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    SIR In UP: हर मोड़ पर अनजानों की आवाजाही, सुरक्षा पर सुस्ती भारी

    Updated: Sun, 07 Dec 2025 09:20 AM (IST)

    धार्मिक पर्यटन केंद्र गोरखपुर में अनजान चेहरों की बढ़ती संख्या सुरक्षा में चूक का कारण बन रही है। कश्मीरी फेरीवालों से लेकर कबाड़ बीनने वालों और अवैध ...और पढ़ें

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    देवरिया बाई पास रोड पर झुग्गी झोपड़ी वालों का कब्जा। जागरण

    जागरण संवाददाता, गोरखपुर। धार्मिक-पर्यटन का केंद्र गोरखपुर तेजी से विकसित हो रहा है। लेकिन अनजान चेहरे, बाहरी बस्तियां, गुमनाम फेरीवाले और बिना पहचान वाले लोग कहीं भी देखे जा सकते हैं। इनसे न तो पुलिस पूछती है कि कौन है, न प्रशासन के पास कोई रिकार्ड है, खुफिया तंत्र भी अनजान है। सुस्ती ऐसी कि संदिग्ध तत्वों के लिए शहर में घुसना, रहना और गायब हो जाना बेहद आसान हो गया है। जागरण की पड़ताल में सामने आया कि सुरक्षा दीवार में कई छेद हैं।

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    सर्दी के आते ही शाल-कंबल बेचने वाले कश्मीरी युवकों की भरमार हो गई है। संख्या 200 से ज्यादा, पर पहचान शून्य। लाज और धर्मशालाओं में रहने वाले इन फेरीवालों ने जो दस्तावेज दिए हैं, उनकी सत्यता की जांच तक नहीं की गई। दूसरी ओर, कबाड़ बीनने वालों का एक बड़ा नेटवर्क धर्मशाला बाजार, ट्रांसपोर्टनगर, सिंघड़िया, मोहद्दीपुर, पादरी बाजार, रुस्तमपुर, तारामंडल इलाके में सक्रिय है।

    गली-गली घूमते ये लोग सिर्फ कबाड़ नहीं उठाते उनके पास इलाके का पूरा नक्शा होता है। हर चौराहे पर भीख मांगने वाले अनजान लोग, फुटपाथ पर रात गुजारने वाले समूह व डेरा जमाए परिवार...प्रशासन इन्हें रोजगार की मजबूरी कहकर नजरअंदाज करता रहा है।देवरिया बाईपास से लेकर सिंचाई विभाग की जमीन तक सड़क किनारे अवैध बस्तियां तेजी से उग आई हैं। इन तंबुओं में रहने वालों की नागरिकता क्या है? कहां से आए? किसके संपर्क में रहते हैं? पुलिस के पास कोई जवाब नहीं। यह दृश्य सुरक्षा तंत्र की लापरवाही का जीता-जागता सबूत है। मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद प्रशासन ने पहचान सत्यापन अभियान शुरू तो किया, पर नतीजे अभी भी ढीले और अधूरे हैं।

    यह भी पढ़ें- SIR In UP: गोरखपुर शहर में ठिकाना बना चुके हैं अनजान चेहरे, संख्या 50 हजार से अधिक

    रेलवे स्टेशन रोड पर 50 से अधिक परिवार सड़क किनारे अवैध रूप से अपने तंबू और पक्का ठिकाना बनाकर बस चुके हैं।दो दशक से इनका अवैध कब्जा हटवाने में प्रशासन नाकाम रहा है।देवरिया बाइपास से लेकर सिंचाई विभाग की खाली जमीन तक ऐसे दर्जनों कब्जे दिखते हैं। ये लोग प्लास्टिक का सामान बेचने का दावा करते हैं, लेकिन इनके कामकाज, दिनचर्या, संपर्क और असली पहचान के बारे में किसी को कुछ पता नहीं। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें से कुछ बस्तियां पुलिस चौकी के पास ही उग आई हैं।

    यदि इनमें से कोई अपराधी या नेटवर्क से जुड़ा तत्व अपराध कर फरार हो जाए, तो पहचान के अभाव में पुलिस उसके बारे में कोई जानकारी भी न जुटा सकेगी।नगर निगम व पुलिस का दावा है कि शहर में रहने वाले बाहरी लोगों को चिह्नित करने का अभियान शुरू किया है, लेकिन अब तक का परिणाम उम्मीद जगाने वाला नहीं। कई लाजों में अतिथि रजिस्टर अधूरे मिले, कई बस्तियों में रहने वालों का कोई रिकार्ड नहीं मिला, और सड़क किनारे बसे परिवारों की सूची तक तैयार नहीं हो सकी।

    सवाल यह भी उठता है कि इतने संवेदनशील शहर में ठिकाना बनाने वाले बाहरी लोगों के सत्यापन को लेकर पुलिस की सक्रियता इतनी कमजोर क्यों? दिन भर फेरी लगाते हुए कश्मीरियों या दूसरे राज्यों से आए युवकों का रूट-ट्रैक कौन देखता है? क्या इनकी पहचान पत्र की जांच एक औपचारिकता भर नहीं, बल्कि सुरक्षा के लिहाज से किया जाने वाला अनिवार्य कदम नहीं होना चाहिए? दूसरी ओर सड़क किनारे अवैध बस्तियां अपने आप में सुरक्षा जोखिम हैं।

    सतर्क नहीं हुए तो झकझोर सकता है हादसा :
    बाहरी तत्वों की पहचान, ठिकानों की निगरानी, दस्तावेजों की जांच और अवैध कब्जों का निराकरण—इन सबमें गंभीरता की कमी साफ दिखाई देती है। यदि पुलिस और प्रशासन समय रहते सतर्क नहीं हुए, तो आने वाले समय में कोई बड़ा हादसा शहर को झकझोर सकता है।सुरक्षित शहर बनाए रखने के लिए पहचान सत्यापन नीति को कठोरता से लागू किया जाए, अवैध बस्तियों को तत्काल हटाया जाए।