संतकबीर नगर जिले में होजरी उद्योग को लगे पंख, लोग हो रहे आत्मनिर्भर
जनपद संतकबीर नगर का मुखलिसपुर का कारोबार लुधियाना की तरह होजरी उद्योग में उभर रहा है
वेदप्रकाश गुप्त, गोरखपुर: जनपद संतकबीर नगर का मुखलिसपुर का कारोबार लुधियाना की तरह हो गया है। धनघटा तहसील के नाथनगर ब्लाक के मुखलिसपुर कस्बे के लोग। अपनी मेहनत और लगन से यहां के लोगों ने होजरी उद्योग में अपनी पहचान बनाई है। यहां बनने वाले टीशर्ट-लोअर आज बरदहिया बाजार सहित आसपास के जनपदों में अपनी खूबियों के कारण खूब बिकते हैं। कस्बे और इसके आसपास की करीब 90 फीसद आबादी होजरी उद्योग से जुड़ी हुई है।
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हाथों की लकीरों को बदल डाला
मेहनत की यह कहानी काफी पुरानी है। एक समय ऐसा था जब पूर्वी उत्तर प्रदेश के लगभग हर गांव से लोग पंजाब के लुधियाना की ओर रुख करते थे। कारण था, रोजी-रोटी। लुधियाना अपने होजरी उद्योग के लिए काफी मशहूर है। देश में बनने वाले रेडीमेड कपड़े ज्यादातर यहीं बनते हैं। मुखलिसपुर के भी काफी लोग लुधियाना रोजगार के लिए रहते थे। यहां वह टीशर्ट-लोअर, स्वेटर आदि बनाते थे। धीरे-धीरे जब उन्होंने काम समझ लिया तो उन्हें लगा कि यह काम तो अपने गांव में भी किया जा सकता है। फिर क्या था, पहले तो कुछ लोग लुधियाना से कच्चा माल जैसे कपड़े वगैरह ले आए और खुद बनाना शुरू किया।
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बरदहिया बाजार बना आसरा
पूरे पूर्वांचल में रेडीमेड कपड़ों की सबसे बड़ी मंडी माने जाने वाली बरदहिया बाजार बिक्री के लिए उपलब्ध था। यह बाजार सप्ताह में रविवार को लगता है। शनिवार सुबह से दूर-दूर से व्यापारी आने लगते हैं और यहां से माल खरीद कर ले जाते हैं। मुखलिसपुर के होजरी उद्योग के लिए यह बिक्री का सबसे बड़ा केंद्र बना। प्रत्येक सप्ताह यहां मुखलिसपुर और आसपास के क्षेत्र के लोग रेडीमेड कपड़े लाते हैं और उसे बेचते हैं। यहां आने वाले व्यापारी पूरे प्रदेश के साथ-साथ बिहार राज्य और पड़ोसी देश नेपाल से भी आते हैं। वह अच्छे मूल्य पर रेडीमेड कपड़ों की खरीद करते हैं।
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¨जदगी की गाड़ी दौड़ रही सरपट
मुखलिसपुर सहित आसपास के क्षेत्र महुली, अम्मदेई, मुकुंदपुर, प्रजापतपुर, कुशहवा बाजार आदि क्षेत्रों में भी यह कारोबार तेजी से जोर पकड़ रहा है। राम जनक बताते हैं कि इस काम से ¨जदगी आसान हो गई है। कच्चा माल भी आराम से मिल जाता है। धर्मेंद्र कुमार ने बताया कि इस काम में घर की महिलाओं का भी सहयोग रहता है। दोनों मिलकर ¨जदगी की गाड़ी खींच रहे हैं। विनोद का कहना है कि सरकार की ओर से तो कोई विशेष सुविधा नहीं मिलती है। हां, अगर मिल जाए तो हम बेहतर कर सकेंगे। संदीप यादव व सतेंद्र राव ने कहा कि परदेस में जाकर धक्के खाने से बेहतर है अपने घर में ही दो रोटी खाई जाए।
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