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साढ़े नौ हजार करोड़ रुपये खर्च होने के बाद भी 41 साल से इस नहर को पानी का इंतजार

सरयू नहर परियोजना राजनीति का शिकार हो गई। दस साल में यह परियोजना पूरी की जानी लेकिन 41 साल बाद भी अधूरी है। इस योजना पर अब तक साढे नौ हजार करोड़ रुपये खर्च हो चुके है।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Wed, 24 Apr 2019 10:53 AM (IST)Updated: Thu, 25 Apr 2019 10:02 AM (IST)
साढ़े नौ हजार करोड़ रुपये खर्च होने के बाद भी 41 साल से इस नहर को पानी का इंतजार
साढ़े नौ हजार करोड़ रुपये खर्च होने के बाद भी 41 साल से इस नहर को पानी का इंतजार

गोरखपुर/बस्‍ती, एसके सिंह। एक राष्ट्रीय परियोजना पूर्वांचल में राजनीति का शिकार हो गई। दस साल में यह परियोजना पूरी की जानी लेकिन 41 साल बाद भी अधूरी है। हम बात कर रहे हैं सरयू नहर परियोजना की। सिंचन क्षमता बढ़ाकर खरीफ और रबी की फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए इस परियोजना की शुरूआत वर्ष 1978 में की गई। 
976 किमी लंबी इस नहर पर अब 9555 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। नहर में जगह-जगह गैप हैं, इसे भरने के लिए किसानों से बाजार दर पर जमीने क्रय करने की कार्यवाही एक बार फिर से शुरू की गई है। पूर्वांचल की इस महत्वाकांक्षी योजना को पूरा कर योगी सरकार कई निशाने साधने की तैयारी में है।
41 साल में जितनी भी सरकारें आई सबके एजेंडे में किसान थे लेकिन इस परियोजना को पूरा करने की दृढ इच्छा शक्ति किसी ने नहीं दिखाई। चुनाव आने पर किसानों को साधने के लिए कुछ बजट जारी किए जाते रहे। इस तरह यह परियोजना राजनीति का शिकार हो गई। बहरहाल समय बढऩे के साथ जमीन और परियोजना की लागत भी बढ़ती गई। सरकारें बदलती रहीं तो दूसरी तरफ परियोजना में अफसर भी आते जाते रहे। सबने अलग-अलग नजरिये से इसे देखा। नतीजतन अब तक तीन बार संशोधित कर इसकी निर्माण लागत बढ़ाई जा चुकी है। परियोजना का कार्य अंतिम चरण में है लेकिन इसका लाभ किसानों को नहीं मिल पा रहा। नहर का फैलाव पूर्वांचल के 9 जिलों में है।

राष्ट्रीय नहर का दर्जा प्राप्त सरयू नहर परियोजना की निगरानी के लिए दो मुख्य अभियंता तैनात किए गए हैं। एक गोंडा में तो दूसरे फैजाबाद में बैठते हैं। अधीक्षण अभियंताओं की संख्या आधा दर्जन तो अधिशासी अभियंता एक दर्जन से अधिक है। इनके दफ्तर कहां चलते हैं,इस बारे में किसानों को भी जानकारी नहीं है। देवेश शुक्ल अधीक्षण अभियंता राप्ती नहर निर्माण मंडल -2 बस्ती यहां पर परियोजना के नोडल अफसर हैं। नहर को पूरी क्षमता के साथ चलाने के लिए दो साल पहले किसानों से बातचीत के जरिए विवाद दूर कर गैप को भरने के लिए योगी सरकार ने मुहिम चलाई। जमीन क्रय कर गैप भरने के लिए धन की पर्याप्त व्यवस्था की गई। मंडलायुक्त को इसकी निरंतर मानीटरिंग करने का निर्देश गया। मंडल के बस्ती और संतकबीरनगर और सिद्धार्थनगर में गैप को भरने के लिए इधर 50 करोड़ रुपये व्यय किए गए हैं। बस्ती के अलावा सिद्धार्थनगर,महराजगंज और गोरखपुर में अभी गैप भरे जाने हैं। दिसंबर 2019 में इसे परियोजना को पूरा करने का लक्ष्य है लेकिन राह कठिन दिख रही है।

