Food In Gorakhpur: गोरक्षनगरी में छिपा है स्वाद का खजाना, पांच दशक से मुत्तू के इडली-डोसा का पूरा शहर दिवाना
गोरखपुर शहर में कालीबाड़ी के सामने दुकान पर डोसा खाने शहर ही नहीं आसपास के जिलों से भी लोग आते हैं। यह सिलसिला आज से नहीं बल्कि पांच दशक से बरकरार है। मुत्तू के इडली-डोसा का क्रेज कभी कम नहीं हुआ।
गोरखपुर, जागरण संवाददाता। आज तो शहर में डोसा, इडली-सांभर, उत्पम जैसे दक्षिण भारतीय व्यंजन की अनेकों दुकानें है लेकिन एक वक्त था जब यहां के लोगों को इन व्यंजनों का स्वाद लेने के लिए दुकान खोजनी पड़ती थी। उस समय शहर के कुछ दुकाने ही उनकी यह डिमांड पूरी कर पाती थी, उनमें से ही एक दुकान थी एस मुत्तूरामन की। कालीबाड़ी के सामने ठेले पर लगने वाली अस्थायी दुकान पर डोसा और इडली खाने के लिए गोरखपुर के अलावा आसपास के जिलों से भी लोग आते थे। यह बात एक-दो नहीं बल्कि करीब पांच दशक पुरानी है। समय के साथ दक्षिण भारतीय व्यंजन की दर्जनों दुकानें खुलीं लेकिन मुत्तूरामन की दुकान का क्रेज कम नहीं हुआ। आज भी उनके ग्राहकों को उन्हीं की दुकान का व्यंजन खाकर सुकून मिलता है। हालांकि अब उस पर मुत्तूरामन नहीं बैठते। उनके बेटे एम. शेखर ने जिम्मेदारी संभाल रखी है।
क्या है स्वाद का राज
दुकान की साख लंबे समय तक बरकरार रहने की वजह शेखर गुणवत्ता को लेकर समझौता न करना बता रहे हैं। वह कहते हैं कि उत्तर भारतीयों के स्वाद के मानक पर खरा उतरने के लिए उन्होंने दक्षिण भारतीय डोसे के प्रारूप में थोड़ा परिवर्तन जरूर किया है लेकिन उसका असर गुणवत्ता पर नहीं पड़ने दिया है। यही वजह है कि उनके ग्राहक आज भी खिंचे चले आते हैं।
ऐसे शुरू हुआ मुत्तू के डोसे-इडली का व्यवसाय
तमिलनाडु के मदुरै के मूल निवासी शेखर ने बताया कि उनके पिता मुत्तू व्यवसाय के सिलसिले में मदुरै से कोलकाता गए, जहां उनकी मुलाकात गोरखपुर के एक सेठ से हुई। सेट की सलाह पर ही वह गोरखपुर आए और डोसे-इडली का व्यवसाय शुरू किया। शुरुआत में इसकी दुकानें कम हीं थी, इसलिए उन्हें पांव जमाने में दिक्कत नहीं हुई। शेखर बताते हैं कि पिता की बनाई साख को कायम रखने के लिए वह व्यंजन बनाने में खुद लगते हैं। केवल कारीगरों पर भरोसा नहीं करते। यहां तक कि सारा मसाला भी वह अपनी निगरानी में ही तैयार कराते हैं।