थान पर था पाकड़ का पेड़
इस स्थल के मशहूर होने के इतिहास में जाएं तो आज जहां घंटाघर है, वहां 1930 से पहले एक विशाल पाकड़ का पेड़ हुआ करता था। यह वह पेड़ था, जिसका इस्तेमाल अंग्रेजों ने 1857 की क्रांति के दौरान देशभक्तों को फांसी देने के लिए किया था। अली हसन जैसे देशभक्त, जिसने गोरखपुर में अंग्रेजों की सत्ता को ही चुनौती दे दी थी, उन्हें इसी पाकड़ के पेड़ से लटका कर फांसी दी गई थी।
पेड़ पर दी गई थी 1857 की क्रांति के दौरान सेनानियों को फांसी
1930 में इसी स्थान पर रायगंज के सेठ राम खेलावन और सेठ ठाकुर प्रसाद ने अपने पिता सेठ चिगान साहू की याद में मीनार की तरह एक ऊंचे भवन का निर्माण कराया, जो उन बलिदानियों को समर्पित था, जिन्हें स्वाधीनता के पहले संग्राम के दौरान वहां फांसी दी गई थी। सेठ चिगान के नाम पर बनने की वजह से मीनार को बहुत दिनों तक चिगान टावर के नाम से जाना जाता रहा। बाद में उस पर घंटे वाली घड़ी लगा दी गई, जिसकी वजह से समय के साथ वह घंटाघर के नाम से मशहूर हो गया। घंटाघर निर्माण की कहानी आज भी उसकी दीवारों पर हिंदी और उर्दू भाषा में अंकित है।
बिस्मिल से भी जुड़ता है घंटाघर का इतिहास
घंटाघर की दीवार पर लगी अमर बलिदानी पं. राम प्रसाद बिस्मिल की तस्वीर भवन और बिस्मिल के संबंध के बारे में जानने का कौतूहल पैदा करती है। इसलिए यहां इस विषय में चर्चा भी जरूरी है। 19 दिसंबर 1927 में जब जिला कारागार में पं. बिस्मिल को फांसी दी गई तो अंतिम संस्कार के लिए शहर में निकली उनकी शवयात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव घंटाघर भी था। वहां कुछ देर के लिए उनका शव रखा गया था। बिस्मिल की मां ने देशभक्तों के लिए वहां एक प्रेरणादायी भाषण भी दिया था।