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मासूम निगाहें करती हैं पापा का इंतजार, मूर्ति से लिपटकर फफक पड़ती है मां Gorakhpur News

पुलवामा हमले में शहीद हुए महराजगंज के पंकज त्रिपाठी पहली पुण्यतिथि शुक्रवार को है। एक साल से परिजन पंकज की सुनहरी यादों व स्मृतियों को संजोकर जीवन काट रहे हैं।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Thu, 13 Feb 2020 07:08 PM (IST)Updated: Thu, 13 Feb 2020 10:10 PM (IST)
मासूम निगाहें करती हैं पापा का इंतजार, मूर्ति से लिपटकर फफक पड़ती है मां Gorakhpur News
मासूम निगाहें करती हैं पापा का इंतजार, मूर्ति से लिपटकर फफक पड़ती है मां Gorakhpur News

महराजगंज, जेएनएन। पुलवामा हमले में शहीद हुए महराजगंज के पंकज त्रिपाठी की पहली पुण्यतिथि शुक्रवार को है। उनके वीरगति को प्राप्त हुए वर्षभर का समय कब बीत गया पता ही नहीं चला। इस बीच शायद ही कोई दिन बचा हो जिस दिन परिजनों की आंखें उनकी याद में नम न हुईं हों। जवानों की शहादत के बाद देश में भावनाओं का जो ज्वार उमड़ा था। उसकी एक झलक साल भर पहले महराजगंज में भी देखने को मिली। शहीद के गांव हरपुर के टोला बेलहिया से लेकर रोहिन नदी के त्रिमुहानी घाट पर उमड़ी भीड़ की नजीर लोग आज तक देते हैं। बीते एक साल से परिजन पंकज की सुनहरी यादों व स्मृतियों को संजोकर जीवन काट रहे हैं। 

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बेटा हर दिन पूछता है, पापा कहां हैं

शहीद पंकज त्रिपाठी के पुत्र प्रतीक फरेंदा कस्बे के एमपी पब्लिक स्कूल में एलकेजी में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। उनको लेने के लिए दादा ओमप्रकाश त्रिपाठी व चाचा शुभम त्रिपाठी विद्यालय पर पहुंचते हैं। इस दौरान प्रतीक अपने दादा व चाचा से पूछते हैं कि पापा क्यों नहीं आते हैं। यहां अक्सर सबके पापा आते रहते हैं। लेकिन हमारे पापा यहां कभी नहीं आते। मासूम प्रतीक कि यह बात सुनकर दोनों लोग भावुक हो उठते हैं, और प्रतीक से कहते हैं कि बेटा पापा जरूर आएंगे। ओमप्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि प्रतीक अक्सर पापा को पूछते रहते हैं। लेकिन उन्हें क्या जवाब दिया जाए। यह हम लोगों के लिए भी प्रश्न बन जाता है। मासूम को कहां पता है कि उनके पिता शहीद हो चुके हैं। लेकिन फिर भी कहा जाता है कि वह आएंगे एक दिन।

मूर्ति से लिपट कर रो पड़ी मां

शहीद पंकज त्रिपाठी के पैतृक गांव हरपुर बेलहिया में शहीद स्मारक का निर्माण हुआ है। जहां पर उनकी मूर्ति लगी हुई है। जिसका अनावरण 14 फरवरी को होना तय है। मूर्ति लगने के बाद से ही उनकी मां सुशीला देवी बार-बार उसके पास जाकर उसे गले से लगा रही हैं। साथ ही पास में बैठ कर ही एकटक मूर्ति को निहार रही हैं। चूंकि अनावरण होने से पहले मूर्ति ढका हुआ है। लेकिन वह बार-बार परिजनों से कह कर उसे खोलने की बात कह रही हैं। जिससे वह अपने पुत्र का दीदार कर सकें। लेकिन परिजन उन्हें कह रहे हैं कि अभी इंतजार करें, शुक्रवार को प्रतिमा का अनावरण होगा।

वर्ष भर में बदल गईं परिस्थितियां, बहुत याद आते हैं पंकज

पंकज के शहीद हुए वर्षभर का समय बीतने के बाद अब परिजनों की जिंदगी में काफी कुछ बदलाव आया है। पत्नी रोहिणी त्रिपाठी फरेंदा विकास खंड मुख्यालय पर बतौर कनिष्ठ लिपिक कार्य कर रहीं हैं। प्रतिदिन सुबह 10 बजे नियमित ड्यूटी पर पहुंचने वाली रोहिणी अपने कार्य व दायित्व के प्रति पूरी तरह से संजीदा हैं। पांच वर्ष का हुआ बेटा प्रतीक अब स्कूल जाने लगा है। वह फरेंदा के एमपी पब्लिक स्कूल में एलकेजी का छात्र है। 

धरती पर आने से पहले ही उठ गया था पिता का साया

उस बहादुर बेटी को क्या कहें जिसके धरती पर आने से पहले ही उसके पिता का साया उठ गया। जिस वक्त पंकज त्रिपाठी को वीरगति प्राप्त हुई , वान्या मां के गर्भ में थी। उनकी मौत के चार माह बाद बेटी का जन्म हुआ। शहीद की यह निशानी लोगों को हर पल पंकज त्रिपाठी की याद दिलाती है।

