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यहां अंग्रेजों की गोली के शिकार हुए थे चार क्रांतिकारी, एक को जिंदा जलाया था

भारत छोड़ो आंदोलन में कुशीनगर जनपद के दुदही में अंग्रेजों की गोली के शिकार हुए थे चार क्रांतिकारी।

By JagranEdited By: Published: Mon, 13 Aug 2018 12:37 PM (IST)Updated: Mon, 13 Aug 2018 12:37 PM (IST)
यहां अंग्रेजों की गोली के शिकार हुए थे चार क्रांतिकारी, एक को जिंदा जलाया था
यहां अंग्रेजों की गोली के शिकार हुए थे चार क्रांतिकारी, एक को जिंदा जलाया था

हरिगोपाल मिश्र, गोरखपुर

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नौ अगस्त 1942 को महात्मा गांधी द्वारा छेड़े गए अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का जबर्दस्त असर कुशीनगर जनपद के दुदही क्षेत्र में भी रहा। यहां के चार क्रांतिकारी अंग्रेजों की गोली के शिकार हुए। एक को अंग्रेजी फौज ने ¨जदा जला दिया था, तो करीब सौ आंदोलनकारी गिरफ्तार हुए थे। दुदही क्षेत्र में आंदोलन का नेतृत्व संभालने वाले सुराजी बाबा, गेंदा ¨सह व चनरदेव तिवारी ने आंदोलन की अगुवाई की थी। दुदही बाजार के सुराजी मंदिर, अमवांखास, अमवादीगर व गौरीशुक्ल गांव सेनानियों का गढ़ माने जाते थे। अंग्रेजों के गोली के शहीद होने वाले क्रांतिकारियों में गौरी शुक्ल गांव के जतन मल्ल, अमवांखास टोला करवतही के धरीक्षण व मंगल राय, अमवांखास टोला किसुनवा के भोला चौहान शामिल रहे। जबकि गौरी जगदीश गांव के मंगल भगत को अंग्रेजों ने ¨जदा जला दिया गया था। अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अंग्रेजी फौज ने यहां के 74 क्रांतिकारियों को एक वर्ष की सजा दी थी। जिसे क्रांतिकारियों ने हंसते-हंसते स्वीकार किया। इनमें अनमोल भगत, अलगू, कुतुबुद्दीन अंसारी, सत्यनारायण गुप्ता, अस्वथामा ¨सह सहित 74 सेनानियों को यातनाएं देकर जेल में डाल दिया गया था। श्रवण बाबा उर्फ सुराजी बाबा की अगुवाई में दुदही बाजार स्थित सुराजी मंदिर से गांधी के सुराज यात्रा का शुभारंभ हुआ था। सेनानियों ने जगह-जगह सड़क रेल पटरियों को निशाना बनाया। क्षेत्र के बुजुर्ग बताते हैं कि बांसगांव चौरिया, बैरिया, पंचरुखिया, अमवांखास, गौरी श्रीराम, मिश्रौली, नरहवां, कैथवलिया, शाहपुर उचकीपट्टी, धोकरहां, चाफ, अमवादीगर, बड़हरा दूबे, सरगटिया, अमही, लोहरपट्टी, रामपुर बरहन, धर्मपुर पर्वत, शाहपुर खलवापट्टी सहित कई दर्जन जगहों पर सेनानियों ने आंदोलन खड़ा किया था। उप्र जनसंपर्क एवं सूचना विभाग द्वारा प्रकाशित पुस्तक में भी इसका वर्णन किया गया है। सुराजी बाबा की अगुवाई में दुदही, हाटा, हेतिमपुर, पडरौना, कसया, सेवरही, खड्डा, छितौनी व कठकुइयां में भी सेनानियों ने आंदोलन की कमान उठाई। 21 अगस्त 1942 को चार सौ सेनानियों ने कई दर्जन स्थानों पर बिगुल बजाया। इसी क्रम में उन्होंने कसया रोड पर बने खनुआ पुल को पांच घंटे में ध्वस्त किया था। इसी पुल से होकर अंग्रेजी सेना सेनानियों को पकड़ने आती थी। सेनानियों में चनरदेव तिवारी को दो वर्ष, दिलीप राम को एक वर्ष की कैद व 12 बेंत, नकछेद को एक वर्ष कैद व छह बेंत, सूर्यदेव को 18 बूट, श्रीकृष्ण गौरी श्रीराम को पांच सौ रुपये जुर्माना के साथ 24 बेंत की सजा दी गई थी। जबकि गेंदा ¨सह को आंदोलन में शिरकत करने पर देवकली कैंप में तीन वर्ष नजरबन्द किया गया था। जनार्धन माधोपुर को जेल में ही लकवा मार दिया था मगर फिर भी क्रांतिकारी देश की आजादी के लिए अंग्रेजी हुकूमत की यातनाएं सह देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी। सेनानी पुत्र डा. मतीन अंसारी, भरत प्रसाद गुप्त, बालेश्वर प्रसाद का कहना है कि दुदही स्थित शहीद स्मारक बदहाली का शिकार है। सुराजी मंदिर व शहीद स्मारक को पर्यटन के रूप में विकसित किया जाए।


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