हिंदी में भी प्रकाशित होगी 1120 पृष्ठों वाली यह चर्चित पुस्तक, गीता प्रेस करेगा प्रकाशित Gorakhpur News
गीताप्रेस के उत्पाद प्रबंधक लालमणि तिवारी का कहना है कि गर्ग संहिता के प्रकाशन की तैयारी लगभग पूरी है। प्रूफ पढ़ा जा रहा है। आगामी मार्च तक पुस्तक का प्रकाशन होने की उम्मीद है।
गोरखपुर, जेएनएन। भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से जनमानस को परिचित कराने वाली 'गर्ग संहिता अब गीता प्रेस से प्रकाशित होगी। 1120 पृष्ठों वाली ग्रंथाकार पुस्तक में श्लोकों के साथ उसका हिंदी अनुवाद भी होगा।
सर्वाधिक प्रमाणित है यह ग्रंथ
श्रीकृष्ण के कुलगुरु महर्षि गर्ग द्वारा रचित इस संहिता की कथाएं समस्त वैष्णव परंपरा में सर्वाधिक प्रमाणिक मानी जाती हैं। गीता प्रेस गर्ग संहिता की कथाओं का प्रकाशन मासिक पत्रिका 'कल्याण के 44वें तथा 45वें विशेषांक में कर चुका है। इसके बाद दोनों विशेषांकों की कथाओं को स्वतंत्र ग्रंथ 'गर्ग संहिता के रूप में भी प्रकाशित किया गया। जनमानस में यह ग्रंथ इतना लोकप्रिय हुआ कि उसके 22 संस्करण प्रकाशित किए गए।
पहली बार प्रकाशित करने का निर्णय
गीता प्रेस ने पहली बार संहिता के हिंदी अनुवाद के साथ उसके मूल श्लोकों को भी प्रकाशित करने का निर्णय लिया है। पहले संस्करण में तीन हजार प्रतियां प्रकाशित की जाएंगी, हालांकि उसका मूल्य अभी तय नहीं है। गीता प्रेस ने 75 तरह की पुस्तकों का प्रकाशन पिछले वर्ष किया था।
दस खंडों में है मूल संहिता
गर्ग संहिता गोलोक, वृंदावन, गिरिराज, माधुर्य, मथुरा, द्वारका, विश्वजित, बलभद्र, विज्ञान व अश्वमेध समेत दस खंडों में विभक्त है। महाराज पृथु व यदुवंशियों के गुरु महर्षि गर्ग द्वारा रचित गर्ग संहिता के श्लोकों को श्रीमद्भागवत के प्राचीन टीकाकारों ने प्रमाण रूप में उद्धृत किया है।
मार्च तक ग्रंथ उपलब्ध होने की उम्मीद
इस संबंध में गीताप्रेस के उत्पाद प्रबंधक लालमणि तिवारी का कहना है कि गर्ग संहिता के प्रकाशन की तैयारी लगभग पूरी है। प्रूफ पढ़ा जा रहा है। आगामी मार्च तक पुस्तक का प्रकाशन होने की उम्मीद है।
गत वर्ष की चर्चित पुस्तकें
पिछले वर्ष की चर्चित पुस्तकों में श्रीशिव महापुराण भाग एक को 5,836 प्रतियों में प्रकाशित किया जा चुका है। इसी तरह श्रीशिव महापुराण भाग दो को 5,845 प्रतियों, शिव पुराण कथा सागर 19,558 प्रतियों, उपनयन संस्कार पद्धति 19,594 प्रतियों, विवाह संस्कार पद्धति 24,001 प्रतियों, देवी भागवत कथा सार 8,052 प्रतियों और सुंदरकांड मूल रंगीन को 27510 प्रतियों में प्रकाशन किया जा चुका है।