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छोटे शहरों से निकल कर राष्ट्रीय फलक पर छाए सितारों ने साझा की अपनी दास्तान

गोरखपुर लिटरेरी फेस्ट के दूसरा दिन का पहला सत्र छोटे शहरों से निकल कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाले प्रतिभाओं के नाम रहा।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Sun, 07 Oct 2018 02:42 PM (IST)Updated: Sun, 07 Oct 2018 02:42 PM (IST)
छोटे शहरों से निकल कर राष्ट्रीय फलक पर छाए सितारों ने साझा की अपनी दास्तान
छोटे शहरों से निकल कर राष्ट्रीय फलक पर छाए सितारों ने साझा की अपनी दास्तान

गोरखपुर, (जेएनएन)। गोरखपुर लिटरेरी फेस्ट के दूसरा दिन का पहला सत्र गोरखपुर के युवाओं के नाम रहा। 'छोटे शहर के चमकते सितारे' नाम के इस सत्र में गोरखपुर से निकल कर राष्ट्रीय फलक पर चमक बिखेरने वाले कई मशहूर सितारे इस सत्र में गोरखपुर के युवाओं को राह दिखाने पहुंचे थे। प्रसिद्ध फिल्मकार सुशील राजपाल, न्यूज एंकर चित्रा त्रिपाठी, राज्यसभा टीवी की एंकर अमृता चैरसिया और प्रेस क्लब आॅफ इंडिया के सेक्रेटरी संजय सिंह इस सत्र के खास मेहमान थे। वरिष्ठ पत्रकार जगदीश लाल श्रीवास्तव, अविनाश चतुर्वेदी और जितेंद्र द्विवेदी ने इन सितारों का स्वागत किया। सत्र का संचालन शुभेन्द्र सत्यदेव ने किया।

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सत्र की शुरूआत में प्रतिष्ठित रामनाथ गोएनका अवार्ड पा चुकीं चित्रा त्रिपाठी ने अपने अनुभव साझा करते हुए की। अपने गुरूओं और मां बाप के मार्गदर्शन और अपनी जिद को चित्रा ने अपनी सफलता का राज बताया। रक्षा अध्ययन परास्नातक में गोल्ड मेडलिस्ट चित्रा ने बताया कि उन्होंने स्क्रीन पर आने का शौक था। सबसे पहले उन दिनों गोरखपुर में चलने वाले एक स्थानीय केबल चैनल से सौ रूपये प्रति बुलेटिन से कॅरियर की शुरूआत की। बाद में प्रतिभा को पहचानते हुए दूरदर्शन ने छह सौ रूपये प्रति बुलेटिन का ब्रेक दिया। सफर धीमे धीमे चल ही रहा था कि एक दोपहर कुमार हर्ष सर (गोरखपुर विश्‍वविद्यालय के प्रोफेसर) का फोन आता है कि एक चैनल में एंकर की वैकेंसी निकली है। उनके निर्देश पर उन्होंने आवेदन किया और चयन हुआ। यहीं से कॅरियर में छलांग लगनी शुरू हुई और फिलहाल आज नेशनल चैनल का प्राइम टाइम एंकर हूं। छोटे शहरों के लड़कियों को खासकर घर से बाहर निकलने में कितनी जद्दोजहद करनी पड़ती हैं इस पर भी चित्रा ने अपने अनुभवा साझा किये। चि़त्रा को भी घर से बाहर निकलने में शुरूआती रूकावटें झेलनी पड़ीं लेकिन उनके परिवार ने उनका पूरा साथ दी। कॅरियर मेंकिंग में दोस्तों का कितना अहम रोल होता है यह बताते हुए चित्रा ने बताया कि उनके दोस्त उनकी जिंदगी में बेहद अहम रोल अदा करते रहे हैं। यहां तक कि शुरूआती दिनों में जब एंकरिंग में तमाम कपड़ों की जरूरत होती थी तो वह दोस्तों के कपड़े पहनकर एंकरिंग किया करती थीं।

चित्रा ने साझा किया कि किस प्रकार वह दिल्ली जाने का सपना पाले हुए थी लेकिन घर की माली हालत उसमें आड़े आ रही थी। लेकिन चित्रा के पिता ने कहा कि तुम्हारी शादी के लिए कुछ पैसे बचा के रखे हैं फिलहाल उसे तुम अपने कॅरियर में इन्वेस्ट कर लो। चित्रा ने बताया कि मां बाप का उनपर किया यह भरोसा उनके कॅरियर में टर्निंग प्वाइंट साबित हुई। चि़त्रा ने यह भी बताया कि संघर्ष के दिनों में आपको लोगों की टिप्पड़ियां भी सुननीं पड़ सकती है लेकिन आपको उन आलोचनाओं से घबराने की बजाय अपनी धुन में लगे रहना है। गोरखपुर के युवाओं को चि़त्रा ने संदेश दिया कि सफलता के लिए लक्ष्य तय करो और उसको पाने की जिद कर जुटे रहो और लगे रहो।

