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लाखों रुपये का स्वास्थ्य बीमा नहीं आ रहा काम, बिना रुपये दिए नहीं हो रहा कोरोना संक्रमितों का इलाज

कोरोना मरीजों में संक्रमण की पुष्टि के बाद नर्सिंग होम पहुंचने वाले मरीज स्वास्थ्य बीमा का कार्ड दे रहे हैं तो भर्ती करने से मना कर दिया जा रहा है। जो मरीज रुपये देने से मना कर रहे हैं उन्हें भर्ती नहीं किया जा रहा है।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Wed, 05 May 2021 10:05 AM (IST)Updated: Wed, 05 May 2021 10:05 AM (IST)
लाखों रुपये का स्वास्थ्य बीमा नहीं आ रहा काम, बिना रुपये दिए नहीं हो रहा कोरोना संक्रमितों का इलाज
गोरखपुर में कोरोना के मरीजों को स्वास्थ्य बीमा का लाभ नहीं मिल रहा है। - प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

गोरखपुर, जेएनएन। कोरोना संक्रमितों को न तो सरकारी अस्पतालों में बेड मिल पा रहा है और न ही नर्सिंग होम में कोई सुविधा ही मिल पा रही है। संक्रमण की पुष्टि के बाद नर्सिंग होम पहुंचने वाले मरीज स्वास्थ्य बीमा का कार्ड दे रहे हैं तो भर्ती करने से मना कर दिया जा रहा है। संक्रमितों से नकद रुपये की मांग की जा रही है। जो रुपये देने से मना कर रहे हैं उन्हें भर्ती नहीं किया जा रहा है। हर साल हजारों रुपये खर्च कर लाखों रुपये का स्वास्थ्य बीमा का कैशलेस कार्ड बेकार साबित हो रहा है।

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कैशलेस की सुविधा नहीं दे रहे अस्‍पताल

रामगढ़ताल क्षेत्र के रहने वाले किशोर अग्रहरि ने खुद का, पत्नी और तीन बच्चों का स्वास्थ्य बीमा कराया है। पांच लाख रुपये के स्वास्थ्य बीमा के लिए हर साल वह बीमा कंपनी को तकरीबन 16 हजार रुपये देते हैं। कुछ दिनों पहले पत्नी कोरोना संक्रमित हुईं और सांस लेने में दिक्कत शुरू हुई तो गांधी गली स्थित कोविड नर्सिंग होम पहुंचे। परीक्षण के बाद डाक्टरों ने भर्ती के लिए हामी भरी और एक लाख रुपये जमा करने को कहा। किशोर ने स्वास्थ्य बीमा का हवाला देते हुए कार्ड दिखाया तो नर्सिंग होम के कर्मचारी ने कैश जमा करने को कहा। कर्मचारी का कहना था कि अभी कैश ही देना पड़ेगा, डिस्चार्ज होने के बाद खर्च का पूरा बिल दे दिया जाएगा। इस बिल को बीमा कंपनी के कार्यालय में जमा कर प्रतिपूर्ति ली जा सकती है।

सभी अस्‍पताल कर रहे मनमानी

यही हाल शाहपुर के मो. इरफान का है। उनका 25 वर्षीय बेटा खचांजी के पास स्थित नर्सिंग होम में भर्ती है। स्वास्थ्य बीमा कंपनी की ओर से जारी संबद्ध अस्पतालों की सूची देखकर वह बेटे को लेकर नर्सिंग होम पहुंचे थे। भर्ती प्रक्रिया शुरू हुई तो मो. इरफान ने स्वास्थ्य कार्ड आगे बढ़ाया। कर्मचारी ने उनके चेहरे की ओर देखा और बोला, भर्ती कराना हो तो कैश दीजिए कार्ड देना है तो दूसरे अस्पताल जाइए। मो. इरफान ने घर से एक लाख रुपये मंगाया और काउंटर पर जमा कर दिया।

हर तरह के इलाज का दावा करती हैं कंपनियां

स्वास्थ्य बीमा करने वाली कंपनियां बीमा होने के दो साल के अंदर सिर्फ दुर्घटना होने की स्थिति में कैशलेस इलाज का वादा करती हैं। इसके बाद किसी भी तरह की बीमारी होने पर बीमा धन के बराबर इलाज की दावा करती हैं। लेकिन कोरोना संक्रमण होने पर इलाज के लिए नर्सिंग होम पहुंचने वालों को बिना नकद दिए भर्ती ही नहीं किया जा रहा है। कंपनियों के एजेंट से फोन कर लोग शिकायत करते हैं तो वह भी खुद को असहाय बताते हैं। कहते हैं कि नर्सिंग होम उनकी बात नहीं मान रहे हैं ऐसी स्थिति में बिल का जल्द भुगतान कराया जाएगा।

लाखों रुपये खर्च, हजारों में भुगतान

कोरोना संक्रमण के कारण अस्पताल में भर्ती होकर इलाज के नाम पर लाखों रुपये खर्च करने वालों को चिकित्सा प्रतिपूर्ति के नाम पर मात्र हजारों रुपये ही मिल रहे हैं। अस्पताल आइसीयू में भर्ती कर इलाज के नाम पर रोजाना 25 हजार रुपये से ज्यादा का बिल बना रहे हैं, दवाएं अलग से हैं लेकिन बीमा कंपनियां आइसीयू में इलाज पर रोजाना अधिकतम 13 हजार रुपये ही दे रही हैं। इसके पीछे वह केंद्र सरकार की गाइडलाइन का हवाला दे रही हैं। इसमें कहा गया है कि सामान्य वार्ड में कोरोना संक्रमित के इलाज पर रोजाना आठ हजार रुपये और आइसीयू में रोजाना 13 हजार रुपये से ज्यादा अस्पताल नहीं ले सकते हैं। इलाज में लगने वाली दवाओं के भुगतान से कंपनियां इंकार कर दी हैं।


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