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सामाजिक समरसता व बदलाव का ध्वजवाहक है नाथ पंथ

गोरक्षनाथ सामाजिक समरसता के ध्यजवाहक थे। उनकी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए ब्रहलीन महंत अवेद्यनाथ ने एक बार शंकराचार्य का विरोध भी किया था।

By JagranEdited By: Published: Mon, 04 Mar 2019 09:22 PM (IST)Updated: Mon, 04 Mar 2019 09:22 PM (IST)
सामाजिक समरसता व बदलाव का ध्वजवाहक है नाथ पंथ
सामाजिक समरसता व बदलाव का ध्वजवाहक है नाथ पंथ

गोरखपुर, जेएनएन। नाथ पंथ का वैचारिक अधिष्ठान 'सामाजिक समरसता ही राष्ट्रीयता है' के सूत्र वाक्य में है। समरसता भरे समाज के आधार पर राष्ट्रीय एकता और अखंडता की जिस अवधारणा की आधारशिला महायोगी गोरक्षनाथ ने रखी, उसे वर्तमान गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ धार्मिक और आध्यात्मिक निरंतरता के साथ पूरी तरह स्थापित करने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं। यही वजह है कि गोरक्ष पीठ आज पूरी दुनिया के लिए सामाजिक समरसता का मार्गदर्शक बना हुआ है। 'सामाजिक समरसता में नाथ पंथ के योगदान' विषय पर हुए गंभीर विमर्श के दौरान सभी विशिष्ट वक्ताओं ने न केवल इससे इत्तेफाक जताया बल्कि इसके पक्ष में प्रसंग सहित मजबूत तर्क भी रखे।

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वक्ताओं ने कहा

महाराणा प्रताप पीजी कॉलेज जंगल धूसड़ के प्राचार्य डॉ. प्रदीप कुमार राव के संचालन में आयोजित विमर्श में वक्ताओं ने इसे लेकर खुलकर अपने विचारों को साझा किया। हिदुस्तानी अकादमी प्रयागराज के अध्यक्ष प्रो. यूपी सिंह ने अपने तर्क को मजबूती देने के लिए गुरु गोरक्षनाथ की उस गोरखबानी की याद दिलाई, जिसमें उन्होंने कहा है कि मनुष्य मन की शक्ति से विकसित होता है। और मन न तो हिदू है, न मुसलमान और न ही दलित। इसे हम जितना सहज बनाएंगे, उतना ही मजबूत होते चले जाएंगे। सामाजिक समरसता के बिना विकास को गति नहीं मिल सकती, नाथ पंथ के इस मूल मंत्र की चर्चा के साथ जब संचालक डॉ. राव ने गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्रो. रविशंकर सिंह से अपनी बात रखने का इशारा किया तो प्रो. सिंह शिक्षा के माध्यम से समरसता लाने के नाथ योगियों के प्रयास पर जमकर बोले। उन्होंने बताया कि नाथ पीठ के महंत दिग्विजयनाथ ने सन् 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की और इसके आलोक में स्थापित शिक्षण संस्थाओं में दलितों, शोषितों और वंचितों के प्रवेश को प्राथमिकता दी। इससे जिस शैक्षिक क्रांति का सूत्रपात हुआ, उसने शिक्षा के द्वार सबके लिए खोल दिए। प्रो. सिंह की बात को आगे बढ़ाते हुए डॉ. राव ने बताया कि 1948 में परिषद ने महिला डिग्री कॉलेज की स्थापना कर स्त्री-पुरुष विषमता पर चोट किया तो 1959 में वनवासियों के लिए शिक्षण संस्थान खोलकर समरसता को मजबूत धार दी। समरसता को लेकर मीनाक्षीपुरम् गांव का वह वाकया भी विमर्श के मंच पर एक बार फिर गूंजा, जिसमें अपने संकल्प से महंत अवेद्यनाथ ने चंद दिनों पहले धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्तियों को इस शर्त पर पुनर्वापसी कराई थी, उनसे रोटी और बेटी का रिश्ता पहले की तरह ही कायम रहेगा। इसी क्रम में महंत अवेद्यनाथ से जुड़े उस प्रसंग की चर्चा प्रो. यूपी ंिसह ने की, जिसमें समरसता स्थापित करने के लिए महंत अवेद्यनाथ ने देश भर के धर्माचार्यो के साथ वाराणसी के डोम राजा के घर सामूहिक भोज में हिस्सा लिया था। महंत अवेद्यनाथ से जुड़ा वह प्रसंग भी उभरा, जिसमें उन्होंने राम जन्मभूमि के शिलान्यास की ईट एक दलित से रखवाई थी। डॉ. राव ने गोरखनाथ मंदिर में दलित प्रधान पुजारी और यहां तक कि वहां के भंडारे में भी दलितों की बड़ी संख्या की जानकारी देकर वक्ताओं की बात पर मुहर लगाई। अंत में उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया सिंह ने गोरक्ष पीठ को समरसता का एकात्म घोषित किया। उन्होंने कहा कि सहभोज और सहयज्ञ की परंपरा जिस पीठ की विशेषता हो और जहां का प्रधान पुजारी ही दलित हो, उस पीठ से सामाजिक समरसता का संबंध खुद-ब-खुद स्थापित हो जाता है।

प्रधानमंत्री ने योगी सरकार के प्रयास पर लगाई मुहर

डॉ. प्रदीप राव ने बीते दिनों प्रधानमंत्री की ओर से प्रयागराज में सफाई कर्मचारियों के पांव पखारने का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने उत्तर प्रदेश में यह कार्य करके मुख्यमंत्री योगी सरकार की ओर से सामाजिक समरसता के लिए किए जा रहे प्रयास पर मुहर लगाई है।

समरसता के लिए अवेद्यनाथ ने किया था शंकराचार्य का विरोध

डॉ. प्रदीप राव ने समरसता के लिए महंत अवेद्यनाथ से जुड़े उस प्रसंग की चर्चा भी कि जिसमें उन्होंने वेद पढ़ने के अधिकार को लेकर पुरी के शंकराचार्य के विरोध में गोरखनाथ मंदिर में प्रेसवार्ता की थी। महंत ने पूरी दुनिया के सामने नाथ पंथ का यह पक्ष साफ कर दिया था कि ईश्वर के समक्ष धर्म के नाम पर लिंगभेद का कोई स्थान नहीं।


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