उम्मीदों का बोझ तो होगा ही, बस आप लगे रहें : सुशील राजपाल

अपनी सफलता के सफर की कहानी बयां करते हुए सुशील राजपाल ने कहा कि गोरखपुर से दिल्ली का सफर बेहद कठिन था। तमाम बार ऐसे मौके आए जब लोग प्रोत्साहित करने की बजाय आपको हतोत्साहित करते है। राजपाल ने बताया कि उन्हें पढ़ाई के दिनों से ही फिल्में बनाने का सपना आया करता था। फिल्म निर्माता बनने का सपना लेकर वह दिल्ली गये तो उन्हें वह सपोर्ट नहीं मिला जिसकी वह उम्मीद किया करते थे। यहां तक कि उनके हाॅस्टल के लोग उन्हें यह तक नहीं बताते थे कि एफटीआई ज्वाइन करना ठीक रहेगा। लेकिन उनकी लगन और कुछ करने की इच्छा से वह लगे रहे। उन्होने बताया कि युवावस्था में आप पर आपके खुद के सपनों के साथ-साथ लोगों की उम्मीदों का भी बोझ होता है। उनको अपनी ताकत बनाना है और वह करना है जो आपके दिल से निकलता है।

मेरी आवारगी ने मुझे पत्रकार बनाया : संजय सिंह

एक अखबार के नेशनल ब्यूरो में कार्यरत तथा प्रेस क्लब आॅफ इंडिया के जनरल सेक्रेटरी संजय सिंह ने बड़े बेबाक अंदाज में अपने सफर की दास्तां सुनाई।

तुमने चाहा ही नहीं हालात बदल सकते थे,

मेरे आंसू तेरी आंखों से भी निकल सकते थे।

जैसी लाइनें सुनाकर उन्होंने दर्शकों को तालियां बजाने पर मजबूर किया। संजय सिंह ने कहा कि जनसरोकारों के प्रति पीड़ा ने उनको पत्रकार बनने पर मजबूर किया। मां बाप के दुलार में युवावस्था में वह मस्तमौला प्रकृति के थे और उनकी इस प्रकृति ने उन्हें बेहतर पत्रकार बनने में मदद की। संजय ने बताया  कि उनको नेशनल पत्रकारिता के केंद्र में पहुुंचाने के लिए उनके गोरखपुर के अग्रजों का बड़ा महत्व है। उन्होंने कहा कि कोई लक्ष्य बहुत बड़ा नहीं होता है। यदि आप दिल से उसे पाना चाहेंगे तो सारी दुनिया उससे मिलाने की साजिश करने में जुट जाएगी। युवाओं को उन्होंने संदेश दिया कि धैर्य रखें, हड़बड़ी में न रहें। कोई भी सफल व्यक्ति एक दिन में सफल नहीं हो जाता है। इसके पीछे संघर्ष और परिश्रम की एक लंबी यात्रा होती है। छोटे बड़े शहरों की बात नहीं होती है बल्कि आपका लक्ष्य और उसके लिए दिल बड़ा होना चाहिए।

जो फूल खिलने थे, खिलकर रहेंगे : अमृता चैरसिया

लाख बर्फ गिरे हजारों आंधियां चलें,

जो फूल खिलने थे वे खिलकर रहेंगे।

इन लाइनों से अमृता चैरसिया ने इस सत्र में अपने अनुभव कथन की शुरूआत की। अमृता ने गोरखपुर के युवाओं से कहा कि यदि वे सूरज की तरह चमकना चाहते हैं तो उन्हें सूरज की तरह जलना भी होगा। लेकिन आपको अपने लक्ष्य पर टिके रहना होगा। पूरी शिद॰दत से उसके लिए जुटे रहना होगा। अमृता ने बताया कि उसकी जिंदगी में एक बड़ी ख्वाहिश थी कि लोग उन्हें उनके नाम से जानें।  आज जो मुकाम हासिल है वह एक दिन में नहीं आया। इसके पीछे संघर्ष की एक लंबी दास्तां हैं। उन्होंने युवाओं से अपील की बस घबराना नहीं, जो ठानो उसके पीछे लगे रहो। अमृता ने युवाओं को कहा कि वे असफलता से सींखें। फेल स्पेलिंग को उन्होंने वर्णन किया कि यह फर्स्‍ट अटेम्प्ट इन लर्निंग हैं। अमृता ने अपनी सफलता के पीछे अपने परिजनों और अपने पति के सहयोग को बहुत महत्वपूर्ण बताया। इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार गीताश्री, चित्रा त्रिपाठी, अमृता चैरसिया, कुमार हर्ष, आलोक, शैवाल शंकर श्रीवास्तव,  डॉ उत्कर्ष श्रीवास्तव, अनुपम सहाय, संदीप श्रीवास्तव, अमित श्रीवास्तव और डाॅ रजनीकांत श्रीवास्तव भी मौजूद थे।


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