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Joint Family : यहां साथ-साथ हैं चार पीढ़ी के 52 लोग, एक चूल्‍हे पर बनता है भोजन Gorakhpur News

Joint Family Day 2020 यूपी के संतकबीर नगर में 52 लोगों का परिवार एक साथ रहता है। इन लोगों का भोजन एक चूल्हे पर पकता है। सौ बसंत देख चुकी मां का निर्णय ही अंतिम होता है।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Fri, 15 May 2020 01:32 PM (IST)Updated: Fri, 15 May 2020 08:44 PM (IST)
Joint Family : यहां साथ-साथ हैं चार पीढ़ी के 52 लोग, एक चूल्‍हे पर बनता है भोजन Gorakhpur News
Joint Family : यहां साथ-साथ हैं चार पीढ़ी के 52 लोग, एक चूल्‍हे पर बनता है भोजन Gorakhpur News

संत कबीरनगर, राज नारायण मिश्र। भौतिकता के प्रभाव में संयुक्त परिवार बिखर रहे हैं। ऐसे में खलीलाबाद का छापडिय़ा परिवार आदर्श प्रस्तुत करता है। सौ वर्ष से अधिक समय से यह परिवार संयुक्त है। चार पीढिय़ा एक साथ, एक छत के नीचे रहती हैं। 52 लोगों के इस कुटंब का भोजन एक चूल्हे पर पकता है। सौ बसंत देख चुकी मां का निर्णय ही अंतिम होता है।

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एक साथ रहता है पांच भाइयों का परिवार

खलीलाबाद के गोला बाजार निवासी प्रतिष्ठित कारोबारी पवन छापडिय़ा बताते हैं कि उनके बाबा प्रहलाद राय सन् 1913 में नानपारा से यहां आए थे। यहां एक दुकान खोली थी। बाबा की विरासत पिता सत्यनारायण छापडिय़ा ने संभाला। करीब चार दशक पहले उनका भी देहांत हो गया। वर्तमान में सौ वर्ष पूरा कर चुकीं उनकी मां लीलावती देवी ही घर की मुखिया हैं। वह पांच भाई हैं, इसमें उनके सिवा संतोष, अशोक, सुशील, और सुनील छापडिय़ा हैं। संतोष छापडिय़ा का निधन हो चुका है। तीसरी पीढ़ी में 15 लोग हैं, जिसमें सुधीर छापडिय़ा सबसे बड़े हैं। चौथी पीढ़ी में प्रखर सबसे बड़ा लड़का है। हमारा परिवार आज भी साथ-साथ है। अब परिवार बड़ा हो गया है। छोटे-बड़े मिलकर संख्या 52 तक पहुंच गयी है।

लॉकडाउन में हर दिन सिखा कुछ नया

लॉकडाउन में पूरा परिवार घर के अंदर ही रहा। इस दौरान मयंक, निर्वि, वंसिका, ईशा, दानिया, मानस को बुढ़ी दादी ने हर दिन कुछ नया सुनाया। रात में वे सभी दादी से पुराने जमाने के खिस्से सुने। दादी और दादा से राम-कृष्ण की कथा सुनी। चाचियों ने बेटियों को पाक कला का ज्ञान दिया। कोई पेंटिंग सीखा तो किसी ने संगीत का ज्ञान भी अर्जित कर लिया।

हमारा घर मंदिर है, ईश्वर की कृपा बनी रहे : लीलावती

लीलावती देवी कहती हैं कि ईश्वर ने सब कुछ दिया है। उनके परिवार की पूंजी ईमानदार है। हर रात भोजन पर लोग अपनी अ'छाई और बुराई खुलकर बताते हैं। बड़े बुजुर्ग की राय आज भी परिवार मानता है। हर सदस्य घर को मंदिर मानता है, इसलिए यहां झूठ नहीं चलता। ईश्वर परिवार की एकता और समझ को युग युगांतर तक बनाए रखे, यही उनकी कामना है।

लॉकडाउन में मजबूत हुई पारिवारिक बंधन की गाठ

वैश्विक विपदा कोरोना से तबाही मची तो भारत की विलक्षण पारिवारिक संस्कृत फिर उभर कर सामने आ गई। बड़े शहरों में रहकर कमाने-खाने की ख्वाहिश से बहुतायत का मन भर गया। पूरा का पूरा कुनबा अपने गांव आ गया। घर का दलान, देहरी, आंगन सब परिवार के नए पुराने सदस्यों से गुलजार हो गया है। बच्‍चों की चहलकदमी, बड़ों के अनुभव, गांव के किस्से-कहानी से हर कोई दो-चार हो रहा है। एक-दूसरे के बीच स्नेह की डोर मजबूत हुई है।

ऐसा है यह कुनबा

ऐसा ही एक परिवार है बस्ती जिले के कुदरहा ब्लाक के माधोपुर गांव में। विजय बहादुर पाल के घर दो दर्जन सदस्यों का कुनबा लॉकडाउन में लंबे समय बाद गांव में एकत्र हुआ है। परिवार के 18 सदस्य महाराष्ट्र में रहते हैं। वहां दो भाई और बेटे एक साथ टेक्सटाईल डिजाइनर के रुप में लंबे समय से कार्य कर रहे हैं। दो अन्य भाइयों का परिवार बस्ती में निवास करता है। सबसे छोटे भाई शिक्षक कृष्ण बहादुर पाल ही अकेले घर पर रहते हैं। इनकी पत्नी पूनम पाल बस्ती में रहकर शिक्षक की नौकरी करती है। महाराष्ट्र से दूसरे नंबर के भाई फतेहबहादुर पाल, पत्नी शांती, बेटा विकास, विशेष, बेटी टैनी, डिंपल के अलावा नाती रनवीर, अर्जुन, युवराज, सोनी, जितेंद्र, अनुराग, माता पियारी देवी अपनी गाड़ी से पैतृक गांव आ गए। बस्ती से शिक्षक पूनम पाल, बेटी तरु, अनन्या के साथ गांव चली आई। तीसरे नंबर के भाई डा. अमर बहादुर पाल, पत्नी डा. अनीता पाल, बेटा अमन भी आ पहुंचे। इस तरह इनका पूरा कुनबा पैतृक घर पर एकत्र हो गया है। डेढ़ माह से यह परिवार अपनों के साथ खुशियों में जी रहा है। चाय की चुस्कियों के बीच सुबह हो रही तो दोपहर में साथ भोजन का आनंद सभी उठा रहे हैं। महिलाएं घर के अंदर एक से एक पकवान मिलजुलकर बना रही है। पारिवारिक बंधन की गांठ यहां अब मजबूत हो चली है। 


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