राजकीय बौद्ध संग्रहालय में 13 अप्रैल तक छात्र फ्री में कर सकेंगे प्राचीन इतिहास के अद्भुत संसार का दीदार
गोरखपुर शहर स्थित राजकीय बौद्ध संग्रहालय में 13 अप्रैल तक विद्यार्थी प्राचीन इतिहास के अद्भुत संसार का अवलोकन निश्शुल्क कर सकेंगे। इससे पहले यहां भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव के बलिदान दिवस पर प्रदर्शनी लगाई गई। इस दौरान बच्चों ने चित्र प्रदर्शनी का अवलोकन किया।
गोरखपुर, आशुतोष मिश्र। कदम बढ़ते हैं और चित्र चलचित्र की तरह दृष्टिपटल पर गतिमान हो उठते हैं। एक के बाद एक प्रसंग स्मृति पर छाप छोड़ते जाते हैं। सन 1857 से 1947 तक का गौरवशाली इतिहास जीवंत हो उठता है। करीने से सजे चित्र यहां थोड़ी देर में ही स्वतंत्रता आंदोलन की पूरी कहानी सुना देते हैं। इस तरह भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के सर्वोच्च बलिदान के दिन राजकीय बौद्ध संग्रहालय में सजी छायाचित्र प्रदर्शनी में आकर अहसास होता है कि तस्वीरें बोलती हैं। इनकी आवाज आपको भी सुननी है तो संग्रहालय आइए, देखिए ‘दूध और शहद की धरती’ की शौर्य गाथा। हमारी इसी समृद्धि ने आक्रांताओं को आकर्षित किया और 1757 में हुआ प्लासी का युद्ध 1857 में क्रांति की ज्वाला तक पहुंचा, इसकी पूरी गाथा चित्रों के साथ सामने होती है तो मन स्वत: ही बलिदानियों के प्रति श्रद्धाभाव से भर जाता है।
फकीर बनकर अंग्रेजी फौज के भारतीय सिपाहियों के बीच चर्बी वाले कारतूस की जानकारी देकर उन्हें विरोध के लिए प्रेरित करने का प्रसंग 23 अप्रैल, 1857 का जिक्र आने पर 85 सैनिकों के विद्रोह में बदल जाता है। नौ मई को इनका कोर्ट मार्शल के बाद 10 मई को तीसरी अश्वारोही रेजीमेंट के विद्रोह का रूप ले लेती है। कर्नल फिनिस के रूप में आतंक का अंत कर सैनिक स्वतंत्रता के लिए शंखनाद करते हैं।
11 मई, 1857 को बहादुर शाह जफर के साथ मिलकर क्रांतिवीर लाल किले पर झंडा फहरा देते हैं। 20 सितंबर, 1857 को बहादुर शाह जफर बेटों के साथ अंग्रेजों द्वारा बंदी बना लिए जाते हैं। फिर दमन की त्रासद तस्वीरें अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचारों से परिचित कराती हैं। 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गठन की जानकारी के साथ 1920-22 के असहयोग आंदोलन तक बात आती है। 12 मार्च, 1930 की दांडी यात्रा की कहानी के साथ पता चलता है कि किस तरह से अंग्रेजों ने गोलमेज सम्मेलन की असफलता और नागरिक अवज्ञा आंदोलन के चलते देश को द्वितीय विश्व युद्ध में ढकेल दिया।
इस परिस्थिति में संघर्ष के क्षितिज पर नेताजी का उदय होता है और भारतीय राष्ट्रीय सेना अंग्रेजों से मोर्चा लेने लगती है। इसी दौर में असेंबली बम धमाके की घटना में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को उम्रकैद की सजा होती है, लेकिन भगत सिंह को सांडर्स की हत्या के आरोप में सुखदेव और राजगुरु के साथ 23 मार्च, 1931 को फांसी दे दी जाती है। इस तरह चित्र 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन से लेकर 1946 के रॉयल इंडियन नेवी विद्रोह का दर्शन कराते हुए स्वतंत्रता की शौर्य गाथा सुनाते और दिखाते जाते हैं। 13 अप्रैल तक स्कूली छात्र इसे निश्शुल्क देख सकेंगे। बुधवार को संस्कृति विभाग की इस प्रदर्शनी का उद्घाटन एनईआर के मुख्य वाणिज्य प्रबंधक विजय कुमार ने किया। संग्रहालय के उप निदेशक डॉ. मनोज गौतम सहित बड़ी संख्या में दर्शक उपस्थित रहे।