यह भी जानिए, प्रतिदिन बिकती हैं गीता प्रेस की 61 हजार पुस्तकें
गीताप्रेस की स्थापना 1923 में हुई थी। तबसे लेकर दिसंबर तक 68 करोड़ पुस्तकें बिक चुकी हैं। औसतन हर दिन 61 हजार पुस्तकें बिकती हैं।
गोरखपुर, जेएनएन। पाठकों की कमी का रोना रोने वाले ¨हदी लेखकों के लिए गीताप्रेस नजीर बनकर खड़ा है। यहां से प्रकाशित होने वाली पुस्तकों की बिक्री पर नजर डालें तो पता चलता है कि न तो पाठकों की कमी है और न ही पुस्तकों की बिक्री कम हो रही है। पिछले साल ही गीताप्रेस ने प्रतिदिन औसत 61 हजार पुस्तकों का विक्रय किया। इसमें कल्याण पत्रिका शामिल नहीं है। अकेले कल्याण की बिक्री प्रतिवर्ष 22 लाख प्रतियों की है।
यह बिक्री का आंकड़ा
गीताप्रेस की स्थापना वर्ष 1923 में हुई। तबसे लेकर दिसंबर 2018 तक लगभग 68 करोड़ पुस्तकें बिक चुकी हैं। पिछले वर्ष 2017-18 में 22500000 पुस्तकों की बिक्री हुई। औसत एक दिन में 61 हजार पुस्तकें बिकीं। इतना ही नहीं पुरानी पुस्तकों को प्रकाशित करने के अलावा गीताप्रेस ने गत वर्ष कुल 53 नई पुस्तकों का प्रकाशन किया जिनकी कुल प्रतियां 559400 थीं।
यह है पुस्तक विक्रेताओं की संख्या
पूरे देश में ढाई हजार पुस्तक विक्रेता गीताप्रेस की पुस्तकें बेचते हैं। इसके अलावा देश के लगभग हर प्रांत व नेपाल के काठमांडू में गीताप्रेस का बिक्री केंद्र हैं। विदेशों से भी गीता प्रेस को बड़े पैमाने पर आर्डर मिलते हैं। गीताप्रेस आर्डर पर पुस्तकें नहीं छापता है, बल्कि पुस्तकें छापकर रखता है और आर्डर मिलने पर आपूर्ति कर देता है।
15 भाषाओं में प्रकाशित होती हैं पुस्तकें
गीताप्रेस धार्मिक पुस्तकों का पंद्रह भाषाओं में प्रकाशन करता है। इनमें ¨हदी, संस्कृत, बंगला, मराठी, गुजराती, तमिल, कन्नड़, असमिया, उड़िया, उर्दू, तेलगू, मलयालम, पंजाबी, अंग्रेजी व नेपाली भाषाएं हैं। उर्दू भाषा में केवल गीता का प्रकाशन होता है।
गीताप्रेस की कहानी
गोरखपुर में गीताप्रेस की स्थापना की कहानी बड़ी रोचक व प्रेरित करने वाली है। लगभग 1921 में कोलकाता में जयदयाल गोयंदका ने गोविंद भवन ट्रस्ट की स्थापना की थी। इसी ट्रस्ट के तहत वहीं से वह गीता का प्रकाशन कराते थे। शुद्धतम गीता के लिए प्रेस को कई बार संशोधन करना पड़ता था। प्रेस मालिक ने एक दिन कहा कि इतना शुद्ध गीता प्रकाशित करवानी है तो अपना प्रेस लगा लीजिए। गोयंदका ने इसे भगवान का आदेश मानकर इस कार्य के लिए गोरखपुर को चुना। 1923 में उर्दू बाजार में दस रुपये महीने के किराये पर एक कमरा लिया गया और वहीं से शुरू हो गया गीता का प्रकाशन। धीरे-धीरे गीताप्रेस का निर्माण हुआ और इसकी वजह से पूरे विश्व में गोरखपुर को एक अलग पहचान मिली। 29 अप्रैल 1955 को भारत के तत्कालीन व प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने गीताप्रेस भवन के मुख्य द्वार व लीला चित्र मंदिर का उद्घाटन किया था।
पुस्तकों से गीताप्रेस कोई कमाई नहीं करता
गीताप्रेस के उत्पाद प्रबंधक लालमणि तिवारी का कहना है कि अपने कर्म, आचरण व व्यवहार से गीताप्रेस ने पाठकों के बीच यह विश्वास पैदा किया है कि गीताप्रेस की पुस्तकें प्रामाणिक और भाषा के स्तर पर शुद्ध होती हैं। इसके साथ ही पुस्तकों से गीताप्रेस कोई कमाई नहीं करता है, इसलिए पुस्तकें बहुत सस्ती होती हैं। कुछ पुस्तकें तो लागत मूल्य पर और कुछ पुस्तकें लागत मूल्य से भी कम रेट पर पाठकों को उपलब्ध कराई जाती हैं।