इन संगठनों द्वारा अर्पित की जाएगी श्रद्धांजलि

पंकज त्रिपाठी के पहली बरसी पर उनको नमन करने के लिए विभिन्न संगठन आगे आएं हैं। भारत स्वाभिमान ट्रस्ट, सिटीजन फोरम महराजगंज, रोटरी क्लब महराजगंज, नगर पंचायत आनंदनगर, विभिन्न सामाजिक संगठनों व राजनीतिक कार्यकर्ताओं द्वारा श्रद्धासुमन अर्पित किया जाएगा।

जोरशोर से चल रही है शहादत दिवस की तैयारी

शहीद पंकज त्रिपाठी के गांव में 14 फरवरी को आयोजित होने वाले शहीद मेला व शहादत सम्मान समारोह की तैयारी जोरशोर से चल रही है। इसी दिन उनके स्मृति में बनाए गए स्मारक पार्क व मूर्ति का अनावरण भी किया जाएगा। पिता ओमप्रकाश त्रिपाठी, पत्नी रोहिणी  व भाई शुभम ने कहा कि पहली पुण्यतिथि के दिन अधिक से अधिक लोग पहुंचकर उनको श्रद्धासुमन अर्पित करेंगे तो उन्हें भी खुशी होगी।

आने वाली पीढि़यां सीख लेंगी : सांसद

महराजगंज के सांसद पंकज चौधरी ने कहा कि पुलवामा में शहीद हुए पंकज त्रिपाठी की शहादत पर जिले को गर्व है। यह वीर सैनिकों की देन है कि देश सुरक्षित है। उनकी स्मृतियों को संजोने के लिए हर संभव प्रयास होगा। आने वाली पीढ़ी उनकी शहादत को यादकर उनके बताए पदचिन्हों पर चले, इसके लिए पहल होगी।

हमें पंकज पर गर्व : डीएम

डीएम डा.उज्ज्वल कुमार ने कहा कि देश की रक्षा के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीर शहीद पंकज त्रिपाठी को नमन करता हूं। उनकी स्मृतियों को संजोने के लिए प्रशासन द्वारा हर संभव पहल की जाएगी। हमें  उनकी वीरता पर गर्व है।

हर पल होता है गर्व का अनुभव : विधायक

फरेंदा के विधायक बजरंग बहादुर सिंह ने कहा कि यह हम लोगों के लिए गौरव की बात है कि वह हमारे क्षेत्र के रहने वाले थे। उनकी पहली पुण्यतिथि पर गांव में आयोजित होने वाले शहीद मेले में जिले के लोग बढ़ चढ़कर हिस्सा लेंगे। उनकी वीरता आने वाली पीढिय़ों का मार्ग दर्शन करेगी। ग्राम प्रधान सुनील यादव ने कहा कि हरपुर गांव की मिट्टी में पले बढ़े शहीद पंकज त्रिपाठी पर गांव के एक-एक व्यक्ति को नाज है। देश के लिए मर मिटने का मौका कम लोगों को मिलता है। उनकी स्मृतियां हमारे लिए किसी अनमोल थाती से कम नहीं है। उनकी पहली बरसी को यादगार बनाया जाएगा।

हर दिन आई पंकज की याद, स्मृतियों के सहारे जी रहे परिजन

शहीद पंकज त्रिपाठी के पिता ओमप्रकाश त्रिपाठी के लिए बिना बेटे के साल भर गुजारना सहज नहीं था। उन्होंने कहा कि बेटे को वीरगति प्राप्त किए साल भर का समय होने जा रहा है, लेकिन लगता है कि अभी वह सीमा पर तैनात हो देश की सेवा कर रहा है। उसके जाने से कितना दुख है इसे शब्दों में कहना मुश्किल है, लेकिन इस बात का गर्व भी है कि वह लड़ते-लड़ते देश के काम आया। पंकज त्रिपाठी की माता सुशीला देवी बेटे के असमय जाने से अब भी सदमे में हैं। पंकज त्रिपाठी के बारे में पूछने पर मुंह से शब्द नहीं निकले, लेकिन आंखों से निकली आंसुओं की धारा ने सब कुछ बयां कर दिया। कहा कि एक मां के रहते बेटे के चले जाने का दुख असहनीय है। पंकज की पत्नी रोहिणी के दुख को भी शब्दों में नहीं उकेरा जा सकता। पति की याद आते ही आंखों से निकले आंसू ही सारा जवाब दे देते हैं। उन्होंने कहा कि पति की स्मृतियां उन्हें जीवित रहने का साहस प्रदान करतीं हैं। इस बात का गर्व है कि पति देश की रक्षा करते हुए शहीद हुए। 14 फरवरी को पहली बरसी के दिन उनकी मूर्ति का अनावरण कर उन्हें याद किया जाएगा। पंकज त्रिपाठी के वीरगति प्राप्त करने के बाद उनके छोटे भाई शुभम त्रिपाठी परिवार की लाठी बने हुए हैं। कहा कि भाई की शहादत पर गर्व है। भइया के न रहने की कमी तो आजीवन रहेगी, लेकिन इस बात का प्रयास रहेगा कि उनकी स्मृतियों को संजोकर उनकी वीरता से आने वाली पीढ़ी को भी अवगत कराया जाए।


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