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मेडिकल कॉलेज पहुंचकर भी चार दिन तक नहीं मिला इलाज Gorakhpur News

बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज गोरखपुर में मरीज चार दिन तक तड़पता रहा लेकिन उसे इलाज नहीं मिला।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Sun, 24 May 2020 03:18 PM (IST)Updated: Sun, 24 May 2020 03:45 PM (IST)
मेडिकल कॉलेज पहुंचकर भी चार दिन तक नहीं मिला इलाज Gorakhpur News
मेडिकल कॉलेज पहुंचकर भी चार दिन तक नहीं मिला इलाज Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। समूचे पूर्वांचल के लोगों को स्वास्थ्य सुरक्षा की गारंटी देने वाले बीआरडी मेडिकल कॉलेज के परिसर में इमरजेंसी के सामने एक मरीज अचेत पड़ा मिला। मरीज को देखकर लग रहा था कि उसे लंबे समय से भोजन नहीं मिला है। चश्मदीदों के मुताबिक मरीज चार दिन से वहां पड़ा था, लेकिन मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने उसकी सुधि नहीं ली। जागरण की पहल पर कॉलेज प्रशासन ने मरीज का संज्ञान लिया और उसे वार्ड में भर्ती कराया।

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मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने दिया गैर जिम्‍मदेराना बयान

मेडिकल कॉलेज में होने वाली यह कोई पहली घटना नहीं है। ऐसा आए दिन होता रहता है। संवेदनहीनता कॉलेज प्रशासन की फितरत बन चुकी है। इसे कॉलेज के प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक डॉ.गिरीश चंद्र श्रीवास्तव के बयान से भी समझा जा सकता है। अचेत मरीज के चार दिन से पड़े होने की सूचना जब उन्हें दी गई तो उन्होंने इसे लेकर बड़ा ही गैर-जिम्मेदाराना बयान दिया। कहा कि आए दिन 108 नंबर की एंबुलेंस आसपास के जिलों के मरीजों को लावारिस हालत में छोड़ जाती हैं। यह कोई नई बात नहीं है। चार दिन से अचेत पड़े मरीज को वार्ड में भर्ती करने के लिए कर्मचारियों से कहा गया है। बावजूद इसके अगर अबतक उसे भर्ती नहीं किया गया है, तो इसे लेकर व्यवस्था की जाएगी। उनसे दोबारा पूछताछ की गई तो शाम सात बजे करीब 50 वर्ष के इस अचेत मरीज को वार्ड में शिफ्ट कराने की कार्यवाही की गई।

इमरजेंसी में किशोरी की मौत से फूले स्वास्थ्य कर्मियों के हाथ-पांव

जिला अस्पताल में एक किशोरी की मौत के बाद हड़कंप मच गया। 13 वर्ष की किशोरी को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। वह आठ घंटे अस्पताल के आइसीयू और इमरजेंसी में भर्ती रही पर कोरोना संक्रमण की जांच को लेकर उसका सेंपल नहीं लिया जा सका। हालांकि किशोरी का शव परिजनों को सौंप दिया गया लेकिन इसे लेकर अस्पताल के कर्मचारी डरे हुए हैं। देवरिया के लार की रहने वाली किशोरी को लेकर उसके परिजन शुक्रवार की शाम सवा सात बजे जिला अस्पताल गोरखपुर पहुंचे। उसकी सांस फूल रही थी। साथ में खांसी की भी शिकायत थी। बुखार के साथ गले में दर्द भी था।

इमरजेंसी वार्ड में भर्ती कर आइसोलेट किया गया था

चिकित्सकों ने पहले उसे पीडियाट्रिक आइसीयू में भर्ती किया, जब दो घंटे बाद उसकी हालत ज्यादा बिगड़ गई तो इमरजेंसी वार्ड में भर्ती कर आइसोलेट कर दिया। उसे कृत्रिम सांस भी दी गई लेकिन इस बीच डॉक्टर यह तय नहीं कर सके कि कोरोना जांच के लिए मरीज का सेंपल लेना चाहिए। रात में उसकी मौत हो गई। अस्प्ताल प्रशासन ने शव परिजनों को सौंप दिया। परिजन भी शव लेकर देवरिया चले गए। शव जाने के बाद जब अस्पताल के लोगों को कोरोना संक्रमण की याद आई तो उनके हाथ-पांव फूल गए। दरअसल कर्मचारी और चिकित्सक दोनों पीपीई किट में भी नहीं थे। सुरक्षा के नाम पर उनके पास सिर्फ कपड़े का मास्क और ग्लव्स था। यह मामला जिला अस्पताल में चर्चा का विषय का बना रहा। उधर एसआइसी डॉ. एसके श्रीवास्तव का कहना है कि मामले की जांच कराई जाएगी। अगर मरीज में कोरोना संक्रमण की आशंका थी तो उसका सेंपल जरूर लिया जाना चाहिए था।  


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