Move to Jagran APP

धरोहर : दसवीं सदी की विरासत है गोरखपुर का बसिया डीह मंदिर Gorakhpur News

गोरखपुर के डोमिनगढ़ रेलवे स्टेशन पास रेलवे लाइन से सटे एक सिद्ध मंदिर है बसियाडीह। इस मंदिर का निर्माण दसवीं शताब्दी में थारू राजा मान सिंह ने कराया था।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Sun, 22 Sep 2019 02:27 PM (IST)Updated: Mon, 23 Sep 2019 08:33 AM (IST)
धरोहर : दसवीं सदी की विरासत है गोरखपुर का बसिया डीह मंदिर Gorakhpur News
धरोहर : दसवीं सदी की विरासत है गोरखपुर का बसिया डीह मंदिर Gorakhpur News

गोरखपुर, डॉ. राकेश राय। गोरखपुर के डोमिनगढ़ रेलवे स्टेशन पास रेलवे लाइन से सटे एक सिद्ध मंदिर है बसिया डीह। दर्शन-पूजन के लिए हर रोज यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की बड़ी तादाद मंदिर के प्रति उनकी अगाध श्रद्धा की गवाही है। बसिया डीह जैसे विचित्र नाम को लेकर मन में उपजने वाले कौतूहल पर इसके नाम से जुड़ी जनश्रुतियां विराम लगाती है।

loksabha election banner

मंदिर के नाम पर बस गई पूरी बस्‍ती

जनश्रुति है कि इस मंदिर में रात में देवी की पूजा लोग निशा पूजन और देवी जागरण के साथ पूरे विधि-विधान से संपन्न करते थे और अगले दिन सुबह रात में बने बासी प्रसाद को ग्रहण करते थे। यह सिलसिला आज भी जारी है। हालांकि एक जनश्रुति यह भी है कि यहां प्राचीन काल में एक बस्ती थी। बस्ती के बसने के नाम पर इसे बसिया नाम मिला और बस्ती मेंं पुराने घरों के होने की वजह से कालांतर में इसमें डीह शब्द जुड़ गया। यह बस्ती बाद में राप्ती-रोहिन नदी के प्रवाह में विलीन हो गई लेकिन कुलदेवी का स्थान बच गया, जिसकी मान्यता आज सिद्ध स्थल के रूप में है।

थारू राजा मान सिंह ने कराया था इसका निर्माण

इन जनश्रुतियों का जिक्र स्व. पीके लाहिड़ी और केके पांडेय ने अपनी किताब 'आइने-गोरखपुर' में किया है। किताब में इस बात का भी जिक्र है कि इस मंदिर का निर्माण संभवत: दसवीं शताब्दी में थारू राजा मान सिंह ने कराया था। बाद में क्रमवार डोमकटार और सतासी के राजाओं की देखरेख में मंदिर सुरक्षित रहा और उसकी प्रतिष्ठा बढ़ती रही। हालांकि मंदिर के इतिहास की किसी ऐतिहासिक गं्रथ में कहीं कोई चर्चा नहीं मिलती। मंदिर में स्थापित देवी प्रतिमा का सिर खंडित है। उसमें बनी बड़ी-बड़ी आंखे श्रद्धालुओं में आस्था और शक्ति का संचार करती हैं।

वर्ष चलता है मांगलिक कार्य

श्रद्धालु उन्हें मां दुर्गा का अवतार मानकर आराधना करते हैं। मंदिर परिसर में मांगलिक कार्यों का सिलसिला वर्ष भर चलता रहता है। नवरात्र के दौरान इस मंदिर में श्रद्धालुओं की लंबी कतार लगती है। मान्यता यह है कि यहां मानी गई मनौती जरूर पूरी होती है। इसकी प्राचीनता और मान्यता को ध्यान में रखकर ही पर्यटन विभाग ने इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का फैसला लिया है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.