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वर्ष 1978 में शुरू हुई थी परियोजना

वर्ष 1978 में तत्कालीन मुख्यमंत्री राम नरेश यादव ने यूपी के बाढ़ प्रभावित नौ जिलों मेंं बाढ़ के समय बेकार होने वाले जल को संचित कर उसे खेतों की सिंचाई के उपयोग में लाने के लिए सरयू नहर परियोजना की शुरूआत की थी। दस साल में ही इसे पूरा किए जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। यूपी की सत्ता कांग्रेस के हाथ से खिसकने के बाद प्रदेश की कमान घूम फिर कर सपा और बसपा के हाथों में ही रही। नतीजतन प्राथमिकताएं बदलीं तो परियेजना ठंडे बस्ते में चली गई। दो वर्ष पूर्व किसानों के हितार्थ जब परियोजना को मूर्त रूप देते हुए नहर का निर्माण कार्य जल्द पूर्ण करने की बात केन्द्र व प्रदेश सरकार की ओर से उठी तो क्षेत्र के किसानों में खुशी की लहर दौड़ गई। नहर निर्माण में बाधा आ रही कुछ मामलों को किसानों की रजामंदी से सिंचाई विभाग ने निपटारा भी किया। किसानों ने भी महंगी भूमि के नहर में निकलने की परवाह किये बिना सिंचाई सुविधा की बात सोचकर सहयोग की तरह हाथ बढ़ाया।

9 जिलों में है नहर का फैलाव

बहराइच, गोंडा, श्रावस्ती, बलरामपुर, बस्ती, सिद्धार्थनगर, संतकबीरनगर, महराजगंज और गोरखपुर। इसकी स्वीकृत लंबाई 600 किमी और प्रस्तावित सिंचन क्षमता 1.27 लाख हेक्टेयर है। मार्च 17 तक 450 किमी ही नहर का निर्माण हो पाया था यानी दिसंबर 2019 तक 233 किमी नहर का निर्माण पूरा कर इसे पूरी क्षमता के साथ चलाए जाने का लक्ष्य निर्धारित है। 

6 खंडों में बंटी है सरयू नहर

रुधौली,सदर और महादेवा विधानसभा के रामनगर,बस्ती सदर,साऊंघाट,बनकटी का इलाका खंड चार में आता है। इस खंड का कुछ हिस्सा सिद्धार्थनगर के डुमरियांगज और संतकबीरनगर के धनघटा में आता है। 53 किमी मुख्य नहर है जबकि चार रजवाहा और 40 अल्पिकाएं निकली हैं। अधिकांश नहरों में अवशिष्ट मिट्टी और गैप होने के चलते इसे अब तक नहीं चलाया जा सका है। इस खंड के 26 नहरों में गैप भरने के लिए इस साल 13 हेक्टयेर भूमि क्रय की जानी थी। अब तक 12 हेक्टेयर भूमि क्रय की जा चुकी है। सरयू नहर खंड अयोध्या के तहत बस्ती में कुल 62 नहरें हैं जिनकी कुल लंबाई 420 किमी है। 14 नहरों में गैप भरने के लिए 16 हेक्टेयर भूमि क्रय की जानी है। सरयू नहर गोंडा के तहत बस्ती जिले में 10 नहरें हैं जिनकी कुल लंबाई 90 किमी है। 7 नहरों में गैप भरने के लिए 3 हेक्टेयर भूमि क्रय होनी है। सरयू नहर खंड खलीलाबाद के तहत बस्ती जिले में कुल 27 नहरें हैं जिनकी कुल लंबाई 175 किमी है। इस खंड के चार नहरों में गैप है। राप्ती नहर निर्माण खंड दो तुलसीपुर के तहत बस्ती जिले में एक नहर है जिसकी लंबाई 18 किमी है। इसमें एक किमी और नहर बननी रह गई है।

