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Gorakhpur Famous Food: छोले-भटूरे का लाजवाब स्वाद चाहिए तो पहुंचे गोलघर, यहां मौजूद है पांच दशक पुराना जायका

छोले-भटूरे के ठेले हों या रेस्टोरेंट हर जगह ग्राहकों की भीड़ देखने को मिल ही जाती है। गोरखपुर शहर में काफी जगह छोले-भटूरे की दुकानें व रेस्टोरेंट मौजूद है। लेकिन पांच दशक से लोगों की जुबान पर राज करने वाला जायका मोहन की दुकान पर ही मिलता है।

By Jagran NewsEdited By: Pragati ChandPublished: Sat, 01 Oct 2022 04:25 PM (IST)Updated: Sat, 01 Oct 2022 04:25 PM (IST)
Gorakhpur Famous Food: छोले-भटूरे का लाजवाब स्वाद चाहिए तो पहुंचे गोलघर, यहां मौजूद है पांच दशक पुराना जायका
मोहन के छोले-भटूरे का अलग है अंदाज। (प्रतीकात्मक तस्वीर)

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। यूं तो गोरखपुर में जगह-जगह छोले-भटूरे की दुकानें है। दर्जनों रेस्टोरेंट भी इसे ग्राहकों को परोस रहे हैं। पर गोलघर के बीचोबीच संकरी गली सी दिखने वाली दुकान का इसे लेकर खास क्रेज है। सुबह से देर शाम तक यहां लगने वाली ग्राहकों की भीड़ दुकान के छोले-भटूरे की लोकप्रियता की गवाही है। दुकान को लेकर ग्राहकों का क्रेज कोई दो-चार वर्षों की बात नहीं, यह पांच दशक की कहानी है। यह दुकान है मोहन भाई की, जिन्होंने गुणवत्ता को लेकर कभी समझौता नहीं किया।

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क्या है छोले-भटूरे की लोकप्रियता का राज

वर्तमान में दुकान की कमान संभाल रहे मोहन भाई के बेटे अमरजीत सिंह बताते हैं कि उनके छोले-भटूरे की लोकप्रियता के पीछे पिता मोहन सिंह की कड़ी मेहनत और लगन छिपी हुई है। परिस्थितियां चाहे कोई भी रही हों, स्वाद को लेकर वह हमेशा संवेदनशील रहे। अमरजीत बताते हैं कि उनके पिता रोजगार की तलाश में 1964 में कानपुर से गोरखपुर आए। उनके बड़े भाई पहले से यहां थे, ऐसे में शुरुआती दौर में उन्होंने उन्हीं का हाथ बंटाया। 1968 में मोहन ने अपना अलग व्यवसाय शुरू किया।

खानपान के शौकीनों ने बढ़ाई दुकान की कद्र

गोलघर में ठेला लगाकर छोला-भटूरा और छोला-चावल बेचने लगे। खानपान के शौकीन लोगों को उनका यह प्रयोग भाया तो ठेले पर ही भीड़ लगने लगी। ग्राहकों का रेस्पांस देख मोहन का मनोबल बढ़ा तो उन्होंने स्थायी दुकान की तलाश शुरू कर दी। तलाश तब पूरी हुई जब 1988 में उन्हें गोलघर में एक छोटी सी जगह मिल गई। जगह तो छोटी थी पर कद्रदानों की बढ़ती तादाद ने खानपान के व्यवसाय के क्षेत्र में उनके कद को बढ़ा दिया।

सुबह से शाम तक ले सकते हैं व्यंजन का स्वाद

शुरुआती दौर में चूंकि मोहन भाई अकेले दम पर दुकान चलाते थे, सो उन्होंने दुकान की टाइमिंग दोपहर साढ़े ग्यारह बजे से शाम साढ़े तीन बजे तक रखी। पर जब बेटे अमरजीत ने उनका साथ देना शुरू किया तो यह समय सुबह नौ बजे से शाम पांच बजे तक हो गया। पिता की तरह अमरजीत की प्राथमिकता भी गुणवत्ता है। वह अपनी देखरेख में ही छोला-भठूरा और चावल तैयार कराते हैं। यही वजह है कि ग्राहकों की तादाद निरंतर बढ़ती जा रही है।


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