Move to Jagran APP

संतकबीर नगर जिले के बखिरा पक्षी विहार पर सरकारी उपेक्षा की चादर

सात समंदर पार से आने वाले मेहमान प¨रदों को सुरक्षित ठिकाना प्रदान करके जैव विविधता वाले बखिरा पक्षी विहार पर उपेक्षा की चादर है

By JagranEdited By: Published: Mon, 30 Jul 2018 11:31 AM (IST)Updated: Mon, 30 Jul 2018 11:31 AM (IST)
संतकबीर नगर जिले के बखिरा पक्षी विहार पर सरकारी उपेक्षा की चादर
संतकबीर नगर जिले के बखिरा पक्षी विहार पर सरकारी उपेक्षा की चादर

गोरखपुर : सात समंदर पार से आने वाले मेहमान प¨रदों को सुरक्षित ठिकाना प्रदान करके जैव विविधता के संरक्षण के लिए केंद्र सरकार द्वारा घोषित संतकबीर नगर जिले के बखिरा पक्षी अभयारण्य 26 साल बाद भी अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है। इसके लिए अधिग्रहित जमीन का मुआवजा नहीं मिलने से जहां किसान व्यथित हैं, वहीं यह मामला उलझने के कारण पक्षी विहार बनाने की योजना साकार नहीं हो पा रही है।

loksabha election banner

बखिरा स्थित मोती झील जिला मुख्यालय से उत्तर 18 किमी पर है। प्रवासी पक्षियों के संगम व पर्यटन की ²ष्टि से महत्ता को देखते हुए वर्ष 1990 में इसे पक्षी विहार घोषित किया गया।

2894.21 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैला पक्षी विहार :

2894.21 हेक्टेयर क्षेत्रफल में पक्षी विहार में करीब एक हजार हेक्टेयर भूमि के साथ गो¨वदपुर, हड़हा, नेवास, डुमरी, नवापार, कानापार, खिरिया, महला, तिलाठी, जसवल, भरवलिया, शनिचरा, बरईपार, बखिरा, झुंगिया समेत तीन दर्जन से अधिक गांवों के किसानों की करीब 1891.91 हेक्टेयर भूमि को भी शामिल किया गया है। योजना के अनुसार किसानों की जमीनों का मुआवजा देकर सुरक्षित क्षेत्र की बाड़बंदी किया जाना है। यहां शिकारियों से जैव संपदा को सुरक्षित रखने के साथ प्रदेश स्तर पर पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पक्षी विहार की हुई घोषणा से स्थानीय लोगों में हर्ष की लहर दौड़ गई। 1997 में स्थापित किया गया वन विभाग का रेंज आफिस :

इसी क्रम में सोहगीबरवा वन्य जीव विभाग द्वारा 1997-98 में यहां रेंज आफिस बनाया गया, जहां एक रेंज अधिकारी, एक फारेस्टर, एक फारेस्ट गार्ड व माली आदि की तैनाती की गई। झील क्षेत्र से हर प्रकार के शिकार को प्रतिबंधित कर दिया गया। यहां कछुओं की दुर्लभ प्रजातियों के साथ मछलियों की विभिन्न प्रजातियां पाई जाती हैं। पक्षी विहार के लिए आरक्षित झील के निकटवर्ती क्षेत्र की जमीनों पर किसानों द्वारा

धान आदि की फसल उगाने के साथ स्वतंत्र रुप से मछली का शिकार किया जाता रहा। परंतु पक्षी विहार के नाम पर उनका शिकार प्रतिबंधित हो गया व खेती करने पर रोक लगाई जाने लगी। जमीन का मुआवजा भी न मिलने से किसानों की खुशी धीरे-धीरे काफूर होने लगी।

किसानों व वन विभाग के बीच मामला अटका:

वर्तमान में किसानों व वन विभाग के बीच मामला साफ न होने से न तो बाड़बंदी हो सकी है, और न ही झील का सुंदरीकरण। वर्तमान में जलकुंभी व गंदगी से झील पटी पड़ी है। सबसे कठिन समस्या किसानों को झेलनी पड़ रही है, जो न तो मुआवजा पा सके हैं और न ही अपनी जमीनों का पूरा मालिकाना हक। उपेक्षा से यहां आने वाले पर्यटक मार्ग ढूंढ कर झील के निकट पहुंचते है और मायूस लौटते है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.