साप्‍ताहिक मॉनिटरिंग हो रही है : डीएम

बस्ती के जिलाधिकारी डा.राजशेखर ने बताया कि बस्ती जिले में कुल 151 नहरें हैं। इसकी कुल लंबाई 976 किमी है। वर्तमान में 114 नहरें बन चुकी हैं। 34 नहरों में गैप भरने के लिए 63 हेक्टेयर भूमि क्रय की जानी थी। अब तक 38 हेक्टेयर भूमि क्रय की जा चुकी है। 21 हेक्टेयर भूमि और क्रय करने के लिए धन की डिमांड की गई है। धनावंटन होते ही अवशेष कार्य पूरा करा लिया जाएगा। इस परियोजना को निर्धारित समय पर पूरा करने के लिए साप्ताहिक मानीटरिंग की जा रही है।

दिसंबर तक पूरा हो जाएगा गैप : अधीक्षण अभियंता

अधीक्षण अभियंता देवेश शुक्ला ने कहा कि सरयू नहर परियोजना 9 जिलों में फैली है। परियोजना के गैप को पूरा करने का कार्य तेजी से चल रहा है। दिसंबर 19 तक नहर के गैप को पूरा कर संचालित कर दिया जाएगा। वर्ष 1978 में इस परियोजना की शुरुआत हुई। अब तक इस पर 9555 करोड़ व्यय हो चुके हैं।

किसानों ने कहा

- जब नहरों का निर्माण हो रहा था तो किसानों ने सिंचाई सुविधा मिलने की आस में अपनी उपजाऊ जमीनें दी लेकिन किसानों की यह परियोजना राजनीतिक चश्मे से देखी गई। नतीजतन 41 साल बाद निर्माण कार्य पूरा नहीं हो पाया है। - विनोद सिंह कृषक, सरनागी

- दो दशक पहले से बभनान क्षेत्र में नहर बननी शुरू हुई लेकिन अब तक नहीं बन पाई है। नहर में जगह-जगह गैप होने से इसका लाभ किसानों को नहीं मिल पा रहा है। किसान जमीन देकर खुद को ठगा महसूस कर रहा है। - शिवपूजन यादव कृषक, सलहदीपुर

- सरयू नहर को अफसरों ने कमाई का जरिया बना लिया। किसानों की जमीन गई, करोड़ों रुपये सरकार का खर्च हुआ लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। इस परियोजना ने किसानों को काफी नुकसान हुआ है। - राम प्रताप कृषक,सरनागी

- नहर में सिंचाई के लिए पानी मिलता रहता तो छोटे किसान सब्जी की बेहतर खेती कर अपनी आय दोगुनी कर सकते थे। नहर बनते देखते ही आधी उम्र बीत गई लेकिन पानी आना तो दूर निर्माण ही नहीं पूरा हो पाया है। - राम नेवास चौधरी कृषक,मुरादपुर

- नहर की खुदाई के दो दशक बाद भी सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल पा रहा है। नहर में पानी छोड़ा जाता तो खेतों को समय से भरपूर पानी मिलता और  पैदावार बढ़ती। किसान गर्मी के दिनों में हर दिन नहर की ओर निहारता रहता है। - हीरा प्रसाद पांडेय कृषक,गौहनिया

- नहर कब की बनी, लेकिन पानी अब तक नहीं आया। पता करने पर बताया जाता है नहर में कई जगहों पर गैप है। नहर संचालित न होने के चलते यह अपशिष्ट से पट गया और इसमें झाड़ झंखाड़ उग आए हैं। - बरखूराम कृषक, डेरवा (गनेशपुर)


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