गोरखपुर में खाद बिक्रेताओं ने ऐसे की जालसाजी, विभाग भी शामिल
खाद के कालाबारियों पर विभाग का भी बरदहस्त था। यही कारण है कि उन्होंने किसानों का हक मार दिया। तमाम शिकायतों के बाद विभाग सक्रिय हुआ।
गोरखपुर, जेएनएन। खाद की कालाबाजारी करने वाले जालसाजों ने सिस्टम की तकनीक में सेंध लगाई है। जिस यादव खाद भंडार के नाम पर खाद की हेरफेर की गई है अगर उसने अपना लाइसेंस सरेंडर करके कारोबार बंद कर दिया था तो फिर बगैर उसके आधार नंबर और अंगूठे के निशान के जालसाजों ने खाद की बिक्री आखिर कैसे कर दी। इतना ही नहीं वह 36 खरीददार कौन हैं, जिन्होंने किसान बनकर इतनी बड़ी मात्रा में खाद की खरीद की। इन सभी पहलुओं की जांच के लिए विभागीय अधिकारियों ने लखनऊ, दिल्ली के डीबीटी सेंटर पर संपर्क साधना शुरू कर दिया है।
किसानों को खाद की बिक्री करने के लिए किसी दुकानदार को अपनी ई-पाश मशीन में सबसे पहले अपना आइडी, पासवार्ड फिर अपना आधार कार्ड और अंगूठे का निशान लगाना होता है। इस प्रक्रिया को अंजाम देने के बाद ही मशीन आन होती है। जिस किसान को खाद की बिक्री करनी होती है इसके बाद उस किसान का आधार और अंगूठे का निशान लिया जाता है। आधार नंबर और अंगूठे का निशान मिलने के बाद स्लिप निकलने पर ही किसान को खाद का विक्रय किया जाता है।
सवाल है कि अगर यादव खाद भंडार ने अपना कारोबार 2014 में ही बंद कर दिया था और उसने ई-पाश मशीन भी नहीं ली थी तो उसकी आइडी पर उसके आधार और अंगूठे का निशान लेकर खाद की बिक्री को किस तरह अंजाम दिया गया। जालसाजों ने तकनीकी चेक प्वाइंट को किस तरह ध्वस्त किया। इसकी पड़ताल के लिए कृषि विभाग के अधिकारी लखनऊ, दिल्ली में डीबीटी सेंटर के अधिकारियों से भी संपर्क करने में जुटे हैं।
कौन हैं वह 36 खरीददार
कालाबाजारी की खाद खरीदने के लिए जिन तथाकथित 36 किसानों के आधार और अंगूठे का इस्तेमाल किया गया है, वह किसान आखिर कौन हैं। विभाग ने पोर्टल पर दर्ज आधार नंबर से उन किसानों के बारे में पता करने की कोशिश की, लेकिन आधार नंबर पूरा न मिलने के चलते उनकी पहचान नहीं हो सकी। विभाग इसके लिए मुख्यालय से संपर्क साधने में जुटा है।