गोरखपुर का मैला हुआ भू-गर्भ जल, सर्वे में मिली चौंकाने वाली रिपोर्ट Gorakhpur News
सर्वे में यह भी सामने आया है कि पाताल का पानी तेजी से नीचे खिसक रहा है। भूगर्भ जल में जहां भी आर्सेनिक और फ्लोराइड मानक से अधिक हैं वहां जल्द से जल्द शोधन यंत्र लगाए जाने चाहिए।
गोरखपुर, जेएनएन। गोरखपुर और आसपास के क्षेत्र में भूगर्भ जल लगातार प्रदूषित हो रहा है। जल में बढ़ रही आर्सेनिक और फ्लोराइड की मौजूदगी चिंता का विषय है। देहात के भूगर्भ जल में तो आर्सेनिक और फ्लोराइड की मात्रा मानक से अधिक हो गई है। मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के पर्यावरण इंजीनियरिंग विभाग के सर्वे में यह तथ्य सामने आया है। सर्वे के मुताबिक बड़हलगंज, खोराबार और पिपरौली ब्लाक के कई क्षेत्रों में आर्सेनिक का स्तर संवेदनशील स्थिति में पहुंच गया है जबकि पिपरौली, जंगल कौडिय़ा, कैंपियरगंज, कौड़ीराम ब्लाक में फ्लोराइड की मात्रा अधिक पाई गई है। कुछ स्थानों पर तो दोनों ही तत्व अधिक हैं। सर्वे में इस बात का भी जिक्र है कि एक दशक पहले के सर्वे में दोनों तत्वों की मात्रा मानक से अधिक नहीं थी।
इसलिए बढ़ता है आर्सेनिक व फ्लोराइड
सर्वे टीम का नेतृत्व करने वाले सिविल इंजीनियरिंग विभाग के आचार्य और पर्यावरणविद् प्रो. गोविंद पांडेय बताते हैं कि भूगर्भ से आने वाला पेयजल आर्सेनो पायराइट युक्त चट्टानों के संपर्क में रहता है। इसमें मौजूद आर्सेनिक जल में घुलनशील नहीं होता है, जिसके चलते पेयजल में आर्सेनिक नहीं आता है। पिछले कुछ वर्षों में भूजल के अत्याधिक दोहन के चलते कई स्थानों पर आर्सेनो पायराइट में वायु में मिल जाने के कारण आक्सीकृत होकर पिटिसाइट में बदल जाता है। पिटिसाइट में उपस्थित आर्सेनिक जल में घुलनशील हो जाता है। हैंडपंप के चलाने पर दबाव के कारण पिटिसाइट से निकलकर आर्सेनिक जल के साथ ऊपर आने लगता है। भूगर्भ जल में जहां भी आर्सेनिक और फ्लोराइड मानक से अधिक हैं वहां जल्द से जल्द शोधन यंत्र लगाए जाने चाहिए।
ऐसे नुकसान करता है आर्सेनिक और फ्लोराइड
आर्सेनिक विषैला तत्व है। एक लीटर पेयजल में 0.01 मिलीग्राम आर्सेनिक की मौजूदगी सामान्य है, लेकिन विशेष परिस्थितियों में 0.05 मिलीग्राम प्रति लीटर तक इसे अनुमन्य किया जा सकता है। पेयजल में इससे अधिक आर्सेनिक की मौजूदगी त्वचा कैंसर, पेशाब की बीमारियों, फेफड़ा व गुर्दे के कैंसर का कारण बन सकती है। जबकि फ्लोराइड एक ऐसा तत्व है जो अल्प मात्रा में तो इंसान के लिए उपयोगी है, लेकिन मानक से अधिक इसका सेवर डेंटल फ्लोरोसिस, बोन फ्लोरोसिस जैसी बीमारियों का वाहक बनती है। फ्लोराइड का अनुमन्य स्तर 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर है।
तेजी से नीचे गिर रहा भूगर्भ जल का स्तर
सर्वे में यह भी सामने आया है कि पाताल का पानी तेजी से नीचे खिसक रहा है। ऐसा जल के लगातार दोहन के चलते हो रहा है। इसका अंदाजा ऐसे लगाया जा सकता है भूजल कमी की दर सामान्यतया 50 फीसद से अधिक नहीं होनी चाहिए लेकिन गोरखपुर में यह 70 फीसद तक पहुंच गई है। प्रो. गोविंद पांडेय ने बताया कि चरगांवा, भटहट, पिपराइच एवं बड़हलगंज ब्लाक में भूगर्भ जल स्तर पांच मीटर है। बाकी ब्लाकों में .09 मीटर से 1.96 मीटर के बीच नीचे आया है। यह खतरे का संकेत है। प्रो. पांडेय के मुताबिक जल का जितना डिस्चार्ज हो रहा है, उतना ही रीचार्ज भी होना चाहिए। गोरखपुर ही नहीं आसपास के जिलों में भी बीते एक दशक में भूजल का अत्यधिक दोहन हुआ है। वर्षा जल संचयन और अधिक से अधिक पौधा लगाकर ही भूजल की सामान्य स्थिति को पाया जा सकता है।