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वीर बहादुर सिंह ने बुलाकर दिलवाया था टिकट, अब बेघर हुए UP के यह पूर्व विधायक

गोरखपुर के मानीराम के विधायक रहे हरिद्वार पांडेय अब बेघर हो गए हैं। बरसात में उनका खपरैल मकान गिरने के बाद वे अपने परिवार के साथ सड़क पर आ गए हैं।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Tue, 14 Jul 2020 01:22 PM (IST)Updated: Wed, 15 Jul 2020 09:09 AM (IST)
वीर बहादुर सिंह ने बुलाकर दिलवाया था टिकट, अब बेघर हुए UP के यह पूर्व विधायक
वीर बहादुर सिंह ने बुलाकर दिलवाया था टिकट, अब बेघर हुए UP के यह पूर्व विधायक

गोरखपुर, जेएनएन। मानीराम के पूर्व विधायक हरिद्वार पांडेय का पुस्तैनी खपरैल का मकान 12 जुलाई की रात बारिश में गिर गया है। पूर्व विधायक ने इस बारे में प्रशासन को जानकारी उपलब्ध करा दी है। पूर्व विधायक के मकान गिरने की सूचना पाकर कांग्रेस पार्टी के प्रदेश महासचिव विश्वविजय  सिंंह के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल ने पूर्व विधायक के आवास पर उनसे मुलाकात की।

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पूर्व विधायक हरिद्वार पांडेय मानीराम गांव स्थित अपने पुस्तैनी खपरैल के मकान में परिवार के साथ रहते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीर बहादुर सिंह के करीबी लोगों में शुमार पांडेय 1980-85 में मानीराम विधान सभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने। कांग्रेस पार्टी के प्रदेश महासचिव ने बताया कि पूर्व विधायक गरीबी में जीवन काट रहे हैं। इस बारे में जिला आपदा विशेषज्ञ गौतम गुप्ता ने बताया कि पूर्व विधायक का घर गिरने की जानकारी नहीं है। अगर घर गिरा है तो उन्हें 95100 रुपये की सरकारी सहायता मुहैया कराई जाएगी।

पसंद नहीं था पॉवर का साथ, सीएम बनते ही वीरबहादुर का साथ छोड़ा

पूर्व विधायक हरिद्वार पांडेय को कभी सत्ता का साथ पसंद नहीं आया। ईमानदारी उनकी प्राथमिकता शुरू से प्राथमिकता में रही, और नैतिकता के उच्च मानदंडों पर ही अपने को बनाए रखा। पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के अत्यंत करीबियों में शुमार रहे हरिद्वार पांडेय ने वीर बहादुर सिंह का साथ उस वक्त छोड़ दिया जब वह मुख्यमंत्री बने। हरिद्वार पांडेय कहते हैं कि ईमानदारी का साथ मरते दम तक नहीं छोडूंगा चाहे उसके लिए कोई भी कीमत चुकानी पड़े। ईमानदारी ही मेरी जमा पूंजी है जो आप देख रहे हैं, वरना हम भी गाड़ी, बंगला व फार्म हाउस के मालिक रहते।

1980 से 85 तक कांग्रेस से मानीराम से विधायक रहे हरिद्वार पांडेय हाई स्कूल पास हैं। हरिद्वार पांडेय के मुताबिक उनके मां-बाप की इच्छा थी कि उनका बेटा पढ़ लिखकर इंजीनियर बने, इसलिए घरवालों का पूरा जोर साइंस व मैथ पढ़ाने पर था लेकिन हरिद्वार पांडेय नौकरी से दूर भागते रहे। उन्होंने तुर्कमानपुर स्थित रावत पाठशाला से हाई स्कूल की परीक्षा 1957 में प्राइवेट पास की। वह इंजीनियर नहीं बनना चाहते थे इसलिए आगे की पढ़ाई छोड़ दी। बावजूद इसके गोलघर में उस वक्त के मशहूर वीनस बुक स्टाल पर बैठकर घंटों पढ़ाई किया करते थे। उसी दौरान उन्होंने अमृत पत्रिका में लिखना भी शुरू कर दिया।

वीर बहादुर सिंह ने दिल्ली बुलाकर टिकट दिलवाया

पूर्व विधायक हरिद्वार पांडेय बताते हैं कि चुनाव लडऩे के बारे में स्थानीय पदाधिकारियों द्वारा उनसे पूछा गया तो उन्होंने मना कर दिया। जब इसकी जानकारी वीरबहादुर सिंह को हुई तो उन्हें दिल्ली तलब किया गया। वीर बहादुर सिंह ने पूछा, कि चुनाव लडऩे से क्यों मना कर रहे हो? इस पर हरिद्वार पांडेय ने कहा कि चुनाव लडऩे के लिए पैसे नहीं हैं और हम संगठन में ही रहकर पार्टी की सेवा करना चाहते हैं, लेकिन वीर बहादुर सिंह ने एक न सुनी। उन्होंने कहा कि तुम्हें वहां से चुनाव लडऩा है, जाकर तैयारी करो। इस तरह वीर बहादुर सिंह के मनाने पर चुनाव लडऩे को राजी हुए। दो दिन बाद दिल्ली से लौटकर आए तो पर्चा दाखिले की तैयारी शुरू की।

चार बीघा खेती ही जमापूंजी

पूर्व विधायक कहते हैं कि उनके पास जमापूंजी के नाम पर चार बीघे की खेती है जिसे उनके बड़े लड़के घनानंद संभालते हैं। छोटे बेटे कृष्णानंद पांडेय की आठ साल पूर्व मौत हो चुकी है ऐसे में छोटे बेटे की पत्नी, तीन बेटियां व एक बेटे के भरण-पोषण की जिम्मेदारी भी उन्हीं पर है। बड़े बेटे का परिवार भी पूर्व विधायक के साथ रहता है। पूर्व विधायक बताते हैं कि उन्हें 33 हजार रुपये पेंशन मिलती है उसी से पूरे परिवार का खर्च चलता है। खेती भी भगवान भरोसे होती है, बाढ़ आने पर पूरी फसल डूब जाती है। कुछ बचता है तो घर आता है नहीं तो खरीदकर खाना पड़ता है।

नहीं भूलेगी 12 जुलाई की रात

पूर्व विधायक बताते हैं कि 12 जुलाई की रात उनके जीवन का सबसे डरावना पल था। बारिश के कारण घर का पिछला हिस्सा अचानक गिर गया। बहु और बेटे भागकर बाहर आए, उन्हें चोट भी लगी। सब बरामदे में आकर बैठ गए। इसी बीच रात में दो बजे के करीब बरामदे का भी एक हिस्सा गिर गया। बहु और बच्चों को बगल के घर में भेजा और अपने उसी बरामदे रात काटी।


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